11-13-2022, 02:21 PM
श्रीमत्कुन्दकुन्दाचार्यविरचितः प्रवचनसारः
आचार्य कुन्दकुन्द विरचित
प्रवचनसार : ज्ञेयतत्त्वाधिकार
गाथा -16 (आचार्य अमृतचंद की टीका अनुसार)
गाथा -118 (आचार्य प्रभाचंद्र की टीका अनुसार )
जं दव्वं तण्ण गुणो जो वि गुणो सो ण तच्चमत्थादो ।
एसो हु अतब्भावो णेव अभावो त्ति णिद्दिट्ठो ॥ 16 ॥
आगे सर्वथा अभावरूप गुण-गुणी-भेदका निषेध करते हैं-यद्] जो [द्रव्यं] द्रव्य है, [तत्] सो [गुणः न] गुण नहीं है, और [यः] जो [अपि] निश्चयसे [गुणः] गुण है, [सः] वह [अर्थात् ] स्वरूपके भेदसे [तत्त्वं न] द्रव्य नहीं है। [एषः हि] यह गुण-गुणी भेदरूप ही [अतद्भावः] स्वरूपभेद है, [अभावः] सर्वथा अभाव [नैव] निश्चयसे नहीं है। [इति] ऐसा [निर्दिष्टः] सर्वज्ञदेवने दिखाया है / भावार्थ-एक द्रव्यमें जो द्रव्य है, वह गुण नहीं है, और जो गुण है, वह द्रव्य नहीं है / इस प्रकार जो द्रव्यका गुणरूप न होना है, वह अन्यत्वभेद व्यवहारसे कहा जाता है, न कि द्रव्यका अभाव गुण, और गुणका अभाव द्रव्य, ऐसा सर्वथा अभावरूप भेद, क्योंकि इस तरहका अभाव माननेसे द्रव्यका अनेकपना होना, 1 (द्रव्य-गुणों) का नाश होना २, और अपोहरूपत्व दोषका प्रसंग, ३ इस प्रकार तीन दोष उपस्थित होते हैं । वे इस प्रकार हैं कि, जैसे जोवका अभाव अजीव है, और अजीवका अभाव जीव है, इसलिये इन दोनों में अनेकत्व है, उसी प्रकार द्रव्यका अभाव गुण, और गुणका अभाव द्रव्य माननेसे एकत्वके अनेकत्व द्रव्यका प्रसंग आवेगा १ । जैसे सोनेके अभावसे सोनेके गुणका अभाव होता है, और सोनेके गुणके अभावसे सोनेका नाश सिद्ध होता है, उसी तरह द्रव्यके अभावसे गुणका अभाव होगा, और फिर गुणके अभावसे द्रव्यका अभाव हो जावेगा । इस प्रकार दोनोंके नाशका प्रसंग आवेगा २ । तीसरे, जैसे घटका अभावमात्र पट है, और पटका अभावमात्र घट है, इन दोनोमें किसीका रूप किसीमें नहीं है, उसी प्रकार द्रव्यका अभावमात्र गुण होगा, और गुणका अभावमात्र द्रव्य होगा, इस तरह अपोहरूपत्व दोषका प्रसंग आवेगा ३ । इसलिये जो द्रव्य - गुणकी एकता चाहते हैं, दोनोंका नाश नहीं चाहते हैं, और अपोहरूपत्व दोषसे जुदा रहना चाहते हैं, उन्हें भगवान् वीतरागदेवने जो गुण- गुणी में व्यवहारसे अन्यत्वभेद दिखलाया है, उसे अंगीकार करना चाहिये, सर्वथा अभावरूप मानना योग्य नहीं है ॥
मुनि श्री प्रणम्य सागर जी प्रवचनसार
जो द्रव्य है वह कभी गुण हो न पाता , है वस्तुतः गुण नहीं बन द्रव्य पाता ।
सो ही रहा अतद्भाव सही कथा है , होता कथंचित् अभाव न सर्वथा है ।
अन्वयार्थ - ( जं दव्वं ) जो द्रव्य है ( तण्ण गणो ) वह गुण नहीं है , ( वि जो गुणो ) और जो । गुण है ( सो ण तच्च ) वह द्रव्य नहीं है । ( अत्थादो ) शब्दार्थ लक्षण की अपेक्षा से ( एसो हु । अतब्भावो ) यह ही अतद्भाव ; ( ण एव अभावो ) सर्वथा अभाव अतद्भाव नहीं है ; ( त्ति णिहिट्ठो ) । ऐसा प्रभु के द्वारा निर्दिष्ट किया गया है ।
आचार्य कुन्दकुन्द विरचित
प्रवचनसार : ज्ञेयतत्त्वाधिकार
गाथा -16 (आचार्य अमृतचंद की टीका अनुसार)
गाथा -118 (आचार्य प्रभाचंद्र की टीका अनुसार )
जं दव्वं तण्ण गुणो जो वि गुणो सो ण तच्चमत्थादो ।
एसो हु अतब्भावो णेव अभावो त्ति णिद्दिट्ठो ॥ 16 ॥
आगे सर्वथा अभावरूप गुण-गुणी-भेदका निषेध करते हैं-यद्] जो [द्रव्यं] द्रव्य है, [तत्] सो [गुणः न] गुण नहीं है, और [यः] जो [अपि] निश्चयसे [गुणः] गुण है, [सः] वह [अर्थात् ] स्वरूपके भेदसे [तत्त्वं न] द्रव्य नहीं है। [एषः हि] यह गुण-गुणी भेदरूप ही [अतद्भावः] स्वरूपभेद है, [अभावः] सर्वथा अभाव [नैव] निश्चयसे नहीं है। [इति] ऐसा [निर्दिष्टः] सर्वज्ञदेवने दिखाया है / भावार्थ-एक द्रव्यमें जो द्रव्य है, वह गुण नहीं है, और जो गुण है, वह द्रव्य नहीं है / इस प्रकार जो द्रव्यका गुणरूप न होना है, वह अन्यत्वभेद व्यवहारसे कहा जाता है, न कि द्रव्यका अभाव गुण, और गुणका अभाव द्रव्य, ऐसा सर्वथा अभावरूप भेद, क्योंकि इस तरहका अभाव माननेसे द्रव्यका अनेकपना होना, 1 (द्रव्य-गुणों) का नाश होना २, और अपोहरूपत्व दोषका प्रसंग, ३ इस प्रकार तीन दोष उपस्थित होते हैं । वे इस प्रकार हैं कि, जैसे जोवका अभाव अजीव है, और अजीवका अभाव जीव है, इसलिये इन दोनों में अनेकत्व है, उसी प्रकार द्रव्यका अभाव गुण, और गुणका अभाव द्रव्य माननेसे एकत्वके अनेकत्व द्रव्यका प्रसंग आवेगा १ । जैसे सोनेके अभावसे सोनेके गुणका अभाव होता है, और सोनेके गुणके अभावसे सोनेका नाश सिद्ध होता है, उसी तरह द्रव्यके अभावसे गुणका अभाव होगा, और फिर गुणके अभावसे द्रव्यका अभाव हो जावेगा । इस प्रकार दोनोंके नाशका प्रसंग आवेगा २ । तीसरे, जैसे घटका अभावमात्र पट है, और पटका अभावमात्र घट है, इन दोनोमें किसीका रूप किसीमें नहीं है, उसी प्रकार द्रव्यका अभावमात्र गुण होगा, और गुणका अभावमात्र द्रव्य होगा, इस तरह अपोहरूपत्व दोषका प्रसंग आवेगा ३ । इसलिये जो द्रव्य - गुणकी एकता चाहते हैं, दोनोंका नाश नहीं चाहते हैं, और अपोहरूपत्व दोषसे जुदा रहना चाहते हैं, उन्हें भगवान् वीतरागदेवने जो गुण- गुणी में व्यवहारसे अन्यत्वभेद दिखलाया है, उसे अंगीकार करना चाहिये, सर्वथा अभावरूप मानना योग्य नहीं है ॥
मुनि श्री प्रणम्य सागर जी प्रवचनसार
जो द्रव्य है वह कभी गुण हो न पाता , है वस्तुतः गुण नहीं बन द्रव्य पाता ।
सो ही रहा अतद्भाव सही कथा है , होता कथंचित् अभाव न सर्वथा है ।
अन्वयार्थ - ( जं दव्वं ) जो द्रव्य है ( तण्ण गणो ) वह गुण नहीं है , ( वि जो गुणो ) और जो । गुण है ( सो ण तच्च ) वह द्रव्य नहीं है । ( अत्थादो ) शब्दार्थ लक्षण की अपेक्षा से ( एसो हु । अतब्भावो ) यह ही अतद्भाव ; ( ण एव अभावो ) सर्वथा अभाव अतद्भाव नहीं है ; ( त्ति णिहिट्ठो ) । ऐसा प्रभु के द्वारा निर्दिष्ट किया गया है ।