07-03-2022, 06:04 AM
प्रदार्थ विज्ञान - अध्याय 6- जीव के धर्म तथा गुण
जिनेन्द्र वर्णी
१४. अवधिज्ञान
अवधिज्ञान एक विशेष प्रकारका ज्ञान है, जिसके द्वारा निकटस्थ अथवा अत्यन्त दूरस्थ भी जड़ या चेतन पदार्थोंका भूत भविष्यत् सम्वन्धी सारा चित्र-विचित्र हाल, हाथपर रखे आंवलेवत् प्रत्यक्ष दिखाई देता है। इस ज्ञानके द्वारा योगीजन इतना तक बता देते हैं कि तू पहले कई भवोमे कहाँ-कहाँ तथा किस-किस व्यक्तिके यहाँ जन्मा था। मनुष्य योनिमे था या पशु आदि अन्य योनियोमे । वहां तूने किस-किस व्यक्ति के द्वारा किस-किस प्रकार क्या-क्या दु.ख-सुख सहा था, और आगेके कई भवोमे कहाँ कहाँ किस-किस व्यक्तिके यहाँ अथवा किस-किस योनिमे जन्म कर, किस-किस व्यक्तिके द्वारा किस-किस प्रकार क्या-क्या दु.ख सुख भोगेगा ।
यद्यपि किन्ही ज्ञानो गृहस्थोमे तथा पशु-पक्षियोंमें भी कदाचित् कुछ मात्रामे यह ज्ञान हो जाना सम्भव है, परन्तु मुख्यत तपस्वी
योगियोको ही उनके तपके प्रभावसे प्रकट होता है। यह ज्ञान भी किन्हीको हीन तथा किन्हीको अधिक होता है। इस ज्ञानके दो भेद हे – अवधिज्ञान तथा विभगज्ञान । अवधिज्ञान तो ऊपर बता ही दिया गया । विभंगज्ञान नारकियोको तथा नीच अज्ञानी देवोको - होता है। इस ज्ञानके द्वारा भूत-भविष्यत्की वात तो अवश्य जानों जाती है, परन्तु ऐसी बातें ही जानी जाती है, जिनको जानकर कि द्वेष, लड़ाई, मार-पीट होने लगे । कोई भी प्रेमवर्धक बात जानने मे नही आती। जैसे कि 'इस व्यक्तिने पूर्व भवमे मेरी स्त्रीका हरण किया था', यह बात तो जाननेमे आ जाती है, पर इस व्यक्ति ने मेरे साथ यह उपकार किया था, ऐसी वातकी तरफ ध्यान भी नही जाता । इसका कारण भी यही है कि अत्यन्त नोची प्रकृतिके मलिन अन्तः करणमे इसका उदय होता है। नरक तथा देवगति मे सभीको यह स्वाभाविक होता है ।
१५ मन पर्यय ज्ञान
मन पर्यय तो और भी विचित्र प्रकारका ज्ञान है। इसके द्वारा योगी अपने सामने आये हुए व्यक्ति के मनको अत्यन्त सूक्ष्म वातको भी प्रत्यक्ष जान लेते हैं। यहां तक भी जान लेते है कि कुछ दिन या घण्टो पहले इसने क्या सोचा था और कुछ दिन या घण्टो पश्चात् यह क्या सोचेगा ? यह ज्ञान गृहस्थको कदापि नही हो सकता, केवल बडे-बडे विशेष ज्ञानी-तपस्वियोको ही होता है। यह भी सबको बरावर नही होता बल्कि होन अधिक होता है।
Taken from प्रदार्थ विज्ञान - अध्याय 6 - जीवके धर्म तथा गुण - जिनेन्द्र वर्णी
Padarth-Vigyan- chapter-6.pdf
जिनेन्द्र वर्णी
१४. अवधिज्ञान
अवधिज्ञान एक विशेष प्रकारका ज्ञान है, जिसके द्वारा निकटस्थ अथवा अत्यन्त दूरस्थ भी जड़ या चेतन पदार्थोंका भूत भविष्यत् सम्वन्धी सारा चित्र-विचित्र हाल, हाथपर रखे आंवलेवत् प्रत्यक्ष दिखाई देता है। इस ज्ञानके द्वारा योगीजन इतना तक बता देते हैं कि तू पहले कई भवोमे कहाँ-कहाँ तथा किस-किस व्यक्तिके यहाँ जन्मा था। मनुष्य योनिमे था या पशु आदि अन्य योनियोमे । वहां तूने किस-किस व्यक्ति के द्वारा किस-किस प्रकार क्या-क्या दु.ख-सुख सहा था, और आगेके कई भवोमे कहाँ कहाँ किस-किस व्यक्तिके यहाँ अथवा किस-किस योनिमे जन्म कर, किस-किस व्यक्तिके द्वारा किस-किस प्रकार क्या-क्या दु.ख सुख भोगेगा ।
यद्यपि किन्ही ज्ञानो गृहस्थोमे तथा पशु-पक्षियोंमें भी कदाचित् कुछ मात्रामे यह ज्ञान हो जाना सम्भव है, परन्तु मुख्यत तपस्वी
योगियोको ही उनके तपके प्रभावसे प्रकट होता है। यह ज्ञान भी किन्हीको हीन तथा किन्हीको अधिक होता है। इस ज्ञानके दो भेद हे – अवधिज्ञान तथा विभगज्ञान । अवधिज्ञान तो ऊपर बता ही दिया गया । विभंगज्ञान नारकियोको तथा नीच अज्ञानी देवोको - होता है। इस ज्ञानके द्वारा भूत-भविष्यत्की वात तो अवश्य जानों जाती है, परन्तु ऐसी बातें ही जानी जाती है, जिनको जानकर कि द्वेष, लड़ाई, मार-पीट होने लगे । कोई भी प्रेमवर्धक बात जानने मे नही आती। जैसे कि 'इस व्यक्तिने पूर्व भवमे मेरी स्त्रीका हरण किया था', यह बात तो जाननेमे आ जाती है, पर इस व्यक्ति ने मेरे साथ यह उपकार किया था, ऐसी वातकी तरफ ध्यान भी नही जाता । इसका कारण भी यही है कि अत्यन्त नोची प्रकृतिके मलिन अन्तः करणमे इसका उदय होता है। नरक तथा देवगति मे सभीको यह स्वाभाविक होता है ।
१५ मन पर्यय ज्ञान
मन पर्यय तो और भी विचित्र प्रकारका ज्ञान है। इसके द्वारा योगी अपने सामने आये हुए व्यक्ति के मनको अत्यन्त सूक्ष्म वातको भी प्रत्यक्ष जान लेते हैं। यहां तक भी जान लेते है कि कुछ दिन या घण्टो पहले इसने क्या सोचा था और कुछ दिन या घण्टो पश्चात् यह क्या सोचेगा ? यह ज्ञान गृहस्थको कदापि नही हो सकता, केवल बडे-बडे विशेष ज्ञानी-तपस्वियोको ही होता है। यह भी सबको बरावर नही होता बल्कि होन अधिक होता है।
Taken from प्रदार्थ विज्ञान - अध्याय 6 - जीवके धर्म तथा गुण - जिनेन्द्र वर्णी
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