07-30-2022, 12:16 PM
श्रीमत्कुन्दकुन्दाचार्यविरचितः प्रवचनसारः
गाथा -8
परिणमदि जेण दव्वं तकालं तम्मय ति पण्णत्तं /
तम्हा धम्मपरिणदो आदा धम्मो मुणेद्ववो // 8 //
आगे चारित्र और आत्माकी एकता दिखाते हैं
[येन द्रव्यं परिणमति ] जिस समय जिस स्वभावसे द्रव्य परणमन करता हैं, [तत्कालं तन्मयं] उस समय उसी स्वभावमय द्रव्य हो जाता है, [इति प्रज्ञप्तं] ऐसा जिनेन्द्रदेवने कहा है। जैसे लोहेका गोला जब आगमें डाला जाता है, तब उष्णरूप होकर परिणमता है, अर्थात् उष्णपनेसे तन्मय हो जाता है, इसी तरह यह आत्मा जब शुभ, अशुभ, शुद्ध भावोंमेंसे जिस भावरूप परिणमता है, तब उस भावसे उसी स्वरूप होता है। [तस्माद्धर्मपरिणतः आत्मा] इस कारण वीतरागचारित्र (समताभाव ) रूप धर्मसे परिणमता यह आत्मा [धर्मों मन्तव्यः] धर्म जानना / भावार्थजब जिस तरहके भावोंसे यह आत्मा परिणमन करता है, तव उन्हीं स्वरूप ही है, इस न्यायसे वीतरागचारित्ररूप धर्मसे परिणमन करता हुआ वीतरागचारित्र धर्म ही हो जाता है / इसलिये आत्मा और चारित्रके एकपना है / आत्माको चारित्र भी कहते हैं
गाथा -9
जीबो परिणमदि जदा सुहेण असुहेण वा सुहो असुहो।
सुद्धेण तदा सुद्धो हवदि हि परिणामसम्भावो // 9 //
आगे आत्माके शुभ, अशुभ तथा शुद्ध भावोंका निर्णय करते हैं
[यदा जीवः] जब यह जीव [शुभेन अशुभेन वा परिणमति] शुभ अथवा अशुभ परिणामोंकर परिणमता है, [तदा शुभ अशुभो भवति] तब यह शुभ वा अशुभ होता है। अर्थात् जब यह दान, पूजा, व्रतादिरूप शुभपरिणामोंसे परिणमता है, तब उन भावोंके साथ तन्मय होता हुँमा शुभ होता है, और जब विषय, कषाय, अवतादिरूप अशुभभावोंकर परिणत होता है, तब उन माफोके साथ उन्हीं स्वरूप हो जाता है / जैसे स्फटिकमणि काले फूलका संयोग मिलनेपर काला ही हो माता है। क्योंकि स्फटिकका ऐसा ही परिणमन-स्वभाव है / उसी प्रकार जीवका भी समझना / [शुद्धेन तदा शुद्धो भवति] जब यह जीव आत्मीक वीतराग शुद्धभावस्वरूप परिणमता है, तब शुद्ध होता है / जैसे स्फटिकमणि जब पुष्पके संबंधसे रहित होता है, तब अपने शुद्ध (निर्मल) भावरूप परिणमन करता है / ठीक उसी प्रकार आत्मा भी विकार रहित हुआ शुद्ध होता है। इस प्रकार आत्मा के तीन भाव जानना |
मुनि श्री प्रणम्य सागर जी
गाथा -8
परिणमदि जेण दव्वं तकालं तम्मय ति पण्णत्तं /
तम्हा धम्मपरिणदो आदा धम्मो मुणेद्ववो // 8 //
आगे चारित्र और आत्माकी एकता दिखाते हैं
[येन द्रव्यं परिणमति ] जिस समय जिस स्वभावसे द्रव्य परणमन करता हैं, [तत्कालं तन्मयं] उस समय उसी स्वभावमय द्रव्य हो जाता है, [इति प्रज्ञप्तं] ऐसा जिनेन्द्रदेवने कहा है। जैसे लोहेका गोला जब आगमें डाला जाता है, तब उष्णरूप होकर परिणमता है, अर्थात् उष्णपनेसे तन्मय हो जाता है, इसी तरह यह आत्मा जब शुभ, अशुभ, शुद्ध भावोंमेंसे जिस भावरूप परिणमता है, तब उस भावसे उसी स्वरूप होता है। [तस्माद्धर्मपरिणतः आत्मा] इस कारण वीतरागचारित्र (समताभाव ) रूप धर्मसे परिणमता यह आत्मा [धर्मों मन्तव्यः] धर्म जानना / भावार्थजब जिस तरहके भावोंसे यह आत्मा परिणमन करता है, तव उन्हीं स्वरूप ही है, इस न्यायसे वीतरागचारित्ररूप धर्मसे परिणमन करता हुआ वीतरागचारित्र धर्म ही हो जाता है / इसलिये आत्मा और चारित्रके एकपना है / आत्माको चारित्र भी कहते हैं
गाथा -9
जीबो परिणमदि जदा सुहेण असुहेण वा सुहो असुहो।
सुद्धेण तदा सुद्धो हवदि हि परिणामसम्भावो // 9 //
आगे आत्माके शुभ, अशुभ तथा शुद्ध भावोंका निर्णय करते हैं
[यदा जीवः] जब यह जीव [शुभेन अशुभेन वा परिणमति] शुभ अथवा अशुभ परिणामोंकर परिणमता है, [तदा शुभ अशुभो भवति] तब यह शुभ वा अशुभ होता है। अर्थात् जब यह दान, पूजा, व्रतादिरूप शुभपरिणामोंसे परिणमता है, तब उन भावोंके साथ तन्मय होता हुँमा शुभ होता है, और जब विषय, कषाय, अवतादिरूप अशुभभावोंकर परिणत होता है, तब उन माफोके साथ उन्हीं स्वरूप हो जाता है / जैसे स्फटिकमणि काले फूलका संयोग मिलनेपर काला ही हो माता है। क्योंकि स्फटिकका ऐसा ही परिणमन-स्वभाव है / उसी प्रकार जीवका भी समझना / [शुद्धेन तदा शुद्धो भवति] जब यह जीव आत्मीक वीतराग शुद्धभावस्वरूप परिणमता है, तब शुद्ध होता है / जैसे स्फटिकमणि जब पुष्पके संबंधसे रहित होता है, तब अपने शुद्ध (निर्मल) भावरूप परिणमन करता है / ठीक उसी प्रकार आत्मा भी विकार रहित हुआ शुद्ध होता है। इस प्रकार आत्मा के तीन भाव जानना |
मुनि श्री प्रणम्य सागर जी