08-06-2014, 11:37 AM
हम सब जीवों का क्या मिथ्यात्व गुण स्थान है?
पंचम काल में हम सब तो नहीं अधिकांशत: मिथ्यादृष्टि है! इस में सभी जीव चाहे मुनि महाराज हो,या आचार्य हो सभी मिथ्यादृष्टि उत्पन्न हुए है! क्योकि नियम है कि,सम्यग्दृ- ष्टि जीव पंचमकाल में जन्म ही नहीं लेता! जैन मतियों के अतिरिक्त,अन्य मतियों का तो पहला गुणस्थान ही है चाहे वे कितने ही दानी,दयालु अथवा सरल परिणामी हों क्योकि उन के सात तत्वों,नव पदार्थों का परिचय नहीं है और उनके सच्चे देव,शास्त्र,गुरु की परिभाषा ही ठीक नहीं है!जैन मतियों में भी अनेक जीव,नाम मात्र के लिए ही जैन है उनका भी गुण स्थान पहला!जैनमति जो जैन शास्त्रों में,जैनधर्म में थोडा बहुत रूचि तो लेते,रूचि पूर्वक प्रवर्तन भी करते है किन्तु श्रद्धांन नहीं है,उन का गुणस्थान पहला! आचार्यों ने लिखा है कि जैन शास्त्रों को पढने वालों,सुनने वाले समझने वाले कितने ही हों किन्तु मिथ्यात्व से रहित,सम्यक्त्व सहित जीव बिरले अर्थात उनकी गिनती संख्यात,गिनने योग्य,बहुत थोड़ी ही है!
अत: हम में से जिनको सच्चे देव,शास्त्र,और गुरु पर दृढ,श्रद्धांन आगमानुसार है,जिन्होंने सात तत्वों,नव पदार्थों को शास्त्र के माध्यम से समझा है,उन्हें मिथ्यात्व रहित कह सकते है!अर्थात उन्हें सम्यक्त्व हो गया है!स्पष्ट शब्दों में हम में से ९९.९९% जीवों का गुणस्थान पहला ही है!बहुत से जीवों का बहुत स्वाध्याय होने के बावजूद भी श्रद्धांन मजबूत नहीं होता,अपना मन तदानुसार नहीं बना पाते,उनका स्वाध्याय आदि सब व्यर्थ है! जिनका दृढ श्रद्धां होताहै वही कार्यकारी है!इसलिए अधिकांश लोगो का गुणस्थान पहला ही है!
पंचम काल में हम सब तो नहीं अधिकांशत: मिथ्यादृष्टि है! इस में सभी जीव चाहे मुनि महाराज हो,या आचार्य हो सभी मिथ्यादृष्टि उत्पन्न हुए है! क्योकि नियम है कि,सम्यग्दृ- ष्टि जीव पंचमकाल में जन्म ही नहीं लेता! जैन मतियों के अतिरिक्त,अन्य मतियों का तो पहला गुणस्थान ही है चाहे वे कितने ही दानी,दयालु अथवा सरल परिणामी हों क्योकि उन के सात तत्वों,नव पदार्थों का परिचय नहीं है और उनके सच्चे देव,शास्त्र,गुरु की परिभाषा ही ठीक नहीं है!जैन मतियों में भी अनेक जीव,नाम मात्र के लिए ही जैन है उनका भी गुण स्थान पहला!जैनमति जो जैन शास्त्रों में,जैनधर्म में थोडा बहुत रूचि तो लेते,रूचि पूर्वक प्रवर्तन भी करते है किन्तु श्रद्धांन नहीं है,उन का गुणस्थान पहला! आचार्यों ने लिखा है कि जैन शास्त्रों को पढने वालों,सुनने वाले समझने वाले कितने ही हों किन्तु मिथ्यात्व से रहित,सम्यक्त्व सहित जीव बिरले अर्थात उनकी गिनती संख्यात,गिनने योग्य,बहुत थोड़ी ही है!
अत: हम में से जिनको सच्चे देव,शास्त्र,और गुरु पर दृढ,श्रद्धांन आगमानुसार है,जिन्होंने सात तत्वों,नव पदार्थों को शास्त्र के माध्यम से समझा है,उन्हें मिथ्यात्व रहित कह सकते है!अर्थात उन्हें सम्यक्त्व हो गया है!स्पष्ट शब्दों में हम में से ९९.९९% जीवों का गुणस्थान पहला ही है!बहुत से जीवों का बहुत स्वाध्याय होने के बावजूद भी श्रद्धांन मजबूत नहीं होता,अपना मन तदानुसार नहीं बना पाते,उनका स्वाध्याय आदि सब व्यर्थ है! जिनका दृढ श्रद्धां होताहै वही कार्यकारी है!इसलिए अधिकांश लोगो का गुणस्थान पहला ही है!