11-20-2022, 03:28 PM
आचार्य ज्ञानसागरजी महाराज कृत हिन्दी पद्यानुवाद एवं सारांश
गाथा -19,20
इसविधि पदार्थमें द्रव्यार्थिक नयसे सन्मय उत्पत्ति
पर्यायार्थिकसे हो यद्यपि यह असद्भावकी सम्पत्ति ॥
हुआ जीव वही जो कि होरहा होगा भी नरसुरआदि ।
जोवपनेसे रहित कहाँ क्या? यो तत्पनकी यह गा दी ॥ १० ॥
सारांश :- साधारण विचारधाराको सामान्यदृष्टि या द्रव्यार्थिक नय कहते हैं और असाधारण विचारधाराको विशिष्टदृष्टि या पर्यायार्थिक नय कहते हैं। द्रव्यार्थिक जयसे देखनेवर वस्तु जो पहिले थी वही अब भी है और आगे भी रहेगी किन्तु पर्यायार्थिक नयसे देखने पर वस्तु जैसे पहिले थी वैसी अब नहीं है, और ही है एवं आगे भी कुछ और ही हो जायेगी। जैसे इस समय जो मनुष्य है, वह अपने पूर्वजन्ममें पशु था और आगे के जन्ममें देय होगा। इसप्रकार पर्यायार्थिक नयकी दृष्टिसे पदार्थ प्रतिसमय बदलता रहता है, और का और होता रहता है परन्तु जीवसे अजीव कभी नहीं होता है, जीव सदा जीव ही रहता है। जो जीव पहिले पशु पर्यायमें था, वही अब नर पर्यायमें है और आगे देव पर्यायमें भी वही जीव रहेगा, उसके जीवत्वमें कोई भी अन्तर नहीं होता है, जो था वही रहता है फिर भी
गाथा -19,20
इसविधि पदार्थमें द्रव्यार्थिक नयसे सन्मय उत्पत्ति
पर्यायार्थिकसे हो यद्यपि यह असद्भावकी सम्पत्ति ॥
हुआ जीव वही जो कि होरहा होगा भी नरसुरआदि ।
जोवपनेसे रहित कहाँ क्या? यो तत्पनकी यह गा दी ॥ १० ॥
सारांश :- साधारण विचारधाराको सामान्यदृष्टि या द्रव्यार्थिक नय कहते हैं और असाधारण विचारधाराको विशिष्टदृष्टि या पर्यायार्थिक नय कहते हैं। द्रव्यार्थिक जयसे देखनेवर वस्तु जो पहिले थी वही अब भी है और आगे भी रहेगी किन्तु पर्यायार्थिक नयसे देखने पर वस्तु जैसे पहिले थी वैसी अब नहीं है, और ही है एवं आगे भी कुछ और ही हो जायेगी। जैसे इस समय जो मनुष्य है, वह अपने पूर्वजन्ममें पशु था और आगे के जन्ममें देय होगा। इसप्रकार पर्यायार्थिक नयकी दृष्टिसे पदार्थ प्रतिसमय बदलता रहता है, और का और होता रहता है परन्तु जीवसे अजीव कभी नहीं होता है, जीव सदा जीव ही रहता है। जो जीव पहिले पशु पर्यायमें था, वही अब नर पर्यायमें है और आगे देव पर्यायमें भी वही जीव रहेगा, उसके जीवत्वमें कोई भी अन्तर नहीं होता है, जो था वही रहता है फिर भी