06-03-2018, 11:17 AM
श्री जिन सहस्त्रनाम मन्त्रावलि प्रथम अध्याय भाग २
५१- ॐ ह्रीं अर्हं पराय नमः- समस्त जीवों के पालक अथवा समस्त ज्ञान आदि गुणों की प्राप्ति होने से,
५२- ॐ ह्रीं अर्हं परतराय नमः -संसार में सर्वश्रेष्ठ होने से,
५३- ॐ ह्रीं अर्हं सूक्ष्माय नमः -का आकार इन्द्रियों द्वारा नही जानने से या नामकर्म के क्षय होने से सूक्ष्मत्व गुण प्रकट होने से,
५४- ॐ ह्रीं अर्हं परमेष्ठिने नमः -परमपद में स्थित होने से,
५५- ॐ ह्रीं अर्हं सनातनाय नमः -सदा एक समान विध्यमान रहने से,
५६- ॐ ह्रीं अर्हं स्वयंज्योतिषे नमः -स्वयं प्रकाशमान रहने से,
५७- ॐ ह्रीं अर्हं अजाय नमः -संसार में पुन:उत्पन्न नही होने से,
५८- ॐ ह्रीं अर्हं अजन्मने नमः -जन्मरहित होने से,
५९- ॐ ह्रीं अर्हं ब्रह्मयोनये नमः- ब्रह्म,अर्थात वेद (द्वादशांग शास्त्र) की उत्पत्ति में कारण होने से
६०- ॐ ह्रीं अर्हं अयोनिजाय नमः- चौरासी लाख योनियों में जन्म नही लेने से ,
६१- ॐ ह्रीं अर्हं मोहरये नमः -मोहरूपी शत्रु पर विजयी होने से ,
६२-ॐ ह्रीं अर्हं विजयिने नमः
६३- ॐ ह्रीं अर्हं जेत्रे नमः -सर्वदा सर्वोत्कृष्ट रूप में विध्यमान होने से,,
६४- ॐ ह्रीं अर्हं धर्मचक्रिणे नमः -धर्म चक्र के प्रवर्तक होने से
६५- ॐ ह्रीं अर्हं दयाध्वजाय नमः - दया की ध्वजा होने से ,
६६- ॐ ह्रीं अर्हं प्रशांतारये नमः -कर्म शत्रु शांत होने से
६७- ॐ ह्रीं अर्हं अनन्तात्मने नमः -की आत्मा ,सभी के असमर्थ होने से
६८- ॐ ह्रीं अर्हं योगीने नमः -योग/ केवलज्ञानादि की अपूर्व प्राप्ति अथवा ध्यान,,मोक्ष के हेतु सम्यग्दर्शन से युक्त होने से
६९- ॐ ह्रीं अर्हं योगीश्वरार्चिताय नमः -योगियों/मुनियों के आदिश्वरों द्वारा पूजित होने से
७०- ॐ ह्रीं अर्हं ब्रह्मविदे नमः -ब्रह्म अर्थात शुद्ध आत्मस्वरूप के ज्ञाता होने से,
७१- ॐ ह्रीं अर्हं ब्रह्मतत्वज्ञाय नमः -ब्रह्मचर्य अथवा आत्मारूपी तत्वों के रहस्यों के ज्ञाता होने से ,
७२- ॐ ह्रीं अर्हं ब्र्ह्मोद्याविदे नमः -पूर्व ब्रह्मा द्वारा कहे हुए समस्त तत्वों / केवलज्ञानरूपी आत्म विद्या के ज्ञाता होने से
७३- ॐ ह्रीं अर्हं यतीश्वराय नमः -मोक्ष प्राप्ति में लीन मुनियों के स्वामी होने से ,
७४- ॐ ह्रीं अर्हं सिध्दाय नमः -भावकर्मरूप मल से रहित होने से,
७५- ॐ ह्रीं अर्हं बुद्धाय नमः -संसार के समस्त पदार्थों के ज्ञाता और केवलज्ञानरूपी बुद्धि से युक्त होने से,
७६- ॐ ह्रीं अर्हं प्रबुद्धात्माने नमः - की आत्मा सदा शुद्ध ज्ञान से प्रकाशित रहने से,,
७७- ॐ ह्रीं अर्हं सिद्धार्थाय नमः -समस्त प्रयोजनो के सिद्ध होने से,
७८- ॐ ह्रीं अर्हं सिद्धशासनाय नमः -का शासन सिद्ध अर्थात प्रसिद्ध होने से ,
७९- ॐ ह्रीं अर्हं सिध्दसिद्धांतविदे नमः -द्वादशांग सिद्धांत के ज्ञाता होनेसे ,
८०- ॐ ह्रीं अर्हं ध्येयाय नमः - सभी लोगो द्वारा ध्यान किये जाने से ,,
८१- ॐ ह्रीं अर्हं सिद्धसाध्याय नमः - के समस्त सिद्ध होने योग्य कार्य सिद्ध होने से ,
८२- ॐ ह्रीं अर्हं जगद्धिताय नमः - समस्त कार्य करने वाले होने से,
८३- ॐ ह्रीं अर्हं सहिष्णवे नमः -सहनशील / क्षमा गुण के भंडार होने से ,
८४- ॐ ह्रीं अर्हं अच्युताय नमः - ज्ञानादि गुणों से कभी च्युत नही होने से,,
८५- ॐ ह्रीं अर्हं अनंताय नमः -भगवान विनाश रहित होने से ,
८६- ॐ ह्रीं अर्हं प्रभविष्णवे नमः -प्रभावशाली होने से ,
८७- ॐ ह्रीं अर्हं भवोद्भवाय नमः -संसार में सर्वोत्कृष्ट जन्म होने से,,
८८- ॐ ह्रीं अर्हं प्रभूष्णवे नमः -शक्तिशाली होने से ,
८९- ॐ ह्रीं अर्हं अजराय नमः -वृद्धावस्था रहितहोने से
९०- ॐ ह्रीं अर्हं अयज्याय नमः -कभी जीर्ण नही होने से,,
९१- ॐ ह्रीं अर्हं भ्राजिष्णवे नमः -ज्ञानादि गुणों से अतिशय देदीप्यमान होने से,,
९२- ॐ ह्रीं अर्हं धीश्वराय नमः -केवलज्ञानरूपी बुद्धि के ईश्वर होने से ,
९३- ॐ ह्रीं अर्हं अव्ययाय नमः - कभी नष्ट नही होने से,,,
९४- ॐ ह्रीं अर्हं विभावसे नमः - मोहरूपी अन्धकार को नष्ट कर सूर्य के समान होने से,
९५- ॐ ह्रीं अर्हं असम्भूष्णवे नमः पुन: उत्पन्न नही होने से,,
९६- ॐ ह्रीं अर्हं स्वयम्भूषणवे नमः -स्वयं इस अवस्था को प्राप्त होने से,,
९७- ॐ ह्रीं अर्हं पुरातनाय नमः - द्रव्यार्थिक नय की अपेक्षा अनदि सिद्ध होने से
९८- ॐ ह्रीं अर्हं परमात्मने नमः -आत्मा अतिशय उत्कृष्ट होने से
९९- ॐ ह्रीं अर्हं परम ज्योतिषे नमः -उत्कृष्ट ज्योति स्वरुप होने से,
१००- ॐ ह्रीं अर्हं त्रिजगत् परमेश्वराय नमः -तीनों लोको के ईश्वर होने से ,
५१- ॐ ह्रीं अर्हं पराय नमः- समस्त जीवों के पालक अथवा समस्त ज्ञान आदि गुणों की प्राप्ति होने से,
५२- ॐ ह्रीं अर्हं परतराय नमः -संसार में सर्वश्रेष्ठ होने से,
५३- ॐ ह्रीं अर्हं सूक्ष्माय नमः -का आकार इन्द्रियों द्वारा नही जानने से या नामकर्म के क्षय होने से सूक्ष्मत्व गुण प्रकट होने से,
५४- ॐ ह्रीं अर्हं परमेष्ठिने नमः -परमपद में स्थित होने से,
५५- ॐ ह्रीं अर्हं सनातनाय नमः -सदा एक समान विध्यमान रहने से,
५६- ॐ ह्रीं अर्हं स्वयंज्योतिषे नमः -स्वयं प्रकाशमान रहने से,
५७- ॐ ह्रीं अर्हं अजाय नमः -संसार में पुन:उत्पन्न नही होने से,
५८- ॐ ह्रीं अर्हं अजन्मने नमः -जन्मरहित होने से,
५९- ॐ ह्रीं अर्हं ब्रह्मयोनये नमः- ब्रह्म,अर्थात वेद (द्वादशांग शास्त्र) की उत्पत्ति में कारण होने से
६०- ॐ ह्रीं अर्हं अयोनिजाय नमः- चौरासी लाख योनियों में जन्म नही लेने से ,
६१- ॐ ह्रीं अर्हं मोहरये नमः -मोहरूपी शत्रु पर विजयी होने से ,
६२-ॐ ह्रीं अर्हं विजयिने नमः
६३- ॐ ह्रीं अर्हं जेत्रे नमः -सर्वदा सर्वोत्कृष्ट रूप में विध्यमान होने से,,
६४- ॐ ह्रीं अर्हं धर्मचक्रिणे नमः -धर्म चक्र के प्रवर्तक होने से
६५- ॐ ह्रीं अर्हं दयाध्वजाय नमः - दया की ध्वजा होने से ,
६६- ॐ ह्रीं अर्हं प्रशांतारये नमः -कर्म शत्रु शांत होने से
६७- ॐ ह्रीं अर्हं अनन्तात्मने नमः -की आत्मा ,सभी के असमर्थ होने से
६८- ॐ ह्रीं अर्हं योगीने नमः -योग/ केवलज्ञानादि की अपूर्व प्राप्ति अथवा ध्यान,,मोक्ष के हेतु सम्यग्दर्शन से युक्त होने से
६९- ॐ ह्रीं अर्हं योगीश्वरार्चिताय नमः -योगियों/मुनियों के आदिश्वरों द्वारा पूजित होने से
७०- ॐ ह्रीं अर्हं ब्रह्मविदे नमः -ब्रह्म अर्थात शुद्ध आत्मस्वरूप के ज्ञाता होने से,
७१- ॐ ह्रीं अर्हं ब्रह्मतत्वज्ञाय नमः -ब्रह्मचर्य अथवा आत्मारूपी तत्वों के रहस्यों के ज्ञाता होने से ,
७२- ॐ ह्रीं अर्हं ब्र्ह्मोद्याविदे नमः -पूर्व ब्रह्मा द्वारा कहे हुए समस्त तत्वों / केवलज्ञानरूपी आत्म विद्या के ज्ञाता होने से
७३- ॐ ह्रीं अर्हं यतीश्वराय नमः -मोक्ष प्राप्ति में लीन मुनियों के स्वामी होने से ,
७४- ॐ ह्रीं अर्हं सिध्दाय नमः -भावकर्मरूप मल से रहित होने से,
७५- ॐ ह्रीं अर्हं बुद्धाय नमः -संसार के समस्त पदार्थों के ज्ञाता और केवलज्ञानरूपी बुद्धि से युक्त होने से,
७६- ॐ ह्रीं अर्हं प्रबुद्धात्माने नमः - की आत्मा सदा शुद्ध ज्ञान से प्रकाशित रहने से,,
७७- ॐ ह्रीं अर्हं सिद्धार्थाय नमः -समस्त प्रयोजनो के सिद्ध होने से,
७८- ॐ ह्रीं अर्हं सिद्धशासनाय नमः -का शासन सिद्ध अर्थात प्रसिद्ध होने से ,
७९- ॐ ह्रीं अर्हं सिध्दसिद्धांतविदे नमः -द्वादशांग सिद्धांत के ज्ञाता होनेसे ,
८०- ॐ ह्रीं अर्हं ध्येयाय नमः - सभी लोगो द्वारा ध्यान किये जाने से ,,
८१- ॐ ह्रीं अर्हं सिद्धसाध्याय नमः - के समस्त सिद्ध होने योग्य कार्य सिद्ध होने से ,
८२- ॐ ह्रीं अर्हं जगद्धिताय नमः - समस्त कार्य करने वाले होने से,
८३- ॐ ह्रीं अर्हं सहिष्णवे नमः -सहनशील / क्षमा गुण के भंडार होने से ,
८४- ॐ ह्रीं अर्हं अच्युताय नमः - ज्ञानादि गुणों से कभी च्युत नही होने से,,
८५- ॐ ह्रीं अर्हं अनंताय नमः -भगवान विनाश रहित होने से ,
८६- ॐ ह्रीं अर्हं प्रभविष्णवे नमः -प्रभावशाली होने से ,
८७- ॐ ह्रीं अर्हं भवोद्भवाय नमः -संसार में सर्वोत्कृष्ट जन्म होने से,,
८८- ॐ ह्रीं अर्हं प्रभूष्णवे नमः -शक्तिशाली होने से ,
८९- ॐ ह्रीं अर्हं अजराय नमः -वृद्धावस्था रहितहोने से
९०- ॐ ह्रीं अर्हं अयज्याय नमः -कभी जीर्ण नही होने से,,
९१- ॐ ह्रीं अर्हं भ्राजिष्णवे नमः -ज्ञानादि गुणों से अतिशय देदीप्यमान होने से,,
९२- ॐ ह्रीं अर्हं धीश्वराय नमः -केवलज्ञानरूपी बुद्धि के ईश्वर होने से ,
९३- ॐ ह्रीं अर्हं अव्ययाय नमः - कभी नष्ट नही होने से,,,
९४- ॐ ह्रीं अर्हं विभावसे नमः - मोहरूपी अन्धकार को नष्ट कर सूर्य के समान होने से,
९५- ॐ ह्रीं अर्हं असम्भूष्णवे नमः पुन: उत्पन्न नही होने से,,
९६- ॐ ह्रीं अर्हं स्वयम्भूषणवे नमः -स्वयं इस अवस्था को प्राप्त होने से,,
९७- ॐ ह्रीं अर्हं पुरातनाय नमः - द्रव्यार्थिक नय की अपेक्षा अनदि सिद्ध होने से
९८- ॐ ह्रीं अर्हं परमात्मने नमः -आत्मा अतिशय उत्कृष्ट होने से
९९- ॐ ह्रीं अर्हं परम ज्योतिषे नमः -उत्कृष्ट ज्योति स्वरुप होने से,
१००- ॐ ह्रीं अर्हं त्रिजगत् परमेश्वराय नमः -तीनों लोको के ईश्वर होने से ,