08-04-2022, 08:44 AM
श्रीमत्कुन्दकुन्दाचार्यविरचितः प्रवचनसारः
आचार्य कुन्दकुन्द विरचित
प्रवचनसार
गाथा -38 (आचार्य अमृतचंद की टीका अनुसार)
गाथा -39 (आचार्य जयसेन की टीका अनुसार )
जेणेव हि संजाया जे खलु णट्ठा भवीय पज्जाया।
ते होंति असन्भूदा पजाया णाणपञ्चक्खा // 38 //
अन्वयार्थ-(जे पज्जाया) जो पर्यायें (हि) वास्तव में (णेव संजादा) उत्पन्न नहीं हुई हैं. तथा (जे) जो पर्यायें (खलु) वास्तव में (भवीय णट्ठा) उत्पन्न होकर नष्ट हो गई है (ते) वे (असब्भूदा पज्जाया) अविद्यमान पर्यायें (णाणपच्चक्खा होंति) ज्ञान प्रत्यक्ष है।
आगे जो पर्याय वर्तमान पर्याय नहीं हैं, उनको किसी एक प्रकार वर्तमान दिखलाते हैं-[हि निश्चय करके [ये पर्यायाः] जो पर्याय [नैव संजाताः] उत्पन्न ही नहीं हुए हैं, तथा [ये] जो [खलु] निश्चयसे [भूत्वा] उत्पन्न होकर [नष्टाः ] नष्ट होगये हैं, [ते] वे सब अतीत अनागत [पर्यायाः] पर्याय [अस द्भूताः] वर्तमानकालके गोचर नहीं [भवन्ति] होते हैं, तो भी [ज्ञानप्रत्यक्षाः] केवलज्ञानमें प्रत्यक्ष हैं / भावार्थ-जो उत्पन्न नहीं हुए, ऐसे अनागत अर्थात् भविष्यत्कालके और जो उत्पन्न होकर नष्ट होगये, ऐसे अतीतकालके पर्यायोंकों असद्भूत कहते हैं, क्योंकि वे वर्तमान नहीं हैं। परंतु ज्ञानकी अपेक्षा ये ही दोनों पर्याय सद्भूत भी हैं, क्योंकि केवलज्ञानमें प्रतिबिम्बित हैं। और जैसे भूत-भविष्यतकालके चौबीस तीर्थंकरोंके आकार पाषाण (पत्थर ) के स्तंभ (खंभा ) में चित्रित रहते हैं, उसी प्रकार ज्ञानमें अतीत अनागत ज्ञेयोंके आकार प्रतिबिम्बित होकर वर्तमान होते हैं |
मुनि श्री प्रणम्य सागर जी प्रवचनसार गाथा - 38
पूज्य मुनि श्री इस गाथा संख्या 38 की वाचना से आप जानेंगे कि
* पर्याय कितने प्रकार की होती हैं ?
* क्या पर्याय शरीर आश्रित है ?
* वे पर्याय का गहराई से अर्थ समझाते हुए बताते हैं कि द्रव्य(substance) के modes को हम उसकी पर्याय कहते हैं । द्रव्य की पर्याय उत्पन्न होती है और नष्ट होती है।
* द्रव्य का स्वभाव पर्याय नहि है, परंतु अनेक पर्यायों को उत्पन्न करना है।
* अनेक द्रव्यों की अनेक पर्याएँ उन केवलज्ञानि सर्वज्ञ (omniscient) भगवान के ज्ञान में सहजता से झलकती रहती हैं।
* मन को द्रव्य मेन लगाने से चित्त शांत होता है क्यूँकि सिर्फ़ द्रव्य स्व का है, पर्याय नहि।
आचार्य कुन्दकुन्द विरचित
प्रवचनसार
गाथा -38 (आचार्य अमृतचंद की टीका अनुसार)
गाथा -39 (आचार्य जयसेन की टीका अनुसार )
जेणेव हि संजाया जे खलु णट्ठा भवीय पज्जाया।
ते होंति असन्भूदा पजाया णाणपञ्चक्खा // 38 //
अन्वयार्थ-(जे पज्जाया) जो पर्यायें (हि) वास्तव में (णेव संजादा) उत्पन्न नहीं हुई हैं. तथा (जे) जो पर्यायें (खलु) वास्तव में (भवीय णट्ठा) उत्पन्न होकर नष्ट हो गई है (ते) वे (असब्भूदा पज्जाया) अविद्यमान पर्यायें (णाणपच्चक्खा होंति) ज्ञान प्रत्यक्ष है।
आगे जो पर्याय वर्तमान पर्याय नहीं हैं, उनको किसी एक प्रकार वर्तमान दिखलाते हैं-[हि निश्चय करके [ये पर्यायाः] जो पर्याय [नैव संजाताः] उत्पन्न ही नहीं हुए हैं, तथा [ये] जो [खलु] निश्चयसे [भूत्वा] उत्पन्न होकर [नष्टाः ] नष्ट होगये हैं, [ते] वे सब अतीत अनागत [पर्यायाः] पर्याय [अस द्भूताः] वर्तमानकालके गोचर नहीं [भवन्ति] होते हैं, तो भी [ज्ञानप्रत्यक्षाः] केवलज्ञानमें प्रत्यक्ष हैं / भावार्थ-जो उत्पन्न नहीं हुए, ऐसे अनागत अर्थात् भविष्यत्कालके और जो उत्पन्न होकर नष्ट होगये, ऐसे अतीतकालके पर्यायोंकों असद्भूत कहते हैं, क्योंकि वे वर्तमान नहीं हैं। परंतु ज्ञानकी अपेक्षा ये ही दोनों पर्याय सद्भूत भी हैं, क्योंकि केवलज्ञानमें प्रतिबिम्बित हैं। और जैसे भूत-भविष्यतकालके चौबीस तीर्थंकरोंके आकार पाषाण (पत्थर ) के स्तंभ (खंभा ) में चित्रित रहते हैं, उसी प्रकार ज्ञानमें अतीत अनागत ज्ञेयोंके आकार प्रतिबिम्बित होकर वर्तमान होते हैं |
मुनि श्री प्रणम्य सागर जी प्रवचनसार गाथा - 38
पूज्य मुनि श्री इस गाथा संख्या 38 की वाचना से आप जानेंगे कि
* पर्याय कितने प्रकार की होती हैं ?
* क्या पर्याय शरीर आश्रित है ?
* वे पर्याय का गहराई से अर्थ समझाते हुए बताते हैं कि द्रव्य(substance) के modes को हम उसकी पर्याय कहते हैं । द्रव्य की पर्याय उत्पन्न होती है और नष्ट होती है।
* द्रव्य का स्वभाव पर्याय नहि है, परंतु अनेक पर्यायों को उत्पन्न करना है।
* अनेक द्रव्यों की अनेक पर्याएँ उन केवलज्ञानि सर्वज्ञ (omniscient) भगवान के ज्ञान में सहजता से झलकती रहती हैं।
* मन को द्रव्य मेन लगाने से चित्त शांत होता है क्यूँकि सिर्फ़ द्रव्य स्व का है, पर्याय नहि।