08-04-2022, 08:16 AM
श्रीमत्कुन्दकुन्दाचार्यविरचितः प्रवचनसारः
आचार्य कुन्दकुन्द विरचित
प्रवचनसार
गाथा -36 (आचार्य अमृतचंद की टीका अनुसार)
गाथा -37 (आचार्य जयसेन की टीका अनुसार )
तम्हा णाणं जीवो णेयं दव्वं तिहा समक्खादं /
व्वं ति पुणो आदा परं च परिणामसंबद्धं / / 36 //
अन्वयार्थ- तम्हा इसलिये जीवों णाणं) जीव ज्ञान है णेयं) और ज्ञेय (तिधा समक्खादं) तीन प्रकार वर्णित (त्रिकालस्पर्शी) (दवं) द्रव्य है (पुणो दवं ति द्रव्य अर्थात आदा) आत्मा (स्व आत्मा) (परं च) और पर (परिणामसंबद्धं) परिणाम वाले हैं।
आगे "ज्ञान क्या है, और ज्ञेय क्या है," इन दोनोंका भेद कहते हैं--[तस्मात् ] इसी कारणसे [जीवः] आत्मा [ज्ञानं] ज्ञानस्वरूप है, और [विधा समाख्यातं] अतीत, अनागत, वर्तमान पर्यायके भेदसे अथवा उत्पाद, व्यय, ध्रौव्य भेदसे अथवा द्रव्य, गुण, पर्यायसे तीन प्रकार कहलानेवाला [द्रव्यं] द्रव्य है, [ज्ञेयं] वह ज्ञेय है / [पुनः] फिर [आत्मा] जीव पदार्थ [च] और [परं] अन्य अचेतन पाँच पदार्थ [परिणामसंबद्धं] परिणमनसे बँधे हैं, इसलिये [द्रव्यमिति] द्रव्य ऐसे पदको धारण करते हैं / भावार्थपहलेकी गाथामें कहा है, कि यह आत्मा ज्ञानभावसे आप ही परिणमन करके परकी सहायता विना स्वाधीन जानता है, इसलिये आत्मा ही ज्ञान है / अन्य (दूसरा) द्रव्य ज्ञान भावपरिणमनके जाननेमें असमर्थ है / इसलिये अतीतादि भेदसे, उत्पादादिकसे, द्रव्यगुणपर्यायके भेदसे, तीन प्रकार हुआ द्रव्य ज्ञेय है, अर्थात् आत्माके जानने योग्य है / और आत्मा दीपककी तरह आप तथा पर दोनोंका प्रकाशक (ज्ञायक) होनेसे ज्ञेय भी है, ज्ञान भी है, अर्थात् दोनों स्वरूप है / इससे यह सारांश निकला, कि ज्ञेय पदार्थ स्वज्ञेय और परज्ञेय (दूसरेसे जानने योग्य) के भेदसे दो प्रकार हैं, उनमें पाँच द्रव्य ज्ञेय ही हैं, इस कारण परज्ञेय हैं, और आत्मद्रव्य ज्ञेय-ज्ञान दोनों रूप है, इस कारण स्वज्ञेय है / यहाँपर कोई प्रश्न करे, कि आत्मा अपनेको जानता है, यह बात असंभव है। जैसे कि, नट-कलामें अत्यंत चतुर भी नट आप अपने ही कंधेपर नहीं चढ़ सकता, उसी प्रकार अन्य पदार्थोंके जाननेमें दक्ष आत्मा आपको नहीं जान सकता, तो इसका समाधान यह है कि पहले कहे हुए दीपकके दृष्टांतसे आत्मामें भी स्वपरप्रकाशक शक्ति है, इस कारण आत्मा अपनेको तथा परको जाननेवाला अवश्य हो सकता है। इससे असंभव दोष कभी भी नहीं लग सकता / अब यहाँपर फिर कोई प्रश्न करे, कि आत्माको द्रव्योंका ज्ञान किससे है ? और द्रव्योंको किस रीतिसे प्राप्त होता है ? तो उससे कहना चाहिये, कि ज्ञान, ज्ञेयरूप पदार्थ, परिणामोंसे बँध रहे हैं / आत्माके ज्ञानपरिणति ज्ञेय पदार्थकी सहायतासे है / यदि ज्ञेय न होवे, तो किसको जाने ? और ज्ञेय पदार्थ ज्ञानका अवलम्बन करके ज्ञेय अवस्थाको धारण करते हैं। जो ज्ञान न होवे, तो इन्हें कौन जाने ? इसलिये पदार्थोका ज्ञेयज्ञायक सम्बन्ध हमेशासे है, मिट नहीं सकता |
मुनि श्री प्रणम्य सागर जी प्रवचनसार गाथा - 36
*ज्ञान का स्वभाव *
पूज्य मुनि श्री इस गाथा संख्या 36 की वाचना से आप जानेंगे कि
* ज्ञान का स्वभाव कैसा होता है ?
* ज्ञान ही जीव है इसलिए जीव ज्ञान और ज्ञेय दोनो है।
* 6 द्रव्यों में केवल जीव द्रव्य ज्ञान भी है और ज्ञेय भी है । वह दूसरों को भी जानता है और ख़ुद को भी जानता है।
* ज्ञान का स्वभाव स्व पर प्रकाशी होता है।
* क्या ज्ञान का उपयोग केवल पर को जान ने के लिए करना चाहिए ?
* केवलग्यान सिर्फ़ स्व को जान ने से ही होता है।
* ज्ञान के माध्यम से ध्यान कैसे करें ?
आचार्य कुन्दकुन्द विरचित
प्रवचनसार
गाथा -36 (आचार्य अमृतचंद की टीका अनुसार)
गाथा -37 (आचार्य जयसेन की टीका अनुसार )
तम्हा णाणं जीवो णेयं दव्वं तिहा समक्खादं /
व्वं ति पुणो आदा परं च परिणामसंबद्धं / / 36 //
अन्वयार्थ- तम्हा इसलिये जीवों णाणं) जीव ज्ञान है णेयं) और ज्ञेय (तिधा समक्खादं) तीन प्रकार वर्णित (त्रिकालस्पर्शी) (दवं) द्रव्य है (पुणो दवं ति द्रव्य अर्थात आदा) आत्मा (स्व आत्मा) (परं च) और पर (परिणामसंबद्धं) परिणाम वाले हैं।
आगे "ज्ञान क्या है, और ज्ञेय क्या है," इन दोनोंका भेद कहते हैं--[तस्मात् ] इसी कारणसे [जीवः] आत्मा [ज्ञानं] ज्ञानस्वरूप है, और [विधा समाख्यातं] अतीत, अनागत, वर्तमान पर्यायके भेदसे अथवा उत्पाद, व्यय, ध्रौव्य भेदसे अथवा द्रव्य, गुण, पर्यायसे तीन प्रकार कहलानेवाला [द्रव्यं] द्रव्य है, [ज्ञेयं] वह ज्ञेय है / [पुनः] फिर [आत्मा] जीव पदार्थ [च] और [परं] अन्य अचेतन पाँच पदार्थ [परिणामसंबद्धं] परिणमनसे बँधे हैं, इसलिये [द्रव्यमिति] द्रव्य ऐसे पदको धारण करते हैं / भावार्थपहलेकी गाथामें कहा है, कि यह आत्मा ज्ञानभावसे आप ही परिणमन करके परकी सहायता विना स्वाधीन जानता है, इसलिये आत्मा ही ज्ञान है / अन्य (दूसरा) द्रव्य ज्ञान भावपरिणमनके जाननेमें असमर्थ है / इसलिये अतीतादि भेदसे, उत्पादादिकसे, द्रव्यगुणपर्यायके भेदसे, तीन प्रकार हुआ द्रव्य ज्ञेय है, अर्थात् आत्माके जानने योग्य है / और आत्मा दीपककी तरह आप तथा पर दोनोंका प्रकाशक (ज्ञायक) होनेसे ज्ञेय भी है, ज्ञान भी है, अर्थात् दोनों स्वरूप है / इससे यह सारांश निकला, कि ज्ञेय पदार्थ स्वज्ञेय और परज्ञेय (दूसरेसे जानने योग्य) के भेदसे दो प्रकार हैं, उनमें पाँच द्रव्य ज्ञेय ही हैं, इस कारण परज्ञेय हैं, और आत्मद्रव्य ज्ञेय-ज्ञान दोनों रूप है, इस कारण स्वज्ञेय है / यहाँपर कोई प्रश्न करे, कि आत्मा अपनेको जानता है, यह बात असंभव है। जैसे कि, नट-कलामें अत्यंत चतुर भी नट आप अपने ही कंधेपर नहीं चढ़ सकता, उसी प्रकार अन्य पदार्थोंके जाननेमें दक्ष आत्मा आपको नहीं जान सकता, तो इसका समाधान यह है कि पहले कहे हुए दीपकके दृष्टांतसे आत्मामें भी स्वपरप्रकाशक शक्ति है, इस कारण आत्मा अपनेको तथा परको जाननेवाला अवश्य हो सकता है। इससे असंभव दोष कभी भी नहीं लग सकता / अब यहाँपर फिर कोई प्रश्न करे, कि आत्माको द्रव्योंका ज्ञान किससे है ? और द्रव्योंको किस रीतिसे प्राप्त होता है ? तो उससे कहना चाहिये, कि ज्ञान, ज्ञेयरूप पदार्थ, परिणामोंसे बँध रहे हैं / आत्माके ज्ञानपरिणति ज्ञेय पदार्थकी सहायतासे है / यदि ज्ञेय न होवे, तो किसको जाने ? और ज्ञेय पदार्थ ज्ञानका अवलम्बन करके ज्ञेय अवस्थाको धारण करते हैं। जो ज्ञान न होवे, तो इन्हें कौन जाने ? इसलिये पदार्थोका ज्ञेयज्ञायक सम्बन्ध हमेशासे है, मिट नहीं सकता |
मुनि श्री प्रणम्य सागर जी प्रवचनसार गाथा - 36
*ज्ञान का स्वभाव *
पूज्य मुनि श्री इस गाथा संख्या 36 की वाचना से आप जानेंगे कि
* ज्ञान का स्वभाव कैसा होता है ?
* ज्ञान ही जीव है इसलिए जीव ज्ञान और ज्ञेय दोनो है।
* 6 द्रव्यों में केवल जीव द्रव्य ज्ञान भी है और ज्ञेय भी है । वह दूसरों को भी जानता है और ख़ुद को भी जानता है।
* ज्ञान का स्वभाव स्व पर प्रकाशी होता है।
* क्या ज्ञान का उपयोग केवल पर को जान ने के लिए करना चाहिए ?
* केवलग्यान सिर्फ़ स्व को जान ने से ही होता है।
* ज्ञान के माध्यम से ध्यान कैसे करें ?