प्रवचनसारः गाथा -43, 44 ज्ञान ज्ञेय रूप परिणमन कैसे करता है? |
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आचार्य ज्ञानसागरजी महाराज कृत हिन्दी पद्यानुवाद एवं सारांश

गाथा -43,44
उदयागतविधि नियतरूपसे जिनवरके खिर जाता है
मोह रोष या रागभाव से जीव बंध कर पाता है
स्थान गमन धर्मोपदेश ये क्रिया नियत हो जिनजी के ।
बिना यत्न ही देखा जाता हीणपना ज्यों युवती के ॥ २२ ॥


गाथा -43,44
सारांश:- कर्मबंध कारक संसारी आत्मा में मोटी ४ बातें पाई जाती हैं। १ चेतना, २ कर्मोदय, ३ चेष्टा और ४ विकार। इनमें से चेतना अर्थात् ज्ञान तो बंधका कारण हो ही नहीं सकता है क्योंकि ज्ञान तो आत्मा का स्वभाव है। यदि ज्ञान को ही बंधका कारण माना जावे तो फिर ज्ञान तो सिद्ध दशा में भी रहता है। वहाँ भी बंध होना चाहिये।

कर्मोदय और उससे होने वाली चेष्टा ये दोनों भी कर्मबंध के कारण नहीं होते हैं क्योंकि कर्मों का उदय और उनकी चेष्टा- क्रिया चलना ठहरना बोलना वगैरह अरहन्त भगवान के भी पाई जाती हैं जिनसे उनके भी ईर्यापथ आस्रव मात्र होता है। बंध नहीं होता है। बंध तो राग द्वेष मोह भावरूप विकार के द्वारा ही होता है जो अरहन्त अवस्थामें बिलकुल नहीं होता है।
कर्मों का उदय दो प्रकारका होता है। एक तो प्रदेशोदय और दूसरा विपाकोदय प्रदेशोदय बालविवाह की तरह विकारकारक न होकर प्रक्रम मात्र होता है और विपाकोदय वयस्कविवाह की तरह विकारकारक होता है। निरीहा और समीहा के भेदसे चेष्टा भी दो प्रकारकी होती है। हम जब निद्रित अवस्था में कुछ बोलने लगते हैं अथवा हिलते डुलते हैं तब वह हमारी चेष्टा जागृत अवस्थामें होनेवाली चेष्टा के समान इच्छापूर्वक नहीं होती है किन्तु बिना इच्छाके ही होती है।
इसीप्रकार भगवान् अरहन्तके जो चलना और बैठना आदि क्रियाएं होती हैं वे बिना इच्छा के ही होती हैं तथा उनके कर्मों का उदय भी प्रदेशोदय मात्र होता है। जैसे स्त्रियों के युवावस्था में अनायास ही हाव भाव विलास विभ्रमादि चेष्टाएं विकसित होजाती हैं वैसे ही श्री जिन भगवान के तीर्थङ्कर नामकर्मादि के उदय से दिव्यध्वनि होना आदि क्रियायें हुआ करती हैं। ये सब क्रियायें भगवान् के कर्मोदयसे होनेवाली होती हैं परन्तु आगे के लिए कुछ भी बन्धकारक न होकर पूर्व बन्ध के क्षयके के लिए ही होती हैं
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प्रवचनसारः गाथा -43, 44 ज्ञान ज्ञेय रूप परिणमन कैसे करता है? | - by Manish Jain - 08-08-2022, 10:06 AM
RE: प्रवचनसारः गाथा -43, 44 - by sandeep jain - 08-08-2022, 10:36 AM
RE: प्रवचनसारः गाथा -43, 44 ज्ञान ज्ञेय रूप परिणमन कैसे करता है? | - by sumit patni - 08-15-2022, 10:27 AM

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