06-27-2019, 08:03 AM
जिनवाणी
जैन धर्म में शास्त्रों को ४ अलग-अलग अनुयोग में विभाजित किया गया है। जैन शास्त्रो की कथन पद्धति को अनुयोग कहते हैं। हर अनुयोग के अपने अपने प्रमुख ग्रन्थ है। यह ४ अनुयोग क्रमशः
· प्रथमानुयोग -६३ शलाका पुरुषो की कथाएँ व पुराण।
o प्रमुख ग्रंथ पद्मपुराण, महापुराण, आदिपुराण और अन्य।
· करणानुयोग - कर्म सिद्धान्त व लोक विभाग के शास्त्र।
o प्रमुख ग्रंथ षटखण्डागम, कषायपाहड और अन्य।
· चरणानुयोग - श्रावक और मुनि का आचार-विचार।
o प्रमुख ग्रंथ रत्नकरण्ड श्रावकाचार, पद्म नंदी श्रावकाचार और अन्य।
· द्रव्यानुयोग - चेतन-अचेतन द्रव्यों का स्वरूप व तत्व का निर्देश।
o प्रमुख ग्रंथ समयसार, प्रवचनसार और अन्य।
लेकिन फिर भी यदि जैन धर्म के किसी एक ग्रंथ को सबसे प्रमुख कह सकते है तो वो निश्चित ही षटखण्डागम होगा।
जैन धर्म में शास्त्रों को ४ अलग-अलग अनुयोग में विभाजित किया गया है। जैन शास्त्रो की कथन पद्धति को अनुयोग कहते हैं। हर अनुयोग के अपने अपने प्रमुख ग्रन्थ है। यह ४ अनुयोग क्रमशः
· प्रथमानुयोग -६३ शलाका पुरुषो की कथाएँ व पुराण।
o प्रमुख ग्रंथ पद्मपुराण, महापुराण, आदिपुराण और अन्य।
· करणानुयोग - कर्म सिद्धान्त व लोक विभाग के शास्त्र।
o प्रमुख ग्रंथ षटखण्डागम, कषायपाहड और अन्य।
· चरणानुयोग - श्रावक और मुनि का आचार-विचार।
o प्रमुख ग्रंथ रत्नकरण्ड श्रावकाचार, पद्म नंदी श्रावकाचार और अन्य।
· द्रव्यानुयोग - चेतन-अचेतन द्रव्यों का स्वरूप व तत्व का निर्देश।
o प्रमुख ग्रंथ समयसार, प्रवचनसार और अन्य।
लेकिन फिर भी यदि जैन धर्म के किसी एक ग्रंथ को सबसे प्रमुख कह सकते है तो वो निश्चित ही षटखण्डागम होगा।