06-05-2018, 09:56 AM
श्री जिन सहस्त्रनाम मन्त्रावली द्वितीय अध्याय भाग १
१०१- ॐ ह्रीं अर्हं दिव्यभाषापतये नमः - दिव्यध्वनि के पति होने से ,
१०२-ॐ ह्रीं अर्हं दिव्याय नमः -अत्यंत सुंदर होने से,
१०३-ॐ ह्रीं अर्हं पूतवाचे नमः -भगवान के वचन अतिशय पवित्र होने से ,
१०४-ॐ ह्रीं अर्हं पूतशाशन - नमः शासन पवित्र होने से,
१०५-ॐ ह्रीं अर्हं पूतात्मने नमः -आत्मा पवित्र होने से ,
१०६-ॐ ह्रीं अर्हं परमज्योतिषे नमः -उत्कृष्ट ज्योति स्वरुप होने से
१०७-ॐ ह्रीं अर्हं धर्माध्यक्षाय नमः -धर्म के अध्यक्ष होने से,
१०८-ॐ ह्रीं अर्हं दमीश्वराय नमः -इन्द्रियों के विजेताओं में श्रेष्ठ होने से,
१०९-ॐ ह्रीं अर्हं श्रीपतये नमः -मोक्षरूपी लक्ष्मी के अधिपति होने से,
११०-ॐ ह्रीं अर्हं भगवते नमः -अष्टप्रातिहार्य रूप उत्तम ऐश्वर्य युक्त होने से,
१११-ॐ ह्रीं अर्हं अर्हते नमः -सभी के द्वारा पूजनीय होने से,
११२-ॐ ह्रीं अर्हं अरजसे नमः -कर्मरूपी मल रहित होने से
११३-ॐ ह्रीं अर्हं विरजसे नमः -दर्शनावरण एवं ज्ञानावरण से रहित और भव्य जीवों के कर्ममल को दूर करने से
११४-ॐ ह्रीं अर्हं शुचये नमः -अतिशय पवित्र होने से
११५-ॐ ह्रीं अर्हं तीर्थकृते नमः -धर्मरूप तीर्थ के प्रवर्तक होने से,
११६-ॐ ह्रीं अर्हं केवलिने नमः -केवलज्ञान युक्त होने से,
११७-ॐ ह्रीं अर्हं ईशानाय नमः -अनंत सामर्थ्य युक्त होने से,
११८-ॐ ह्रीं अर्हं पूजार्हाय नमः -पूजनीय होने से,
११९-ॐ ह्रीं अर्हं स्नातकाय नमः -घातिया कर्मों के नष्ट होने से अथवा पूर्ण ज्ञान प्राप्त होने से,
१२०-ॐ ह्रीं अर्हं अमलाय नमः -शरीर मल एवं आत्मा रागद्वेषादि दोषों से रहित होने से
१२१ॐ ह्रीं अर्हं अनंतदीप्तये - नमःकेवलज्ञान रूपी अनंत दीप्ति और शरीर की अपरिमित प्रभा के धारक होने से,
१२२-ॐ ह्रीं अर्हं ज्ञानात्मने नमः -आत्मा ज्ञानस्वरूप होने से,
१२३-ॐ ह्रीं अर्हं स्वयंबुद्धाय नमः -गुरु की सहायता के बिना समस्त पदार्थों का ज्ञान प्राप्त करने से अथवा स्वयं विरक्त होकर मोक्ष मार्ग में प्रवृत होने से
१२४-ॐ ह्रीं अर्हं प्रजापतये नमः -समस्त जनसमूह के रक्षक होने से' ,
१२५-ॐ ह्रीं अर्हं मुक्ताय नमः -कर्म बन्धन रहित होने से ,
१२६-ॐ ह्रीं अर्हं शक्ताय नमः -अनंत बल युक्त होने से,
१२७-ॐ ह्रीं अर्हं निराबाधाय नमः -बाधा-उपसर्ग से रहित होने से,
१२८-ॐ ह्रीं अर्हं निष्कलाय नमः -माया रहित होने से,
१२९-ॐ ह्रीं अर्हं भुवनेश्वराय नमः -तीनों लोक के ईश्वर होने से ,
१३०-ॐ ह्रीं अर्हं निरंजनाय नमः -कर्मरूपी अंजन से रहित होने से',
१३१-ॐ ह्रीं अर्हं जगज्ज्योतिषे नमः -जगत को प्रकाशित करने वाले होने से,
१३२-ॐ ह्रीं अर्हं निरोक्तोक्तये नमः - के वचन सार्थक और पूर्वापर विरोध से रहित होने से,
१३३-ॐ ह्रीं अर्हं निरामयाय नमः -रोगरहित होने से ,
१३४-ॐ ह्रीं अर्हं अचलस्थितये नमः -की स्थिति अचल होने से,
१३५-ॐ ह्रीं अर्हं अक्षोभ्याय नमः -क्षोभ को प्राप्त नही होने से,
१३६-ॐ ह्रीं अर्हं कूटस्थाय नमः -नित्य होने से',
१३७-ॐ ह्रीं अर्हं स्थाणवे नमः - गमनागमन रहित होने से,
१३८-ॐ ह्रीं अर्हं अक्षयाय नमः -क्षयरहित होने से,
१३९-ॐ ह्रीं अर्हं अग्रण्यै नमः -त्रिलोक में सर्वश्रेष्ठ होने से,
१४०-ॐ ह्रीं अर्हं ग्रामण्ये नमः -भव्य जीवों के मोक्ष दाता होने से,
१४१-ॐ ह्रीं अर्हं नेत्रे नमः -जीवों के मार्ग के लिए हितोपदेशक होने से
१४२-ॐ ह्रीं अर्हं प्रणेत्रे नमः -द्वादशांग रूप शास्त्रों के रचियता होने से ,
१४३-ॐ ह्रीं अर्हं न्यायशास्त्रकृते नमः -न्यायशास्त्र के उपदेशक होने से,
१४४-ॐ ह्रीं अर्हं शास्त्रे नमः -हितोपदेशी होने से,
१४५-ॐ ह्रीं अर्हं धर्मपतये नमः -उत्तम क्षमादि धर्मों के स्वामी होने से,
१४६-ॐ ह्रीं अर्हं धर्म्याय नमः -धर्म युक्त होने से,
१४७-ॐ ह्रीं अर्हं धर्मात्माने नमः -आत्मा धर्मरूप अथवा धर्म से उपलक्षित होने से,
१४८-ॐ ह्रीं अर्हं धर्मतीर्थकृते नमः -धर्मतीर्थ के प्रवर्तक होने से,
१४९-ॐ ह्रीं अर्हं वृषध्वजाय नमः -(ऋषभदेव जी) की ध्वजा में वृष (बैल)का चिन्ह अथवा /धर्म ही ध्वजा होने से,
१५०-ॐ ह्रीं अर्हं वृषाधीशाय नमः -वृष /धर्म के पति होने से,,
१०१- ॐ ह्रीं अर्हं दिव्यभाषापतये नमः - दिव्यध्वनि के पति होने से ,
१०२-ॐ ह्रीं अर्हं दिव्याय नमः -अत्यंत सुंदर होने से,
१०३-ॐ ह्रीं अर्हं पूतवाचे नमः -भगवान के वचन अतिशय पवित्र होने से ,
१०४-ॐ ह्रीं अर्हं पूतशाशन - नमः शासन पवित्र होने से,
१०५-ॐ ह्रीं अर्हं पूतात्मने नमः -आत्मा पवित्र होने से ,
१०६-ॐ ह्रीं अर्हं परमज्योतिषे नमः -उत्कृष्ट ज्योति स्वरुप होने से
१०७-ॐ ह्रीं अर्हं धर्माध्यक्षाय नमः -धर्म के अध्यक्ष होने से,
१०८-ॐ ह्रीं अर्हं दमीश्वराय नमः -इन्द्रियों के विजेताओं में श्रेष्ठ होने से,
१०९-ॐ ह्रीं अर्हं श्रीपतये नमः -मोक्षरूपी लक्ष्मी के अधिपति होने से,
११०-ॐ ह्रीं अर्हं भगवते नमः -अष्टप्रातिहार्य रूप उत्तम ऐश्वर्य युक्त होने से,
१११-ॐ ह्रीं अर्हं अर्हते नमः -सभी के द्वारा पूजनीय होने से,
११२-ॐ ह्रीं अर्हं अरजसे नमः -कर्मरूपी मल रहित होने से
११३-ॐ ह्रीं अर्हं विरजसे नमः -दर्शनावरण एवं ज्ञानावरण से रहित और भव्य जीवों के कर्ममल को दूर करने से
११४-ॐ ह्रीं अर्हं शुचये नमः -अतिशय पवित्र होने से
११५-ॐ ह्रीं अर्हं तीर्थकृते नमः -धर्मरूप तीर्थ के प्रवर्तक होने से,
११६-ॐ ह्रीं अर्हं केवलिने नमः -केवलज्ञान युक्त होने से,
११७-ॐ ह्रीं अर्हं ईशानाय नमः -अनंत सामर्थ्य युक्त होने से,
११८-ॐ ह्रीं अर्हं पूजार्हाय नमः -पूजनीय होने से,
११९-ॐ ह्रीं अर्हं स्नातकाय नमः -घातिया कर्मों के नष्ट होने से अथवा पूर्ण ज्ञान प्राप्त होने से,
१२०-ॐ ह्रीं अर्हं अमलाय नमः -शरीर मल एवं आत्मा रागद्वेषादि दोषों से रहित होने से
१२१ॐ ह्रीं अर्हं अनंतदीप्तये - नमःकेवलज्ञान रूपी अनंत दीप्ति और शरीर की अपरिमित प्रभा के धारक होने से,
१२२-ॐ ह्रीं अर्हं ज्ञानात्मने नमः -आत्मा ज्ञानस्वरूप होने से,
१२३-ॐ ह्रीं अर्हं स्वयंबुद्धाय नमः -गुरु की सहायता के बिना समस्त पदार्थों का ज्ञान प्राप्त करने से अथवा स्वयं विरक्त होकर मोक्ष मार्ग में प्रवृत होने से
१२४-ॐ ह्रीं अर्हं प्रजापतये नमः -समस्त जनसमूह के रक्षक होने से' ,
१२५-ॐ ह्रीं अर्हं मुक्ताय नमः -कर्म बन्धन रहित होने से ,
१२६-ॐ ह्रीं अर्हं शक्ताय नमः -अनंत बल युक्त होने से,
१२७-ॐ ह्रीं अर्हं निराबाधाय नमः -बाधा-उपसर्ग से रहित होने से,
१२८-ॐ ह्रीं अर्हं निष्कलाय नमः -माया रहित होने से,
१२९-ॐ ह्रीं अर्हं भुवनेश्वराय नमः -तीनों लोक के ईश्वर होने से ,
१३०-ॐ ह्रीं अर्हं निरंजनाय नमः -कर्मरूपी अंजन से रहित होने से',
१३१-ॐ ह्रीं अर्हं जगज्ज्योतिषे नमः -जगत को प्रकाशित करने वाले होने से,
१३२-ॐ ह्रीं अर्हं निरोक्तोक्तये नमः - के वचन सार्थक और पूर्वापर विरोध से रहित होने से,
१३३-ॐ ह्रीं अर्हं निरामयाय नमः -रोगरहित होने से ,
१३४-ॐ ह्रीं अर्हं अचलस्थितये नमः -की स्थिति अचल होने से,
१३५-ॐ ह्रीं अर्हं अक्षोभ्याय नमः -क्षोभ को प्राप्त नही होने से,
१३६-ॐ ह्रीं अर्हं कूटस्थाय नमः -नित्य होने से',
१३७-ॐ ह्रीं अर्हं स्थाणवे नमः - गमनागमन रहित होने से,
१३८-ॐ ह्रीं अर्हं अक्षयाय नमः -क्षयरहित होने से,
१३९-ॐ ह्रीं अर्हं अग्रण्यै नमः -त्रिलोक में सर्वश्रेष्ठ होने से,
१४०-ॐ ह्रीं अर्हं ग्रामण्ये नमः -भव्य जीवों के मोक्ष दाता होने से,
१४१-ॐ ह्रीं अर्हं नेत्रे नमः -जीवों के मार्ग के लिए हितोपदेशक होने से
१४२-ॐ ह्रीं अर्हं प्रणेत्रे नमः -द्वादशांग रूप शास्त्रों के रचियता होने से ,
१४३-ॐ ह्रीं अर्हं न्यायशास्त्रकृते नमः -न्यायशास्त्र के उपदेशक होने से,
१४४-ॐ ह्रीं अर्हं शास्त्रे नमः -हितोपदेशी होने से,
१४५-ॐ ह्रीं अर्हं धर्मपतये नमः -उत्तम क्षमादि धर्मों के स्वामी होने से,
१४६-ॐ ह्रीं अर्हं धर्म्याय नमः -धर्म युक्त होने से,
१४७-ॐ ह्रीं अर्हं धर्मात्माने नमः -आत्मा धर्मरूप अथवा धर्म से उपलक्षित होने से,
१४८-ॐ ह्रीं अर्हं धर्मतीर्थकृते नमः -धर्मतीर्थ के प्रवर्तक होने से,
१४९-ॐ ह्रीं अर्हं वृषध्वजाय नमः -(ऋषभदेव जी) की ध्वजा में वृष (बैल)का चिन्ह अथवा /धर्म ही ध्वजा होने से,
१५०-ॐ ह्रीं अर्हं वृषाधीशाय नमः -वृष /धर्म के पति होने से,,