09-25-2022, 11:26 AM
श्रीमत्कुन्दकुन्दाचार्यविरचितः प्रवचनसारः
आचार्य कुन्दकुन्द विरचित
प्रवचनसार
गाथा -86 (आचार्य अमृतचंद की टीका अनुसार)
गाथा -93 (आचार्य जयसेन की टीका अनुसार )
जिणसत्थादो अढे पचक्खादीहिं बुज्झदो णियमा।
खीयदि मोहोवचयो तम्हा सत्थं समधिदव्वं // 86 //
आगे मोहका क्षय करनेके लिये अन्य उपायका विचार करते हैं[प्रत्यक्षादिभिः] प्रत्यक्ष, परोक्ष, प्रमाण ज्ञानों करके [जिनशास्त्रात्] वीतराग सर्वज्ञ प्रणीत आगमसे [अर्थान् ] पदार्थोंको [बुध्यमानस्य] जाननेवाले पुरुषके [ नियमात् ] नियमसे [मोहोपचयः] मोहका समूह अर्थात् विपरीतज्ञान व श्रद्धान [क्षीयते] नाशको प्राप्त होता है, [तस्मात् ] इसलिये [शास्त्रं] जिनागमको [समध्येतव्यं अच्छी तरह अध्ययन करना चाहिये।
भावार्थ-पहले मोहके नाश करनेका उपाय, अहंतके द्रव्य, गुण, पर्यायके जाननेसे आत्माका ज्ञान होना बतलाया है, परंतु वह उपाय दूसरे उपायको भी चाहता है, क्योंकि अर्हतके द्रव्य, गुण• पर्यायका ज्ञान जिनागमके विना नहीं होता / इसलिये जिनागम मोहके नाशमें एक बलवान् उपाय है, जिन भव्यजीवोंने पहले ही ज्ञान-भूमिकामें गमन किया है, वे कुनयोंसे अखंडित जिनप्रणीत आगमको प्रमाण करके क्रीड़ा करते हैं / जिनागमके बलसे उनके आत्म-ज्ञान-शक्तिरूप संपदा प्रगट होती है / तथा प्रत्यक्ष परोक्ष ज्ञानसे सब वस्तुओंके ज्ञाता द्रष्टा होते हैं, और तभी उनके यथार्थ ज्ञानसे मोहका नाश होता है / इसलिये मोहनाशके उपायोंमें शास्त्ररूप शब्द-ब्रह्मकी सेवा करना योग्य है / भावश्रुत ज्ञानके बलसे दृढ़ परिणाम करके आगम-पाठका अभ्यास करना, यह बड़ा उपाय है
मुनि श्री प्रणम्य सागर जी प्रवचनसार गाथा 86
प्रत्यक्ष आदि अनुमान प्रमाण द्वारा , जाने पदार्थ जिन आगम भान द्वारा ।
तो नाश मोह उसका अनिवार्य होता , सद्शास्त्र का मनन तू कर आर्य श्रोता ॥
अन्वयार्थ - ( जिणसत्थादो ) जिनशास्त्र द्वारा ( पच्चक्खादीहिं ) प्रत्यक्षादि प्रमाणों से ( अद्वे ) पदार्थों को ( बुज्झदो ) जानने वाले के ( णियमा ) नियम से ( मोहोपचयं ) मोह समूह ( खीयदि ) क्षय हो जाता है , ( तम्हा ) इसलिये ( सत्थं ) शास्त्र का ( समधिदव्वं ) सम्यक् प्रकार से अध्ययन करना चाहिए ।
आचार्य कुन्दकुन्द विरचित
प्रवचनसार
गाथा -86 (आचार्य अमृतचंद की टीका अनुसार)
गाथा -93 (आचार्य जयसेन की टीका अनुसार )
जिणसत्थादो अढे पचक्खादीहिं बुज्झदो णियमा।
खीयदि मोहोवचयो तम्हा सत्थं समधिदव्वं // 86 //
आगे मोहका क्षय करनेके लिये अन्य उपायका विचार करते हैं[प्रत्यक्षादिभिः] प्रत्यक्ष, परोक्ष, प्रमाण ज्ञानों करके [जिनशास्त्रात्] वीतराग सर्वज्ञ प्रणीत आगमसे [अर्थान् ] पदार्थोंको [बुध्यमानस्य] जाननेवाले पुरुषके [ नियमात् ] नियमसे [मोहोपचयः] मोहका समूह अर्थात् विपरीतज्ञान व श्रद्धान [क्षीयते] नाशको प्राप्त होता है, [तस्मात् ] इसलिये [शास्त्रं] जिनागमको [समध्येतव्यं अच्छी तरह अध्ययन करना चाहिये।
भावार्थ-पहले मोहके नाश करनेका उपाय, अहंतके द्रव्य, गुण, पर्यायके जाननेसे आत्माका ज्ञान होना बतलाया है, परंतु वह उपाय दूसरे उपायको भी चाहता है, क्योंकि अर्हतके द्रव्य, गुण• पर्यायका ज्ञान जिनागमके विना नहीं होता / इसलिये जिनागम मोहके नाशमें एक बलवान् उपाय है, जिन भव्यजीवोंने पहले ही ज्ञान-भूमिकामें गमन किया है, वे कुनयोंसे अखंडित जिनप्रणीत आगमको प्रमाण करके क्रीड़ा करते हैं / जिनागमके बलसे उनके आत्म-ज्ञान-शक्तिरूप संपदा प्रगट होती है / तथा प्रत्यक्ष परोक्ष ज्ञानसे सब वस्तुओंके ज्ञाता द्रष्टा होते हैं, और तभी उनके यथार्थ ज्ञानसे मोहका नाश होता है / इसलिये मोहनाशके उपायोंमें शास्त्ररूप शब्द-ब्रह्मकी सेवा करना योग्य है / भावश्रुत ज्ञानके बलसे दृढ़ परिणाम करके आगम-पाठका अभ्यास करना, यह बड़ा उपाय है
मुनि श्री प्रणम्य सागर जी प्रवचनसार गाथा 86
प्रत्यक्ष आदि अनुमान प्रमाण द्वारा , जाने पदार्थ जिन आगम भान द्वारा ।
तो नाश मोह उसका अनिवार्य होता , सद्शास्त्र का मनन तू कर आर्य श्रोता ॥
अन्वयार्थ - ( जिणसत्थादो ) जिनशास्त्र द्वारा ( पच्चक्खादीहिं ) प्रत्यक्षादि प्रमाणों से ( अद्वे ) पदार्थों को ( बुज्झदो ) जानने वाले के ( णियमा ) नियम से ( मोहोपचयं ) मोह समूह ( खीयदि ) क्षय हो जाता है , ( तम्हा ) इसलिये ( सत्थं ) शास्त्र का ( समधिदव्वं ) सम्यक् प्रकार से अध्ययन करना चाहिए ।