10-30-2022, 01:04 PM
श्रीमत्कुन्दकुन्दाचार्यविरचितः प्रवचनसारः
आचार्य कुन्दकुन्द विरचित
प्रवचनसार : ज्ञेयतत्त्वाधिकार
गाथा -15 (आचार्य अमृतचंद की टीका अनुसार)
गाथा -117 (आचार्य प्रभाचंद्र की टीका अनुसार )
सद्दव्वं सच्च गुणो सच्चेव य पज्जयो त्ति वित्थारो ।
जो खलु तस्स अभावो सो तदभावो अतब्भावो ॥ 117 ॥
आगे अन्यत्वका लक्षण विशेषतासे दिखलाते हैं;- [सत् द्रव्यं] सत्तारूप द्रव्य है, [च] और [सत् गुणः] सत्तारूप गुण है, [च] तथा [सत् एव पर्यायः] सत्तारूप ही पर्याय है, इति] इस प्रकार सत्ताका [विस्तारः] विस्तार है। और [खलु] निश्चय करके [यः] जो [तस्य] उस सत्ता-द्रव्य-गुण पर्यायकी एकताका [अभावः] परस्परमें अभाव है, [सः] वह [सदभावः] उस एकताका अभाव [अतद्भावः] अन्यत्व नामा भेद है।
भावार्थ-जैसे एक मोतीकी माला हार, सूत्र और मोती इन भेदोंसे तीन प्रकार है, उसी प्रकार एक द्रव्य, द्रव्य गुण और पर्याय-भेदोंसे तीन प्रकार है। और जैसे एक मोतीकी मालाका शुक्ल (सफेद) गुण, श्वेत हार, श्वेत सूत, और श्वेत मोती, इन भेदोंसे तीन प्रकार है, उसी प्रकारसे द्रव्यका एक सत्ता गुण, सत् द्रव्य, सत् गुण, और सत्पर्याय इन भेदोंसे तीन प्रकार है। यह सत्ताका विस्तार है। और जैसे एक मोतीकी मालामें भेद-विवक्षासे जो श्वेत गुण है, सो हार नहीं है, सूत नहीं है, और मोती नहीं है। तथा ओ हार सूल मोती हैं, वे बेत गुण नहीं हैं, ऐसा परस्पर भेद है, उसी प्रकार एक द्रव्यमें जो सत्ता गुण है, वह द्रव्य नहीं, गुण नहीं, और पर्याय नहीं है, तथा जो द्रव्य गुण पर्याय हैं, सो सत्ता नहीं है, ऐसा आपसमें भेद है / सारांश यह है, कि सत्ताके स्वरूपका अभाव द्रव्य, गुण, पर्यायोंमें है, और द्रव्य, गुण, पर्यायके स्वरूपका अभाव सत्तामें है / इस प्रकार गुण-गुणी-भेद है, प्रदेश-भेद नहीं है। यही अन्यत्व नामक भेद है |
मुनि श्री प्रणम्य सागर जी प्रवचनसार
पर्याय द्रव्य गुण ये सब सत् सुधारे , विस्तार सत् समय का गुरु यों पुकारे ।
सत्तादि का रहत आपस में अभाव , सो ही रहा समझ मिश्च अतत् स्वभाव ।
अन्वयार्थ - ( सदव्यं ) सत् द्रव्य ' ( च सत् गुणो ) और ' सत्गुण ' ( च ) और ( सत् एव पज्जओ ) ' सत ही पर्याय ' ( त्ति ) इस प्रकार ( वित्थारो ) सत्तागुण का विस्तार है । ( जो खलु ) और जो उनमें परस्पा । ( तस्स अभावो ) ' उसका अभाव ' अर्थात् उस रूप होने का अभाव है सो ( सो ) वह ( तदभावो ) उसका अभाव ( अतब्भावो ) अतद्भाव है ।
आचार्य कुन्दकुन्द विरचित
प्रवचनसार : ज्ञेयतत्त्वाधिकार
गाथा -15 (आचार्य अमृतचंद की टीका अनुसार)
गाथा -117 (आचार्य प्रभाचंद्र की टीका अनुसार )
सद्दव्वं सच्च गुणो सच्चेव य पज्जयो त्ति वित्थारो ।
जो खलु तस्स अभावो सो तदभावो अतब्भावो ॥ 117 ॥
आगे अन्यत्वका लक्षण विशेषतासे दिखलाते हैं;- [सत् द्रव्यं] सत्तारूप द्रव्य है, [च] और [सत् गुणः] सत्तारूप गुण है, [च] तथा [सत् एव पर्यायः] सत्तारूप ही पर्याय है, इति] इस प्रकार सत्ताका [विस्तारः] विस्तार है। और [खलु] निश्चय करके [यः] जो [तस्य] उस सत्ता-द्रव्य-गुण पर्यायकी एकताका [अभावः] परस्परमें अभाव है, [सः] वह [सदभावः] उस एकताका अभाव [अतद्भावः] अन्यत्व नामा भेद है।
भावार्थ-जैसे एक मोतीकी माला हार, सूत्र और मोती इन भेदोंसे तीन प्रकार है, उसी प्रकार एक द्रव्य, द्रव्य गुण और पर्याय-भेदोंसे तीन प्रकार है। और जैसे एक मोतीकी मालाका शुक्ल (सफेद) गुण, श्वेत हार, श्वेत सूत, और श्वेत मोती, इन भेदोंसे तीन प्रकार है, उसी प्रकारसे द्रव्यका एक सत्ता गुण, सत् द्रव्य, सत् गुण, और सत्पर्याय इन भेदोंसे तीन प्रकार है। यह सत्ताका विस्तार है। और जैसे एक मोतीकी मालामें भेद-विवक्षासे जो श्वेत गुण है, सो हार नहीं है, सूत नहीं है, और मोती नहीं है। तथा ओ हार सूल मोती हैं, वे बेत गुण नहीं हैं, ऐसा परस्पर भेद है, उसी प्रकार एक द्रव्यमें जो सत्ता गुण है, वह द्रव्य नहीं, गुण नहीं, और पर्याय नहीं है, तथा जो द्रव्य गुण पर्याय हैं, सो सत्ता नहीं है, ऐसा आपसमें भेद है / सारांश यह है, कि सत्ताके स्वरूपका अभाव द्रव्य, गुण, पर्यायोंमें है, और द्रव्य, गुण, पर्यायके स्वरूपका अभाव सत्तामें है / इस प्रकार गुण-गुणी-भेद है, प्रदेश-भेद नहीं है। यही अन्यत्व नामक भेद है |
मुनि श्री प्रणम्य सागर जी प्रवचनसार
पर्याय द्रव्य गुण ये सब सत् सुधारे , विस्तार सत् समय का गुरु यों पुकारे ।
सत्तादि का रहत आपस में अभाव , सो ही रहा समझ मिश्च अतत् स्वभाव ।
अन्वयार्थ - ( सदव्यं ) सत् द्रव्य ' ( च सत् गुणो ) और ' सत्गुण ' ( च ) और ( सत् एव पज्जओ ) ' सत ही पर्याय ' ( त्ति ) इस प्रकार ( वित्थारो ) सत्तागुण का विस्तार है । ( जो खलु ) और जो उनमें परस्पा । ( तस्स अभावो ) ' उसका अभाव ' अर्थात् उस रूप होने का अभाव है सो ( सो ) वह ( तदभावो ) उसका अभाव ( अतब्भावो ) अतद्भाव है ।