प्रवचनसारः ज्ञेयतत्त्वाधिकार-गाथा - 17,18 जीवके अनवस्थितपन
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श्रीमत्कुन्दकुन्दाचार्यविरचितः प्रवचनसारः
आचार्य कुन्दकुन्द विरचित
प्रवचनसार : ज्ञेयतत्त्वाधिकार

गाथा -17 (आचार्य अमृतचंद की टीका अनुसार)
गाथा -119 (आचार्य प्रभाचंद्र की टीका अनुसार )


जो खलु दव्वसहावो परिणामो सो गुणो सदविसिट्ठो ।
सदवट्ठीदं सहावे दवं त्ति जिणोवदेसोयं ॥ 119 ॥


आगे सत्ता और द्रव्यका गुण-गुणी-भाव दिखलाते हैं - [ यः ] जो [ खलु ] निश्वयसे [ द्रव्यस्वभावः ] द्रव्यका स्वभावभूत [ परिणामः ] उत्पाद, व्यय, ध्रुवरूप त्रिकाल संबंधी परिणाम है, [सः ] वह [ सदविशिष्टः ] सत्तासे अभिन्न अस्तित्वरूप [ गुणः ] गुण है । और [ स्वभावे ] अस्तित्वरूप सत्ता-स्वभावमें [ अवस्थितं द्रव्यं ] तिष्ठता हुआ द्रव्य [सत् ] सत्ता कहलाता है, [ इति ] इस प्रकार [अयं ] यह [ जिनोपदेशः ] जिनभगवान्‌का उपदेश है । भावार्थ - द्रव्यका जो अस्तित्वरूप स्वभावभूत परिणाम है, उसको सत्ता नामका गुण कहते हैं । यह अस्तित्वरूप सत्तागुण द्रव्यसे ... अभिन्न द्रव्यका स्वभावभूत परिणाम है । और यह सत्ता गुण द्रव्यमें प्रधान है । सत्तामें द्रव्य स्थित रहता है । इसी कारण सत्ता गुणकी प्रधानतासे द्रव्यको सत् कहते हैं, और इस सत्ता गुणसे सत्स्वरूप गुणी द्रव्य जाना जाता है । इस कारण सत्ता गुण है, और द्रव्य गुणी है ॥

गाथा -18 (आचार्य अमृतचंद की टीका अनुसार)
गाथा -120 (आचार्य प्रभाचंद्र  की टीका अनुसार )

णत्थि गुणोत्ति य कोई पज्जाओत्तीह वा विणा दवं ।
दव्वत्तं पुण भावो तम्हा दवं सयं सत्ता ॥ 120 ॥


आगे गुण - गुणीका भेद दूर करते हैं - [इह] इस जगत्में [द्रव्यं विना] द्रव्यके विना [गुण इति] गुण ऐसा [वा] अथवा [पर्यायः इति पर्याय ऐसा [कश्चित् ] कोई पदार्थ [नास्ति नहीं है । [पुनः] और [द्रव्यत्वं] द्रव्यका अस्तित्व [भावः] उसका स्वभावभूत गुण है, [तस्मात् ] इसलिये [द्रव्यं] द्रव्य [स्वयं] आप ही [सत्ता] अस्तित्वरूप सत्ता है। भावार्थ-ऐसा कोई गुण नहीं है, जो द्रव्यके विना पृथक् रहता हो, इसी प्रकार ऐसा कोई पर्याय भी नहीं है, जो द्रव्यसे पृथक् हो। द्रव्य ही में गुण और पर्याय होते हैं, द्रव्यसे पृथक् कोई पदार्थ नहीं है। अतः गुणपर्याय द्रव्यसे अभेदरूप हैं। जैसे सोनेसे पीतत्वादि गुण, कुंडलादि पर्याय पृथक् नहीं पाये जाते, उसी प्रकार द्रव्यसे गुणपर्याय पृथक् नहीं हैं, और सत्ता है, सो वस्तुसे अभिन्न उसका गुण है । इस कारण अस्तित्वरूप सत्ता गुण द्रव्यके पृथक् नहीं है, द्रव्य स्वयं सत्तास्वरूप है

मुनि श्री प्रणम्य सागर जी  प्रवचनसार

गाथा -17
द्रव्यत्व का स्व परिणाम सदा सुहाता अस्तित्वधाम गुण सो जिन शास्त्र गाता ।
सत्ता स्वभाव भर में स्थित द्रव्य सोही , है सत् रहा कि इस भांति कहें विमोही ॥

अन्वयार्थ - ( खलु जो ) वास्तव में जो ( दव्वसहावो परिणामो ) द्रव्य का स्वभाव भत । उत्पादव्यय ध्रौव्यात्मक परिणाम है ( सो ) वह ( सदविसिट्ठो गुणो ) सत्ता से अभिन्न गुण है ( सहावे अवट्टिदं ) स्वभाव में अवस्थित ( दव्यं ) द्रव्य ( सत् ) सत् हैं ( त्ति जिणवदेसो ) ऐसा जो जिनोपदेश । है ( अयं ) वही यह है ।


गाथा -18
पर्याय का जनन भी कब कौन होई ? लो द्रव्य के बिन नीं गुण होय कोई ।
द्रव्यत्व ही तब रहा ध्रुव जन्मनाशी , सत्ता स्वरूप खुद द्रव्य अतः विभासी ll

अन्वयार्थ - ( इह ) इस विश्व में ( गुणो त्ति य कोई ) गुण ऐसा कुछ ( पज्जाओ त्ति वा ) या पर्याय ऐसा कुछ ( दवं विणा णत्थि ) द्रव्य के बिना नहीं होता ; ( पुण दब्बत्तं भावो ) और द्रव्यत्व उत्पादव्यय ध्रौव्यात्मक सद्भाव है ( तम्हा ) इस कारण ( दवं सयं सत्ता ) द्रव्य स्वयं सत्तारूप है l


Manish Jain Luhadia 
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