06-09-2018, 07:33 AM
श्री जिन सहस्त्रनाम मन्त्रावली षष्ठम अध्याय भाग १
५०१-ॐ ह्रीं अर्हं महामुनये नमः -सभी मुनियों में सर्वोत्तम होने से 'महामुनि',
५०२-ॐ ह्रीं अर्हं महामौनिने नमः -वचनलाप रहित होने से 'महामौनी ',
५०३-ॐ ह्रीं अर्हं महाध्यानिने नमः -शुक्ल ध्यान के ध्यानेसे ,
५०४-ॐ ह्रीं अर्हं महादमाय नमः -अतिशय जितेन्द्रिय होने से ,
५०५-ॐ ह्रीं अर्हं महाक्षमाय नमः -अतिशय समर्थ /शांत होने से
५०६-ॐ ह्रीं अर्हं महाशीलाय नमः -उत्तम शील युक्त होने से
५०७-ॐ ह्रीं अर्हं महायज्ञाय नमः -तपश्चरण रुपी अग्नि में अष्ट कर्मों को होम करने से,
५०८-ॐ ह्रीं अर्हं महामखाय नमः -पूज्य होने से,
५०९-ॐ ह्रीं अर्हं महाव्रतपतये नमः - ५-महाव्रतों के स्वामी होने से
५१०-ॐ ह्रीं अर्हं मह्याय नमः -जगत्पूज्य होने से
५११- ॐ ह्रीं अर्हं महाकांतिधराय नमः -(विशाल कांति धारक होने से ),
५१२-ॐ ह्रीं अर्हं अधिपाय नमः -(सबके स्वामी होने से ),
५१३-ॐ ह्रीं अर्हं महामैत्रीमयाय नमः -(सब के साथ मैत्रीभाव होने से ),
५१४-ॐ ह्रीं अर्हं अमेयाय नमः -अपरिमित गुणों के धारक होने से ,
५१५-ॐ ह्रीं अर्हं महोपायाय नमः -(मोक्ष के सर्वोत्तम उपायों सहित होने से ),
५१६-ॐ ह्रीं अर्हं महोमयाय नमः -(तेज स्वरुप होने से ),
५१७-ॐ ह्रीं अर्हं महाकारुण्यकाय नमः -अत्यंत दयालु होने से ,
५१८-ॐ ह्रीं अर्हं मन्त्रे नमः -सब पदार्थों केज्ञाता होने से ,
५१९-ॐ ह्रीं अर्हं महामंत्राय नमः -अनेक मंत्रों के स्वामी होने से
५२०-ॐ ह्रीं अर्हं महायतये नमः -यतियों श्रेष्ठ होने से
५२१-ॐ ह्रीं अर्हं महानादाय नमः -गंभीर दिव्य ध्वनि के धारक होने से ,
५२२-ॐ ह्रीं अर्हं महाघोषाय नमः -दिव्यध्वनि का गंभीर उच्चारण होने से,
५२३-ॐ ह्रीं अर्हं महेज्याय नमः -बड़ी बड़ी पूजाओं के अधिकारी होने से ,
५२४-ॐ ह्रीं अर्हं महसांपतये नमः -समस्त तेज/प्रताप के स्वामी है,
५२५-ॐ ह्रीं अर्हं महाध्वरध्रराय नमः -ज्ञानरूपी विशाल यज्ञ के धारक होने से ,
५२६-ॐ ह्रीं अर्हं धुर्याय नमः -कर्मभूमि का समस्त भार संभालने अथवा सर्वश्रेष्ठ होने से,
५२७-ॐ ह्रीं अर्हं महौदार्याय नमः -अतिशय उदार होने से ,
५२८-ॐ ह्रीं अर्हं महेष्ठ्वाचे नमः -श्रेष्ठ वचनों से युक्त होने से ,
५२९-ॐ ह्रीं अर्हं महात्मने नमः -महान आत्मा होने से ,
५३०-ॐ ह्रीं अर्हं महासांधाम्ने नमः -समस्त तेज के स्थान होने से ,
५३१-ॐ ह्रीं अर्हं महर्षये नमः -ऋषियों में प्रधान होने से
५३२-ॐ ह्रीं अर्हं महितोदयाय नमः -प्रशस्त जन्म के धारक होने से ,
५३३-ॐ ह्रीं अर्हं महाक्लेशांकुशाय नमः - बड़े बड़े क्लेशों के नष्ट करने के लिए अंकुश समान होने से ,
५३४-ॐ ह्रीं अर्हं शूराय नमः -कर्मरुपी शत्रुओं क्षय करने में शूर-वीर होने से
५३५- ॐ ह्रीं अर्हं महाभूतपतये नमः -गंधरादि बड़े-बडे प्राणियों के स्वामी होने से ,,
५३६-ॐ ह्रीं अर्हं गुरुवे नमः -त्रिलोक में श्रेष्टम होने से
५३७-ॐ ह्रीं अर्हं महापराक्रमाय नमः -विशल पराक्रम के धारक होने से
५३८-ॐ ह्रीं अर्हं अनन्ताय नमः -अन्त रहित होने से ,
५३९-ॐ ह्रीं अर्हं महाक्रोधरिपवे नमः -क्रोध के बड़े शत्रु होने से ,
५४०-ॐ ह्रीं अर्हं वशीने नमः -समस्त इन्द्रियों को नियंत्रित रखने से, ,
५४१-ॐ ह्रीं अर्हं महाभवाब्धिसंतारीणे नमः -संसार रूपी महासागर पार करने से ,
५४२-ॐ ह्रीं अर्हं महामोहाद्रिसूदना य नमः - मोहरूपी महाचल के भेदक होने से ,,
५४३-ॐ ह्रीं अर्हं महागुणाकराय नमः -सम्यग्दर्शन आदि बड़े बड़े गुणों से युक्त होने से ,
५४४-ॐ ह्रीं अर्हं क्षांताय नमः -क्रोधादि कषायों के विजयता होने से ,
५४५-ॐ ह्रीं अर्हं महयोगीश्वराय नमः -बड़े बड़े योगियों मुनियों के स्वामी होने से ,
५४६-ॐ ह्रीं अर्हं शमीने नमः -अतिशय शांत परिणामी होने से
५४७-ॐ ह्रीं अर्हं महाध्यानपतये नमः -महान शुक्लध्यान के ध्याता होने से ,
५४८-ॐ ह्रीं अर्हं ध्यानमहाधर्मणे नमः -अहिंसारूपी महाधर्म के ध्याता होने से
५४९-ॐ ह्रीं अर्हं महाव्रताय नमः -महान व्रतों के धारण करने से
५५०-ॐ ह्रीं अर्हं महाकर्मारिघ्ने नमः -कर्मरूपी महाशत्रुओंके विनाशक होने से,
५०१-ॐ ह्रीं अर्हं महामुनये नमः -सभी मुनियों में सर्वोत्तम होने से 'महामुनि',
५०२-ॐ ह्रीं अर्हं महामौनिने नमः -वचनलाप रहित होने से 'महामौनी ',
५०३-ॐ ह्रीं अर्हं महाध्यानिने नमः -शुक्ल ध्यान के ध्यानेसे ,
५०४-ॐ ह्रीं अर्हं महादमाय नमः -अतिशय जितेन्द्रिय होने से ,
५०५-ॐ ह्रीं अर्हं महाक्षमाय नमः -अतिशय समर्थ /शांत होने से
५०६-ॐ ह्रीं अर्हं महाशीलाय नमः -उत्तम शील युक्त होने से
५०७-ॐ ह्रीं अर्हं महायज्ञाय नमः -तपश्चरण रुपी अग्नि में अष्ट कर्मों को होम करने से,
५०८-ॐ ह्रीं अर्हं महामखाय नमः -पूज्य होने से,
५०९-ॐ ह्रीं अर्हं महाव्रतपतये नमः - ५-महाव्रतों के स्वामी होने से
५१०-ॐ ह्रीं अर्हं मह्याय नमः -जगत्पूज्य होने से
५११- ॐ ह्रीं अर्हं महाकांतिधराय नमः -(विशाल कांति धारक होने से ),
५१२-ॐ ह्रीं अर्हं अधिपाय नमः -(सबके स्वामी होने से ),
५१३-ॐ ह्रीं अर्हं महामैत्रीमयाय नमः -(सब के साथ मैत्रीभाव होने से ),
५१४-ॐ ह्रीं अर्हं अमेयाय नमः -अपरिमित गुणों के धारक होने से ,
५१५-ॐ ह्रीं अर्हं महोपायाय नमः -(मोक्ष के सर्वोत्तम उपायों सहित होने से ),
५१६-ॐ ह्रीं अर्हं महोमयाय नमः -(तेज स्वरुप होने से ),
५१७-ॐ ह्रीं अर्हं महाकारुण्यकाय नमः -अत्यंत दयालु होने से ,
५१८-ॐ ह्रीं अर्हं मन्त्रे नमः -सब पदार्थों केज्ञाता होने से ,
५१९-ॐ ह्रीं अर्हं महामंत्राय नमः -अनेक मंत्रों के स्वामी होने से
५२०-ॐ ह्रीं अर्हं महायतये नमः -यतियों श्रेष्ठ होने से
५२१-ॐ ह्रीं अर्हं महानादाय नमः -गंभीर दिव्य ध्वनि के धारक होने से ,
५२२-ॐ ह्रीं अर्हं महाघोषाय नमः -दिव्यध्वनि का गंभीर उच्चारण होने से,
५२३-ॐ ह्रीं अर्हं महेज्याय नमः -बड़ी बड़ी पूजाओं के अधिकारी होने से ,
५२४-ॐ ह्रीं अर्हं महसांपतये नमः -समस्त तेज/प्रताप के स्वामी है,
५२५-ॐ ह्रीं अर्हं महाध्वरध्रराय नमः -ज्ञानरूपी विशाल यज्ञ के धारक होने से ,
५२६-ॐ ह्रीं अर्हं धुर्याय नमः -कर्मभूमि का समस्त भार संभालने अथवा सर्वश्रेष्ठ होने से,
५२७-ॐ ह्रीं अर्हं महौदार्याय नमः -अतिशय उदार होने से ,
५२८-ॐ ह्रीं अर्हं महेष्ठ्वाचे नमः -श्रेष्ठ वचनों से युक्त होने से ,
५२९-ॐ ह्रीं अर्हं महात्मने नमः -महान आत्मा होने से ,
५३०-ॐ ह्रीं अर्हं महासांधाम्ने नमः -समस्त तेज के स्थान होने से ,
५३१-ॐ ह्रीं अर्हं महर्षये नमः -ऋषियों में प्रधान होने से
५३२-ॐ ह्रीं अर्हं महितोदयाय नमः -प्रशस्त जन्म के धारक होने से ,
५३३-ॐ ह्रीं अर्हं महाक्लेशांकुशाय नमः - बड़े बड़े क्लेशों के नष्ट करने के लिए अंकुश समान होने से ,
५३४-ॐ ह्रीं अर्हं शूराय नमः -कर्मरुपी शत्रुओं क्षय करने में शूर-वीर होने से
५३५- ॐ ह्रीं अर्हं महाभूतपतये नमः -गंधरादि बड़े-बडे प्राणियों के स्वामी होने से ,,
५३६-ॐ ह्रीं अर्हं गुरुवे नमः -त्रिलोक में श्रेष्टम होने से
५३७-ॐ ह्रीं अर्हं महापराक्रमाय नमः -विशल पराक्रम के धारक होने से
५३८-ॐ ह्रीं अर्हं अनन्ताय नमः -अन्त रहित होने से ,
५३९-ॐ ह्रीं अर्हं महाक्रोधरिपवे नमः -क्रोध के बड़े शत्रु होने से ,
५४०-ॐ ह्रीं अर्हं वशीने नमः -समस्त इन्द्रियों को नियंत्रित रखने से, ,
५४१-ॐ ह्रीं अर्हं महाभवाब्धिसंतारीणे नमः -संसार रूपी महासागर पार करने से ,
५४२-ॐ ह्रीं अर्हं महामोहाद्रिसूदना य नमः - मोहरूपी महाचल के भेदक होने से ,,
५४३-ॐ ह्रीं अर्हं महागुणाकराय नमः -सम्यग्दर्शन आदि बड़े बड़े गुणों से युक्त होने से ,
५४४-ॐ ह्रीं अर्हं क्षांताय नमः -क्रोधादि कषायों के विजयता होने से ,
५४५-ॐ ह्रीं अर्हं महयोगीश्वराय नमः -बड़े बड़े योगियों मुनियों के स्वामी होने से ,
५४६-ॐ ह्रीं अर्हं शमीने नमः -अतिशय शांत परिणामी होने से
५४७-ॐ ह्रीं अर्हं महाध्यानपतये नमः -महान शुक्लध्यान के ध्याता होने से ,
५४८-ॐ ह्रीं अर्हं ध्यानमहाधर्मणे नमः -अहिंसारूपी महाधर्म के ध्याता होने से
५४९-ॐ ह्रीं अर्हं महाव्रताय नमः -महान व्रतों के धारण करने से
५५०-ॐ ह्रीं अर्हं महाकर्मारिघ्ने नमः -कर्मरूपी महाशत्रुओंके विनाशक होने से,