09-04-2017, 09:09 AM
उत्तम सत्यधर्म
धर्म के सत्य लक्षण मे सत्य के दो अर्थ है - सत्य धर्म व सत्य वचन। सत्य धर्म तो आत्मा का स्वभाव होता है वह तो कीट, पतंग से लगाकर सिध्द भगवान तक सब मे होता है। सत्य वचन सिध्दो मे नही संसारी जीवो मे होता है। वचन की शुध्दि के अर्थ- वचन गुप्ति भाषा समिति। सत्य धर्म मे ये तीन उपाय बताये है - जहाँ तक हो न बोले, आवश्यक हो तो थोडा बोले, धर्म प्रभावना के लिए अधिक भी बोले।
जैसा देखा वैसा बोलना सत्य नही अपितु जिससे किसी के प्राणो का घात ना हो वैसा बोलना सत्य कहा जाता है। सिर्फ़ 'अज' शब्द का अर्थ बकरा कहने से राजा वसु नरक मे गया।
'अन्धे की पुत्र अन्धे होते है' ऐसा कटु शब्द द्रौपदी के द्वारा दुर्योधन के लिए बोल दिये जाने से इतना बडा महाभारत युद्ध हुआ। शस्त्र का घाव भर जाता है किन्तु शब्द का घाव नही भरता अतः परहितकारी, मिष्ट, कर्णप्रिय, सीमित वचन बोलना चाहिये।
द्रव्य का लक्षण है सत् और आत्मा भी द्रव्य है । *सत् स्वभावी आत्मा के आश्रय से वीतरागी परिणति ही निश्चय सत्य धर्म है तथा वाणी से सत्य बोलना व्यवहार सत्य धर्म है।*
अन्य धर्मों की तरह ये भी आत्मा का धर्म है।
जब भी सत्य धर्म की बात आती है तो हमारा ध्यान सत्य बोलने तथा झूठ ना बोलने पर जाता है।जबकि सत्य बोलना या झूठ ना बोलना ये तो वाणी की पर्याय है।
यदि सत्य बोलने को ही सत्य धर्म कहा जाये तो सिद्धों के इसका अभाव हो जायेगा जो कि गलत है।
धर्म तथा धर्म का फल आत्मा को प्राप्त होता है।शब्द(भाषा वर्गणा )पुदगल है तो भाषा से अर्थात पुदगल का फल आत्मा को कैसे मिल सकता है।पुदगल और आत्मा में तो अत्यंताभाव है।
कोई कहता है कि जैसा देखा हो या सुना हो,वैसा ही कहना सत्य है।क्या ये सही है? एक उदाहरण से समझते है।मानलो किसी ने किसी की हत्या की कहानी सुनी और उसे सुनकर उसने पुलिस में रिपोर्ट लिखा दी लेकिन ये भी तो हो सकता है वह नाटक का हिस्सा हो इसलिए हमें हमेशा सत्य बोलना चाहिए
पूजा में लिखा है ----------
*साँच जवाहर खोल सतवादी जग में सुखी*
अरे जरा विचार करो सत्य जवाहर की तरह बेश कीमती होता है। सत्य रत्न है सत्य बोलने बाला जगत में सुखी है किंतु आज भौतिकता की चकाचौंध में लोभ के कारण झूठ पर झूठ बोलकर पाप करता है। आज नियम लो में कभी झूठ नही बोलूंगा तो आपकी आत्मा निर्मल और पवित्र बनेगी।
धर्म के सत्य लक्षण मे सत्य के दो अर्थ है - सत्य धर्म व सत्य वचन। सत्य धर्म तो आत्मा का स्वभाव होता है वह तो कीट, पतंग से लगाकर सिध्द भगवान तक सब मे होता है। सत्य वचन सिध्दो मे नही संसारी जीवो मे होता है। वचन की शुध्दि के अर्थ- वचन गुप्ति भाषा समिति। सत्य धर्म मे ये तीन उपाय बताये है - जहाँ तक हो न बोले, आवश्यक हो तो थोडा बोले, धर्म प्रभावना के लिए अधिक भी बोले।
जैसा देखा वैसा बोलना सत्य नही अपितु जिससे किसी के प्राणो का घात ना हो वैसा बोलना सत्य कहा जाता है। सिर्फ़ 'अज' शब्द का अर्थ बकरा कहने से राजा वसु नरक मे गया।
'अन्धे की पुत्र अन्धे होते है' ऐसा कटु शब्द द्रौपदी के द्वारा दुर्योधन के लिए बोल दिये जाने से इतना बडा महाभारत युद्ध हुआ। शस्त्र का घाव भर जाता है किन्तु शब्द का घाव नही भरता अतः परहितकारी, मिष्ट, कर्णप्रिय, सीमित वचन बोलना चाहिये।
द्रव्य का लक्षण है सत् और आत्मा भी द्रव्य है । *सत् स्वभावी आत्मा के आश्रय से वीतरागी परिणति ही निश्चय सत्य धर्म है तथा वाणी से सत्य बोलना व्यवहार सत्य धर्म है।*
अन्य धर्मों की तरह ये भी आत्मा का धर्म है।
जब भी सत्य धर्म की बात आती है तो हमारा ध्यान सत्य बोलने तथा झूठ ना बोलने पर जाता है।जबकि सत्य बोलना या झूठ ना बोलना ये तो वाणी की पर्याय है।
यदि सत्य बोलने को ही सत्य धर्म कहा जाये तो सिद्धों के इसका अभाव हो जायेगा जो कि गलत है।
धर्म तथा धर्म का फल आत्मा को प्राप्त होता है।शब्द(भाषा वर्गणा )पुदगल है तो भाषा से अर्थात पुदगल का फल आत्मा को कैसे मिल सकता है।पुदगल और आत्मा में तो अत्यंताभाव है।
कोई कहता है कि जैसा देखा हो या सुना हो,वैसा ही कहना सत्य है।क्या ये सही है? एक उदाहरण से समझते है।मानलो किसी ने किसी की हत्या की कहानी सुनी और उसे सुनकर उसने पुलिस में रिपोर्ट लिखा दी लेकिन ये भी तो हो सकता है वह नाटक का हिस्सा हो इसलिए हमें हमेशा सत्य बोलना चाहिए
पूजा में लिखा है ----------
*साँच जवाहर खोल सतवादी जग में सुखी*
अरे जरा विचार करो सत्य जवाहर की तरह बेश कीमती होता है। सत्य रत्न है सत्य बोलने बाला जगत में सुखी है किंतु आज भौतिकता की चकाचौंध में लोभ के कारण झूठ पर झूठ बोलकर पाप करता है। आज नियम लो में कभी झूठ नही बोलूंगा तो आपकी आत्मा निर्मल और पवित्र बनेगी।