12-17-2022, 10:18 AM
पदार्थ के मुख्य और गौण की व्यवस्था
हमने mixture तो बना लिया लेकि न अगर हम उस धातु की अपेक्षा से देखेंगे तो आपके लि ए जब कभी भी फिर धातुओं को उसमें से उसको नापना पड़ जाए, कि सी सुनार के पास फिर ले जाओ कि भाई इसमें कि तना सोना है, कि तनी चाँदी है, कि तना काँसा मि ला है, आपको सब बता देगा कि नहीं? सब को अलग-अलग कर देगा। सबका अस्तित्व अलग-अलग हुआ कि नहीं? स्या द-अस्ति, स्या द-नास्ति। हर पदार्थ अपने स्व रूप की अपेक्षा से रहेगा। धातु की अपेक्षा से देखोगे तो हर metal अपने आप को अलग अपना अस्तित्व बनाए हुए है। अगर उसका परिवर्त न भी होगा तो उसका परिवर्त न कि सी न कि सी परमाणु के रूप में, कि सी न कि सी रंग के रूप में हो गया लेकि न जो परमाणु है उनका अस्तित्व तो नहीं मि टेगा? ऐसी भी कुछ धातु हो सकती हैं, जो दूसरी धातुओं को अपने में खा जाती है। जैसे पारा होता है, वह सोने को खा जाता है। लेकि न फिर भी सोने के जो परमाणु हैं जो द्रव्य है, उसका अस्तित्व उसमें रहता है, मि ट नहीं जाता है। आपको दिखेगा, पारे में हम सोना मि लाए जा रहे हैं वह सब खाता जा रहा है। कुछ दिख ही नहीं रहा है, वह उसी में मि लता जा रहा है लेकि न उसका अस्तित्व कभी भी मि ट नहीं सकता। यह बात अलग है, कुछ चीजें उड़ गई वा ष्प-रूप हो गई। जैसे मान लो आपने पानी की भाप बना ली तो जो पानी था उस पानी को हमने अग् नि के सम्पर्क से भाप के रूप में परिवर्ति रिवर्तित कर दिया । उड़ गया , पानी की quantity कम रह गई तो वह पानी भाप के रूप में बन गया । उसका अस्ति स्व भाव कि सी दूसरे स्व भाव के साथ हो गया लेकि न पुद्गल तो बना ही हुआ है वो। हा ँ, पर्याय तो change होती है, परि णमन उसका हो सकता है कि सी भी रूप में। द्रव्य तो पुद्गल है, तो बना ही रहेगा। तो यह ी यहा ँ पर कहा जा रहा है कि अगर हम कि सी भी पदार्थ के एक गुणधर्म को देखते हैं तो दूसरा गुणधर्म भी उसके साथ में रहता है लेकि न हम एक को जब कहते हैं तो दूसरों का अभाव नहीं हो जाता है। इसको मुख्य और गौण की व्यवस्था कहते हैं।
अनेकान्त धर्म का फायदा
हमने कहा - आप वृद्ध हैं। समझ आ रहा है न? क्या कहा ? आप वृद्ध हैं। अब वृद्ध हैं; आप पूछ सकते हैं महा राज! हम कि स अपेक्षा से वृद्ध हैं? आपने तो कहा वृद्ध हैं, अब आप तो महा राज स्या द्वा दी हैं तो आप ही बता दो। आप कि स अपेक्षा से हमें वृद्ध कह रहे हो? अब हमें सोचना पड़ेगा कि हमने कि स अपेक्षा से आपको वृद्ध कहा है। क्योंकि अपेक्षा स्पष्ट हुए बि ना जो हम कह रहें हैं, वह चीज स्पष्ट ही होगी। फिर हम कहेंगे आपके बाल सफेद पड़ गए इसलि ए आप वृद्ध हो। फिर आप कह सकते हो, महा राज! चलो ठीक है, हमने मान लिया । केवल बाल की अपेक्षा से वृद्ध हैं न और पूरे शरीर की energy की अपेक्षा से वृद्ध नहीं है न। हम आपके बराबर चल सकते हैं, आपके बराबर दौड़ सकते हैं, आपके बराबर खा सकते हैं, आपके बराबर मेहनत कर सकते हैं। हा ँ, भैय्या और कि सी अपेक्षा से आप वृद्ध नहीं हो केवल बाल सफेद दिख रहे हैं इसलि ए मैने आपको वृद्ध कहा तो अपेक्षा स्पष्ट हो गई? तो आपके मन में ये नहीं आएगा कि मैं पूरा का पूरा वृद्ध हो गया हूँ। खाली बालों की अपेक्षा से, अब उम्र की अपेक्षा से भी नहीं क्योंकि कम उम्र में भी बाल सफेद हो सकते हैं। होते ही हैं। जब हमें यह पता पड़ गया कि केवल हमें बाल की अपेक्षा से, सफेद बालों की अपेक्षा से वृद्ध कहा जा रहा है, तो उसके मन में ऐसा तो नहीं आएगा न कि मैं बूढ़ा ही हो गया ? ये अनेकान्त धर्म का देखो ऐसा फाय दा लगाया जाता है।
एकान्त को सुनकर ही सब परेशान और दु:खी होते हैं
मान लो कोई 15-20 साल का लड़का था उसके बाल सफेद थे और कि सी ने कह दिया बूढ़े भाई, वृद्ध भाई तो वह कहेगा मैं कैसे वृद्ध हो गया ? अगर उसे केवल एकान्त रूप से वृद्ध कह दिया जाएगा तो वह परेशान हो जाएगा। है कि नहीं, क्योंकि एकान्त रूप से उसने बूढ़ा अपने को मान लिया तो परेशान हो जाएगा। उसे अगर अपेक्षा नहीं मालूम है, तो भी वह परेशान हो जाएगा। अगर वह शर्मा गया , अपेक्षा नहीं पूछ पाया , ऐसा होता है कि नहीं। रो गया , अपने घर पर आ गया , मुझे तो लोग चिड़ाते हैं, मैं वृद्ध हो गया । अब उसके मन को कैसे परिवर्ति रिवर्तित किया जाए? उसको वस्तु का यथा र्थ स्व रूप बताओगे तो उसका मन glad हो सकता है। उसको यह बताना पड़ेगा कि देखो! आप में अनेक गुणधर्म हैं, आप में बहुत सारी qualities हैं। अगर एक चीज आपके सामने आपको कही जा रही है कि आप वृद्ध हैं तो आप ये पूछ लेना कि हम कि स अपेक्षा से वृद्ध हैं। सब अपेक्षाओं से तो वृद्ध नहीं हैं। कि सी ने आपके सफेद बालों को देख कर कह दिया कि आप वृद्ध हैं तो बस इतना ही समझो कि बाल सफेद हो गया , इसलि ए वृद्ध कह रहा है कोई। उम्र तो आपकी वृद्ध के लाय क नहीं है। समझ आ रहा है? आपकी मेहनत पूरी, काम पूरा, सब कुछ चल रहा है, तो आपको समूचा अपने आपको वृद्ध मानने की जरूरत नहीं है। केवल एक गुण धर्म की अपेक्षा से आपको वृद्ध कहा है, बाकी आप में अनेक ऐसे गुणधर्म हैं जिसमें आपके वृद्धत्व का कोई आभास नहीं होता। अभी कहा ँ से वृद्ध हो गए? अभी तुम बीस साल के हो, अभी हमने आपका बीसवा ँ birthday मनाया था न। आपके सब friends हैं, वे सब कैसे हैं? वृद्धों के वृद्ध friends होते हैं और आपके friends कैसे हैं? सब युवा हैं तो आप वृद्ध नहीं हो। वृद्धों की आँखें भी खराब हो जाती हैं, दिखाई नहीं देता, सुनाई कम पड़ता है। आपको तो दिखाई भी दे रहा है, सुनाई भी पड़ रहा है। वृद्ध आपकी तरह दौड़ नहीं सकते, आपकी तरह मेहनत नहीं कर सकते, आप सब कर सकते हो तो उसके मन में अपने आप एक सन्तुष्टि का भाव आ जाएगा। ये अनेकान्त दर्श न को लागू करने का तरीका बता रहे हैं। जब भी हम दुःखी होंगे, परेशान होंगे, एकान्त को सुनकर परेशान होंगे। एक बात को अपने में मानकर परेशान होंगे।
सुखी जीवन के लिए वि चारों में अनेकान्त लाएँ
अनेकान्त का प्रयोग करोगे तो क्या समझ आएगा? अरे! कि सी ने आप को कह दिया मैं गरीब हूँ। नहीं! मैं गरीब कैसे हो गया ? कहा ँ से गरीब हूँ। मेरे पास घर है, मेरे पास भोजन-पानी करने के लि ए पर्याप्त है, मेरे पास में अपनी दुकान है, फिर भी लोग कह रहे हैं गरीब है। अपने आपको वह पूरा गरीब मान रहा है क्या ? मैं गरीब ही हूँ कि दुनिया में गरीब मैं ही हूँ। अपने ऊपर वा ले की अपेक्षा से कि सी को कोई कह रहा है, तो गरीब दिख रहा है न? कि हमेशा सबकी अपेक्षा से गरीब है? कोई आदमी आज के समय में हजार पति है, लखपति भी है, तो आज के समय मे गरीब है, समझ लो जब तक करोड़पति न हो। करोड़ों में जब तक खेलने वा ला न हो, लखपती आदमी भी आज के समय में गरीब ही है। हा ँ! बस काम चला रहा है। अब उससे कोई गरीब कहेगा वह परेशान तब होगा जब वो अनेकान्त धर्म को नहीं जानेगा। अनेकान्त दर्श न को जानेगा और कभी भी तेरे को problem हो तो भाई! उससे पूछ ले। इतना कहना सीख लो सब जैनी लोग कि मुझे ये बता दो, जो आप कह रहे हो वो कि स अपेक्षा से है क्योंकि आप तो अनेकान्त को जानने वा ले हो न। बस! हम कि सी भी बात को सुनकर तुरन्त उसे सम्पूर्ण ता के साथ मान लेते हैं कि मैं ऐसा ही हूँ। लेकि न हमें यह तो बता दो कि आप जो कह रहे हो वह सर्वथा है अथवा कि सी अपेक्षा से है। जब आप कहोगे, कि सी अपेक्षा से है, तो बस उसी अपेक्षा से है, पूरा तो नहीं हुआ न। मैं गरीब हूँ कि स अपेक्षा से? बस मैं करोड़पतिय ों की अपेक्षा से गरीब हूँ। ठीक है, करोड़ पतिय ों की अपेक्षा से मैं लखपति हूँ तो तुम भी जान लो अरब पति की अपेक्षा से तुम भी गरीब हो। तुम भी जान लो। अब सन्तुष्टि हो गई कि नहीं हो गई। अगर करोड़ पतिय ों की अपेक्षा से मैं गरीब हूँ तो मेरे नीचे इतने खड़े हैं हजार पति , सैंकड़ा पति जिनके पास में रोजाना सौ रुपये नहीं है अपना दिन नि कालने के लि ए तो उनकी अपेक्षा से तो हम बहुत बहुत बड़े हैं न। तो हम सर्वथा तो गरीब नहीं हो गए। क्या समझ आ रहा है? हर चीज को आप कि सी अपेक्षा से समझोगे तो आपके लि ए कभी भी दुःख पैदा नहीं होगा।
कोई भी आपसे कुछ भी कह दे मान लो कह दिया आपसे कि आप बुरे हो। क्या कह दिया कि सी ने? तुम बहुत-बहुत बुरे हो। हाथ जोड़ कर, पूछ लो आप यह और बता दो कि स अपेक्षा से हम बुरे हैं? यह क्या कह रहे हैं? यह अपेक्षा क्या होती है? बि ना अपेक्षा से जो भी कथन है न, मि थ्या कथन कहलाता है। आप अपेक्षा बताओ। स्या द्वा दी हैं हम। कौन हैं? स्या द्वा दी हैं। माने हमें अपेक्षा से कथन करोगे तो हम मानेंगे आप की बात। आप उससे अपेक्षा पूछ लोगे तो वो क्या कहेगा? आपको एक ही angle से बताएगा न। कि सी एक aspects में वो सोच रहा होगा कि आप इस अपेक्षा से बुरे हो। भाई! तुम्हा रे लि ए तो बुरे हैं न? वह कहेगा- आपने मेरे साथ यह बुरा किया । ठीक है! आपके लि ए ही तो बुरे हो गए, सब के लि ए तो नहीं बुरे हो गए। एक व्यक्ति कह रहा है कि मैंने आपके साथ अच्छा किया था तो आपको बुरा लगा तो चलो कोई बात नहीं। आप हमको बुरा समझ रहे हो तो हम आपकी अपेक्षा से ही बुरे हो गए न? बाकी जो और लोग हैं हमारे घर में, हमारी अपनी पत्नी है, बेटे हैं, भाई है, उन सब की अपेक्षा से तो हम अच्छे हैं। पड़ोसी की अपेक्षा से बुरे हो गए तो क्या हो गया , चलो कोई बात नहीं।
अनेकान्त दर्श न का आलम्बन लेने से, मन में हमेशा प्रसन्नता का भाव रहेगा
दुनिया में ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं जो कि सी की अपेक्षा से बुरा न हो। तीर्थं कर भी नहीं बचे हैं। हा ँ, कोई होता ही नहीं। इसलि ए अपने मन में हमेशा प्रसन्नता का भाव रहेगा, अनेकान्त दर्श न का आलम्बन लेने से, स्या द्वा दी बनने से। कोई आपसे कुछ कहे, आजकल के बच्चे छोटी-छोटी बात पर बुरा मान जाते हैं। मान लो कि सी की माँ नहीं है, कि सी के पि ता नहीं है, कि सी के लि ए कोई अच्छा साधन नहीं है, कि सी के माता-पि ता ने कोई चीज नहीं दिलाई। कि सी ने कुछ comment कर दिया तुरन्त बच्चे बुरा मान जाते हैं। अगर हम उन्हें स्या द्वा द शैली समझा कर रखे और शुरू से ही हम उन्हें यह समझाएँ बेटा! कभी भी कोई तुमसे कोई बात कहे तो तुम पहले एकदम से यह मत सोच लेना कि उसकी बात सर्वथा सही है। ये सोचना कि वो कि स angle से बोल रहा है, कि स अपेक्षा से उसकी बात है। उस अपेक्षा को जानना तो तुम्हा रे लि ए कभी भी दुःख नहीं होगा। हर बेटे को यह बात समझाओ। कभी भी तुमसे कोई बात कहे, तुम्हा रे पि ता ने तुमको यह चीज नहीं दिलाई। ठीक है! यह चीज नहीं दिलाई और बहुत कुछ तो दिलाया न। इस अपेक्षा से चलो ठीक है मेरे पि ता ने यह चीज नहीं दिलाई इसलि ए तुम्हा रा यह घर अच्छा नहीं है, तुम्हा रे पि ता अच्छे नहीं हैं। चलो कोई बात नहीं लेकि न और चीजें तो हैं हमारे पास में।
अनेकान्त दर्श न की महिमा
जब तक आपको ये स्या द्वा द शैली के अनुसार अनेकान्त धर्म की विचारधारा नहीं आएगी आप कि सी से भी अपने आप को परेशान कर सकते हो और आप का मन दुःखी हो सकता है। समझ आ रहा है न? जब भी आपको कोई बुरा कहेगा तो आप देख लेना वह उसकी अपेक्षा से ही बुरा होगा। सबकी अपेक्षा से तो हर कोई बुरा होता नहीं तो आप अपने में खुश रहो। चल भाई मैं तेरी अपेक्षा से बुरा हूँ लेकि न अपने भाई, बेटे, पत्नी उनकी अपेक्षा से तो अच्छा हूँ, बस बात खत्म। जब आप यह देख लोगे कि हमारे लि ए अनेक और भी गुणधर्म हमारे अन्दर हैं तो आपके मन की प्रसन्नता पुनः बन जाएगी। क्या सुन रहे हो? अनेकान्त दर्श न का लोग आज बि लकुल भी लाभ नहीं लेते, उपयोग नहीं करते और अनेकान्त दर्श न की कोई भी व्यक्ति आज महि मा नहीं समझ रहा है। मैंने अभी कुछ दिनों पहले एक article पढ़ा था । जब ये आतंक बहुत मच रहा था विदेशों में तो उस समय पर कि सी से पूछा गया था कि इस देश में अगर ये आतंक मि ट सकता है या दूर हो सकता है, तो कैसे होगा? एक english newspaper में यह एक article नि कला था कि वर्त मान का कि तना भी आतंकवा द है वह तब दूर होगा जब हर व्यक्ति के अन्दर अनेकान्तवा द का ज्ञा न आ जाएगा और यह foreign writer ने लि खा था । क्या समझ आया ? व्यक्ति के दिमाग में जब अनेकान्त होगा, स्या द्वा द होगा तब वो क्या करेगा? वह दूसरों की बात सुनकर बुरा नहीं मानेगा। वह उसकी अपेक्षा समझेगा और अपेक्षा समझने के साथ -साथ यह भी समझेगा कि इसकी भी बात सही तो है लेकि न सर्वथा नहीं है, कि सी अपेक्षा से सही है। इसी का नाम है- अनेकान्तवा द। जब हमें कि सी की बात पूर्ण रूप से बुरी लग जाती है, तो हमारे सामने वो व्यक्ति बुरा हो जाता है, हम उसके दुश्म न बन जाते हैं। आजकल तो लोग छोटी-छोटी बातों पर गोलिया ँ चला देते हैं। कोई अपने कार से जा रहा था , बगल वा ला कोई भी कार अपनी थोड़ी सी भि ड़ा कर चला गया , उसने shoot कर दिया । कार के बाह र नि कला, कुत्ता भी उसका पालतू था उसके साथ में बाह र आया । कि सी ने उसके कुत्ते से थोड़ी सी सटा कर अपनी गाड़ी नि काल कर चला गया या उसके बगल से कोई bike नि काल कर चला गया , उसने उसको shoot कर दिया , डॉगी के कारण से। मतलब आदमी दूसरे को स्वी कार करना ही नहीं चाह रहा है।
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मारे अन्दर और भी गुणधर्म हैं- ये अनेकान्त का उपयोग है
अनेकान्तवा द के माध्य म से ही यह बात सामने आती है कि हम जो हैं वो तो हैं ही और दूसरा अगर हमसे कह रहा है, तो हम समझें यह जो कह रहा है, वह कि स अपेक्षा से कह रहा है। जिस अपेक्षा से कह रहा है उस अपेक्षा से सही है, तो हमारे लि ए उसका बुरा लगेगा ही नहीं। हा ँ इस अपेक्षा से सही है, यह हमें स्वी कार है और बाकी की अन्य अपेक्षाएँ तो हैं जिनके कारण हमारे अन्दर और भी गुणधर्म हैं। यह अनेकान्त का उपयोग है। इसलि ए आचार्य कहते हैं कि अस्ति धर्म और नास्ति धर्म और उसके साथ -साथ अस्ति-नास्ति धर्म , फिर उसके साथ -साथ अवक्तव्य, फिर उसके साथ -साथ अस्ति-अवक्तव्य, नास्ति-अवक्तव्य, अस्ति-नास्ति अवक्तव्य इन सातों भंगों को देखो। मतलब ये सात प्रकार के विचार, सात प्रकार के question आप के दिमाग में आ सकते हैं। जैसे कोई पदार्थ है, तो हमने कहा यह कपड़ा नहीं है, यह कागज है। हमने कहा यह कागज है, फिर यह कपड़ा नहीं हैं। फिर इन दोनों को हम एक साथ कह सकते हैं। हा ँ! यह कथञ्चि त् कागज है, कथञ्चि त् कपड़ा नहीं है। यह हमने क्रम-क्रम से कहा , एक साथ तो फिर भी नहीं कहा और एक साथ जब कहना चाह े तो हम देखते हैं कि एक साथ हम कह नहीं सकते तो उसका नाम है- अवक्तव्य। फिर हमने इसके एक गुणधर्म को पकड़ा। नहीं है, कथञ्चि त् कागज है लेकि न फिर भी बहुत सारा अवक्तव्य है जो हम कह नहीं पा रहे हैं। अगर हमने इसके एक गुणधर्म को पकड़ लिया ये कथञ्चि त् कागज नहीं है, ये कथञ्चि त् कापड़ा नहीं है, तो भी बहुत कुछ है जो इसमें अवक्तव्य रह गया तो वो उसके साथ जुड़ गया । अगर हमने क्रम से भी कह दिया कि ये कथञ्चि त् कागज है, कथञ्चि त् कपड़ा नहीं है और उसके साथ भी बहुत कुछ अवक्तव्य रह जाता है जो कहने में नहीं आ रहा है, तो उसके साथ भी अवक्तव्य जुड़ जाता है। इस तरह से सात प्रकार के question आप के अन्दर आएँगे, आठवा ँ आ ही नहीं सकता। यह हर धर्म के साथ लगेगा, धर्म माने हर उसकी quality जो है। जैसे अस्ति है, तो उसके साथ नास्ति, अस्ति-नास्ति, अवक्तव्य। ऐसा नि त्य धर्म है, अब जैसे पदार्थ नि त्य है कि अनि त्य है। हम कहेंगे स्या द-नि त्य तो स्या द-अनि त्य वो भी है। फिर स्या द में पूछा जाएगा कि सके अपेक्षा से नि त्य तो द्रव्यार् थिक नय की अपेक्षा से, द्रव्य की अपेक्षा से नि त्य है। पर्यायार् थिक नय से पर्याय की अपेक्षा से अनि त्य है। जब हमने कहा स्या द-नि त्य, स्या द-अनि त्य फिर हम क्रम-क्रम से भी उसको कह सकते हैं, स्या द-नि त्य स्या द-अनि त्य तीसरा भंग ये हो गया । फिर जो है बहुत कुछ अवक्तव्य रह जाता है, हम कह नहीं पाते हैं तो वो हो गया चौथा भंग- स्या द-अवक्तव्य। फिर जब हमने कहा स्या द-नि त्य-अवक्तव्य तो उसमें स्या द नि त्य तो है लेकि न उसके साथ में भी बहुत कुछ आवा च्य है, अवक्तव्य है, वो हो गया - पाँचवा ँ भंग। ऐसे जब हमने कहा स्या द-अनि त्य तो उसके साथ भी बहुत कुछ अवक्तव्य रह जाता है, कहने में नहीं आ रहा है, वो हो गया - स्या द-अनि त्य-अवक्तव्य। फिर हमने ये क्रम-क्रम से कहा तो भी कुछ अवक्तव्य रह जाता है, तो हो गया स्या द-नि त्य-अनि त्य-अवक्तव्य। इसके अलावा कोई प्रश्न आएगा ही नहीं। समझ आ रहा है न? हर तरीके से हमारे विचार को पकड़ कर आचार्यों ने हमें यह सप्त भंगी की परि कल्पना दी है कि कोई भी पदार्थ के गुणधर्म को हम अगर अधि क से अधि क भागों में विभाजित कर सकते हैं तो ये सात भंग हैं और इसके माध्य म से हम पदार्थ के पूरे स्व रूप को जान सकते हैं।
वस्तु का धर्म जब हम अपेक्षा के साथ समझेंगे तो हमको हर्ष -वि षाद नहीं होगा
कोई भी कथनी की जाती है वह कि स अपेक्षा से है, यह आपको सोचना है। कि सी ने कहा मेरा बेटा बड़ा गोरा है, तो अब यह पूछो गोरा कि स अपेक्षा से है? क्या गोरा ही है काला नहीं है, कहीं भी? नहीं-नहीं काले की अपेक्षा से नहीं उसमें भी कहीं कालापन है कि नहीं। बाल काले नहीं उसके, आँखों की भौएँ काली नहीं है, आँखों के अन्दर का काँच काला नहीं है। गोरा है यह भी उसकी एक अपेक्षा ही हुई न? बाह री skin की अपेक्षा से उसको गोरा कहा जा रहा है लेकि न यह भी सर्वथा सत्य नहीं है। कोई भी कथन देखो, कि स अपेक्षा से कहा जा रहा है? अपेक्षा पता पड़ेगी तो आपको उसकी सही स्थिति पता पड़ेगी। बि ना अपेक्षा के आप स्वी कार लोगे तो पल में तो खुश हो जाओगे, पल में मुरझा जाओगे। कि सी दिन कि सी ने कह दिया उस गोरे बेटे को कि तू काला हो गया , काला है। फिर क्या होगा? उसे फिर से समझना पड़ेगा कि स अपेक्षा से मैं काला हो गया । कोई भी वस्तु का धर्म जब हम अपेक्षा के साथ समझेंगे तो हमको हर्ष -विषाद नहीं होगा, हम अपने आप रह सकेंगे और अगर हमने अपेक्षाएँ सीखना छोड़ दी तो हम परेशान ही होंगे। आज व्यक्ति depression में जा रहा है उसका सबसे बड़ा कारण यह है कि उसे अपने ही गुणधर्म और जो उसके पास होते हैं, पता नहीं होता है। एक चीज को अपने दिल में बि ठा लेता है उसी में अपना मन घूमाता रहता है और बस उसी में उसका दिमाग लग जाता है। ऐसा लग जाता है कि दिन-रात बस उसी में सोचता रहता है और एक छोटी सी बात को लेकर। पत्नी ने कुछ कह दिया , boss ने कुछ कह दिया , कि सी व्यक्ति ने कुछ कह दिया , एक छोटी सी बात को लेकर और उसका मन उसमें इतना घुल गया , इतना घुल गया कि बस वो depression में चला गया । उभरने का साधन क्या है? दवा इया ँ तो कभी साधन होती ही नहीं हैं। आदमी ही अपने विचार से depression में गया है, तो विचार से ही ऊपर उभर कर आएगा। वह विचार क्या है? वह यह अनेकान्त धर्म का विचार है। जब तक हम इस अनेकान्त का उपयोग अपने जीवन में हर समय नहीं करेंगे तब तक हमारे लि ए इसकी उपयोगि ता समझ में नहीं आएगी। तो हर कथनी में यहा ँ पर यह बताया जा रहा है कि अगर हम कोई भी बात कह रहे हैं तो वे कथञ्चि त् ही, कि सी अपेक्षा से वह है और कि सी अपेक्षा से वह नहीं है। जिस अपेक्षा से है वह सत्य है और जिस अपेक्षा से नहीं है वह भी हमारे लि ए सत्य है।
इसी को कहा जाता है कि अगर हम एकान्त रूप से हमने वह ी मान लिया कि यह यह ी है, तो इसको कहा हमने ही , एक शब्द इसमें लगता है यह ऐसा ही है तो उस अपेक्षा से देखेंगे तब तो कहा जाएगा, ये ऐसा ही है लेकि न जब हम अन्य की अपेक्षा से देखेंगे तो हम कहेंगे कि ये ऐसा भी है। मतलब यह कहना कि यह गरीब ही है, यह सत्य है? यह गरीब भी है ऐसा कहोगे तो चल जाएगा। यह गोरा ही है ऐसा कहोगे तो वह नहीं चलेगा। लेकि न यह गोरा भी है और वह भी तब चलेगा भी वा ला भंग, गोरा ही है, गरीब ही है। जब आप उसकी अपेक्षा बता दोगे माने इस अपेक्षा से तो वह ही लग जाएगा कि यह इस अपेक्षा से हैं। जैसे मान लो उसके साथ में कोई अमीर व्यक्ति खड़ा है, तो उसकी अपेक्षा से वो गरीब ही है। ऐसा कहने में कुछ भी बाधा नहीं है लेकि न उसे भी यह पता होना चाहि ए कि हम गरीब ही नहीं है। समझ आ रहा है? हम गरीब भी हैं क्योंकि एक व्यक्ति की अपेक्षा से हम यह सब कुछ नहीं हैं। अन्य अनेक व्यक्ति हैं उनकी अपेक्षा से भी हम कुछ हैं।
कोई भी चीज अपने अस्तित्व में न छोटी है न बड़ी है
जैसे स्कू स्कू लों में पढ़ाया जाता है बेटा एक line खींची है। अब पूछा गया बताओ, ये line छोटी है या बड़ी है? अभी कुछ भी अपेक्षा नहीं अभी तो एक line खींची है, अब पूछा जा रहा है कि ये line छोटी है या बड़ी है। अभी तो ये छोटी है न बड़ी है। अभी तो जो है सो है। अब वो line तो वह ीं खि ंची है। वह line चार सेंटीमीटर की line थी, हमने उसके ऊपर सात सेंटीमीटर की line खींच दी। अब क्या हो गया ? छोटी हो गई। उस line को छोटा कि ए बि ना इसको छोटा करना है। ऐसा कहा गया था तो समझदार बच्चे ने क्या किया ? उसके ऊपर एक बड़ी line खींच दी। इस line की अपेक्षा से अपने-आप छोटी दिखने लगी। फिर पूछा गया इसी line को आप कुछ भी बढ़ाए बि ना इसको बड़ी करके दिखाओ। सुन रहे हो? उसके नीचे एक दो सेंटीमीटर की एक line उसने खींच दी तो उसकी अपेक्षा से वो बड़ी हो गई। अब उससे पूछा जा रहा है, बताओ इसमें तो हमने कुछ नहीं किया । न हमने इसको छोटा किया , न हमने इसको बड़ा किया । अब यह छोटी और बड़ी कैसी हो गई? समझाओ बच्चों को कि जब ऊपर बड़ी थी तो उसके कारण से छोटी हो गई। वो तो अपनी अस्तित्व में वैसी ही है न? उसका अस्तित्व तो जैसा था वैसा ही है लेकि न हमने उसके अस्तित्व को छोटा कब मान लिया । जब उसके आगे कोई बड़ा आ गया । उसी को हमने बड़ा क्यों कह दिया जब उसके नीचे कोई छोटा आ गया । बेटे को समझाओ, बूढ़े भी समझे। कोई भी चीज अपने अस्तित्व में न छोटी है, न बड़ी है। कोई भी व्यक्ति अपने अस्तित्व में न गरीब है, न अमीर है। यह सब क्या है? सब compare करके होता है। दुनिया में हर व्यक्ति एक दूसरे के साथ अपने को compare करता है और उसी को compare करके अपने-आप को छोटा या बड़ा मान लेता है। अपने आप में न वह छोटा है, न बड़ा है, वह जैसा है वैसा है। मान लो कोई बहुत नाटा व्यक्ति है, बहुत गट्टा -नाटा जिसको आप बोलते हैं, ऐसा भी कोई व्यक्ति है। उससे कहे कोई अरे या र तू बहुत नाटा है, नाटा है, नाटा है। उसे अगर ये अनेकान्त धर्म मालूम हो तो उसे पता पड़ेगा कि अरे! मुझसे ज्या दा तो इस दुनिया में कि तने अनन्त जीव हैं। कि तने कीड़े-चींटी-मकौड़े घूम रहे हैं, कि तनी चिड़िया ँ और पंछी घूम रहे हैं। मैं उनसे बहुत बड़ा हूँ। हम कि सी अपेक्षा से अपने को हमें वैसा स्वी कार करेंगे तो कहलाएगा कि हा ँ! कि सी अपेक्षा से हम ऐसे भी हैं। और अगर हमने सर्वथा ऐसा मान लिया कि हम ऐसे ही हैं तो फिर हम कभी भी सुखी नहीं हो सकते, हम depression में चले जाएँगे।
खुश रहना है, तो अपने से नीचे वालों को देखो-
यह चीज सीखने की है कि हमारा अस्तित्व जैसा है वैसा है। उसमें कहीं कुछ कमी-वेशी नहीं है। लेकि न हम दूसरों की तुलना से अपने आपको आँकते हैं और जो व्यक्ति दूसरों की तुलना से अपने को आँकता है वह अपने को कभी समझ ही नहीं सकता है। हर व्यक्ति दूसरे की तुलना से अपने को आँक रहा है, जो उसके आसपास होंगे उनसे अपनी तुलना करेगा और अपने आपको वैसा मान लेगा। मैं यहा ँ रहने वा ले लोगों के बीच में इनकी अपेक्षा से क्या हूँ? वे नहीं भी कहेंगे तो भी अपनी अपेक्षा से उनकी तुलना से वह अपने आपको वैसा मान लेगा और हर व्यक्ति तुलना कर के ही जो है अपने आप को मानने लग जाता है कि हा ँ मैं ऐसा ही हूँ। सर्वथा तो कुछ होता ही नहीं है। हमेशा हर आदमी ने तुलना की है और तुलना से ही उसके लि ए यह सब जो है सुख-दुःख प्राप्त होते रहते हैं। छोटे से तुलना करेगा तो सुखी रहेगा और बड़े से तुलना करेगा तो दुःखी रहेगा। यह पहले समझाया जाता था , बेटा कभी भी अपनी तुलना अपने बड़ों से मत करना। बड़ों को तो केवल इसलि ए देखना कि अपने को भी ऐसा बड़ा बनना है लेकि न उनसे तुलना करके यह मत सोच लेना कि हम ऐसे हैं। खुश रहना है, तो अपने से नीचे वा लों को देखो। कमाई कि तनी हो रही है? आजीविका कि तनी मि ल रही है? खुश रहना है, तो अपने से नीचे वा लों को देखो। जितना मि ल रहा है उसमें सुखी रहना है, तो अपने से नीचे वा लों को देखो। हमारे पास कि ससे बहुत ज्या दा है? उनसे बहुत ज्या दा है, सुखी रहोगे और अपने से बड़े वा लों को देखोगे तो दुःखी रहोगे। इसलि ए कहा जाता है नीचे देखकर चलो। माने अपने से नीचे वा लों को देखो तो आपके मन में सन्तुष्टि रहेगी, सुख बना रहेगा। नहीं तो आप हमेशा दूसरों से तुलना करके अपने आप को कष्ट में लाएँगे। आपके पास जो है उसका भी आपको सुख नहीं मि लेगा और वहा ँ पहुँ च भी जाओगे तो फिर तुम्हें वहा ँ पर तुलना करने की आदत पड़ गई है। फिर और बड़े होंगे और बड़ों की तुलना करोगे तो उस बड़े का तो कोई अन्त है ही नहीं। इसीलि ए हमें हमेशा पहले समझाया जाता था घरों में, माता-पि ता समझाते थे कि हमेशा अपने से छोटे वा ले को देखना, बड़े वा लों को मत देखना। तभी आप सुखी रह सकोगे मतलब सन्तुष्टि का यह सूत्र है। अगर हमें तुलना करना है, तो अपने से बड़ों से तुलना करेंगे तो हम दुःखी नहीं होना चाहि ए। अपने से बड़ों से सीख हमें मि लना चाहि ए कि हा ँ, उनकी तरह हमें भी आगे बढ़ना है लेकि न तुलना करके अपने मे दुःखी नहीं होना। इतना ज्ञा न रहेगा तो हम बड़ों से भी सीख लेंगे और छोटों से सन्तुष्टि प्राप्त कर लेंगे और इससे चलता रहेगा जीवन। समझ आ रहा है? अगर यह नहीं है, तो फिर दुःख ही दुःख है। इसीलि ए लि खा गया :–
“पर तुलना से हँसना रोना,
सुख
ी
-दुःखी यूँ पलपल होना।
पर तुलना से हँसना रोना,
सुखी-दुःखी यूँ पलपल होना।
चेतन को इन क्ष णिकाओं में,
आखि र मिलता क्या ?
जो हो सो हो, जो है सो है,
ह
मको क्
या
? हमको क्या ? हमको क्या ?
वस्तु स्वरूप जानने वाला कभी भी किसी से डरता नहीं है
बने रहो बि ंदास। दास मत बनो बि ंदास बने रहो। कोई भी व्यक्ति अपने आप में कभी भी कि सी भी तरीके से पूर्ण होता ही नहीं है। हम आपसे कहे तीर्थं करों में भी बहुत सारी कमिया ँ हैं। आज बताएँ, तीर्थं करों की कमिया ँ बताएँ? तीर्थं कर भी अपने आप में पूर्ण नहीं हैं, आप भले ही कहते रहो। स्या द्वा द को जानने वा ला कहेगा कोई भी व्यक्ति कहीं पूर्ण नहीं होता कभी। तीर्थं करों में भी कि तनी कमिया ँ हैं? जैसे? देखो! हम कि सी भी चीज को आँख से देख सकते हैं वो कि सी भी चीज को अपनी आँख से नहीं देख सकते। अरे! उससे क्या लेना-देना? हम कि सी भी चीज का स्वा द ले सकते हैं, बता सकते हैं, हा ँ, कि तनी tasty चीज है, कि तनी चटपटी चीज है। कोई भी अनुभव कर लेते हैं, सब तुम्हा री taste का भी अनुभव करते रहते हैं बैठे-बैठे। फिर कौन से taste का अनुभव आएगा? दुनिया में इतने मसाले हैं, इतने taste हैं, सब चटपटा, खट्टा -मीठा सबका अनुभव कर लेते हो बैठे-बैठे। अनुभव कर लिया , काय का अनुभव कर लेते हैं? जो अनुभव जिस इन्द्रिय का विषय है उसी इन्द्रिय से जब कोई ज्ञा न आएगा तभी तो अनुभव होगा? वो कभी नहीं बता सकते, कचौड़ी कैसी है, ये रसगुल्ला कैसा है, यूँ कह देंगे मीठा है, लेकि न उनके अन्दर वो taste नहीं आ सकता जो taste आप अधूरे हो, हमसे पूछो अभी आपने पूरा नहीं सुना न प्रवचनसार इसलि ए कहते हो, पहले सुन चुके हैं, अतीन्द्रिय ज्ञा न, इन्द्रिय ज्ञा न। आपके पास केवल एक ही ज्ञा न है, भगवा न हा ँ, बस केवलज्ञा न। हमारे पास दो ज्ञा न हैं – मति ज्ञा न, श्रुतज्ञा न, हम आपसे भी बड़े हैं। अरे आप डरते हो, यह ी तो बात है। देखो! स्या द्वा दी कभी डरेगा नहीं। उसे अपेक्षा मालूम है न, हम कि स अपेक्षा से कह रहे हैं। हम आपसे बड़े इसलि ए नहीं हो गए कि तीर्थं करों से भी कोई बड़ा होता है। नहीं! नहीं, हमारी अपेक्षा तो समझो, आप ही ने तो समझाया कि स अपेक्षा से कहा कौन छोटा, कौन बड़ा। हम आपसे बड़े हैं, आप ही ने समझाया स्या द्वा द हमें, हमसे पूछो कि स अपेक्षा से आप बड़े हो, हम बताएँगे आपको।
हमने mixture तो बना लिया लेकि न अगर हम उस धातु की अपेक्षा से देखेंगे तो आपके लि ए जब कभी भी फिर धातुओं को उसमें से उसको नापना पड़ जाए, कि सी सुनार के पास फिर ले जाओ कि भाई इसमें कि तना सोना है, कि तनी चाँदी है, कि तना काँसा मि ला है, आपको सब बता देगा कि नहीं? सब को अलग-अलग कर देगा। सबका अस्तित्व अलग-अलग हुआ कि नहीं? स्या द-अस्ति, स्या द-नास्ति। हर पदार्थ अपने स्व रूप की अपेक्षा से रहेगा। धातु की अपेक्षा से देखोगे तो हर metal अपने आप को अलग अपना अस्तित्व बनाए हुए है। अगर उसका परिवर्त न भी होगा तो उसका परिवर्त न कि सी न कि सी परमाणु के रूप में, कि सी न कि सी रंग के रूप में हो गया लेकि न जो परमाणु है उनका अस्तित्व तो नहीं मि टेगा? ऐसी भी कुछ धातु हो सकती हैं, जो दूसरी धातुओं को अपने में खा जाती है। जैसे पारा होता है, वह सोने को खा जाता है। लेकि न फिर भी सोने के जो परमाणु हैं जो द्रव्य है, उसका अस्तित्व उसमें रहता है, मि ट नहीं जाता है। आपको दिखेगा, पारे में हम सोना मि लाए जा रहे हैं वह सब खाता जा रहा है। कुछ दिख ही नहीं रहा है, वह उसी में मि लता जा रहा है लेकि न उसका अस्तित्व कभी भी मि ट नहीं सकता। यह बात अलग है, कुछ चीजें उड़ गई वा ष्प-रूप हो गई। जैसे मान लो आपने पानी की भाप बना ली तो जो पानी था उस पानी को हमने अग् नि के सम्पर्क से भाप के रूप में परिवर्ति रिवर्तित कर दिया । उड़ गया , पानी की quantity कम रह गई तो वह पानी भाप के रूप में बन गया । उसका अस्ति स्व भाव कि सी दूसरे स्व भाव के साथ हो गया लेकि न पुद्गल तो बना ही हुआ है वो। हा ँ, पर्याय तो change होती है, परि णमन उसका हो सकता है कि सी भी रूप में। द्रव्य तो पुद्गल है, तो बना ही रहेगा। तो यह ी यहा ँ पर कहा जा रहा है कि अगर हम कि सी भी पदार्थ के एक गुणधर्म को देखते हैं तो दूसरा गुणधर्म भी उसके साथ में रहता है लेकि न हम एक को जब कहते हैं तो दूसरों का अभाव नहीं हो जाता है। इसको मुख्य और गौण की व्यवस्था कहते हैं।
अनेकान्त धर्म का फायदा
हमने कहा - आप वृद्ध हैं। समझ आ रहा है न? क्या कहा ? आप वृद्ध हैं। अब वृद्ध हैं; आप पूछ सकते हैं महा राज! हम कि स अपेक्षा से वृद्ध हैं? आपने तो कहा वृद्ध हैं, अब आप तो महा राज स्या द्वा दी हैं तो आप ही बता दो। आप कि स अपेक्षा से हमें वृद्ध कह रहे हो? अब हमें सोचना पड़ेगा कि हमने कि स अपेक्षा से आपको वृद्ध कहा है। क्योंकि अपेक्षा स्पष्ट हुए बि ना जो हम कह रहें हैं, वह चीज स्पष्ट ही होगी। फिर हम कहेंगे आपके बाल सफेद पड़ गए इसलि ए आप वृद्ध हो। फिर आप कह सकते हो, महा राज! चलो ठीक है, हमने मान लिया । केवल बाल की अपेक्षा से वृद्ध हैं न और पूरे शरीर की energy की अपेक्षा से वृद्ध नहीं है न। हम आपके बराबर चल सकते हैं, आपके बराबर दौड़ सकते हैं, आपके बराबर खा सकते हैं, आपके बराबर मेहनत कर सकते हैं। हा ँ, भैय्या और कि सी अपेक्षा से आप वृद्ध नहीं हो केवल बाल सफेद दिख रहे हैं इसलि ए मैने आपको वृद्ध कहा तो अपेक्षा स्पष्ट हो गई? तो आपके मन में ये नहीं आएगा कि मैं पूरा का पूरा वृद्ध हो गया हूँ। खाली बालों की अपेक्षा से, अब उम्र की अपेक्षा से भी नहीं क्योंकि कम उम्र में भी बाल सफेद हो सकते हैं। होते ही हैं। जब हमें यह पता पड़ गया कि केवल हमें बाल की अपेक्षा से, सफेद बालों की अपेक्षा से वृद्ध कहा जा रहा है, तो उसके मन में ऐसा तो नहीं आएगा न कि मैं बूढ़ा ही हो गया ? ये अनेकान्त धर्म का देखो ऐसा फाय दा लगाया जाता है।
एकान्त को सुनकर ही सब परेशान और दु:खी होते हैं
मान लो कोई 15-20 साल का लड़का था उसके बाल सफेद थे और कि सी ने कह दिया बूढ़े भाई, वृद्ध भाई तो वह कहेगा मैं कैसे वृद्ध हो गया ? अगर उसे केवल एकान्त रूप से वृद्ध कह दिया जाएगा तो वह परेशान हो जाएगा। है कि नहीं, क्योंकि एकान्त रूप से उसने बूढ़ा अपने को मान लिया तो परेशान हो जाएगा। उसे अगर अपेक्षा नहीं मालूम है, तो भी वह परेशान हो जाएगा। अगर वह शर्मा गया , अपेक्षा नहीं पूछ पाया , ऐसा होता है कि नहीं। रो गया , अपने घर पर आ गया , मुझे तो लोग चिड़ाते हैं, मैं वृद्ध हो गया । अब उसके मन को कैसे परिवर्ति रिवर्तित किया जाए? उसको वस्तु का यथा र्थ स्व रूप बताओगे तो उसका मन glad हो सकता है। उसको यह बताना पड़ेगा कि देखो! आप में अनेक गुणधर्म हैं, आप में बहुत सारी qualities हैं। अगर एक चीज आपके सामने आपको कही जा रही है कि आप वृद्ध हैं तो आप ये पूछ लेना कि हम कि स अपेक्षा से वृद्ध हैं। सब अपेक्षाओं से तो वृद्ध नहीं हैं। कि सी ने आपके सफेद बालों को देख कर कह दिया कि आप वृद्ध हैं तो बस इतना ही समझो कि बाल सफेद हो गया , इसलि ए वृद्ध कह रहा है कोई। उम्र तो आपकी वृद्ध के लाय क नहीं है। समझ आ रहा है? आपकी मेहनत पूरी, काम पूरा, सब कुछ चल रहा है, तो आपको समूचा अपने आपको वृद्ध मानने की जरूरत नहीं है। केवल एक गुण धर्म की अपेक्षा से आपको वृद्ध कहा है, बाकी आप में अनेक ऐसे गुणधर्म हैं जिसमें आपके वृद्धत्व का कोई आभास नहीं होता। अभी कहा ँ से वृद्ध हो गए? अभी तुम बीस साल के हो, अभी हमने आपका बीसवा ँ birthday मनाया था न। आपके सब friends हैं, वे सब कैसे हैं? वृद्धों के वृद्ध friends होते हैं और आपके friends कैसे हैं? सब युवा हैं तो आप वृद्ध नहीं हो। वृद्धों की आँखें भी खराब हो जाती हैं, दिखाई नहीं देता, सुनाई कम पड़ता है। आपको तो दिखाई भी दे रहा है, सुनाई भी पड़ रहा है। वृद्ध आपकी तरह दौड़ नहीं सकते, आपकी तरह मेहनत नहीं कर सकते, आप सब कर सकते हो तो उसके मन में अपने आप एक सन्तुष्टि का भाव आ जाएगा। ये अनेकान्त दर्श न को लागू करने का तरीका बता रहे हैं। जब भी हम दुःखी होंगे, परेशान होंगे, एकान्त को सुनकर परेशान होंगे। एक बात को अपने में मानकर परेशान होंगे।
सुखी जीवन के लिए वि चारों में अनेकान्त लाएँ
अनेकान्त का प्रयोग करोगे तो क्या समझ आएगा? अरे! कि सी ने आप को कह दिया मैं गरीब हूँ। नहीं! मैं गरीब कैसे हो गया ? कहा ँ से गरीब हूँ। मेरे पास घर है, मेरे पास भोजन-पानी करने के लि ए पर्याप्त है, मेरे पास में अपनी दुकान है, फिर भी लोग कह रहे हैं गरीब है। अपने आपको वह पूरा गरीब मान रहा है क्या ? मैं गरीब ही हूँ कि दुनिया में गरीब मैं ही हूँ। अपने ऊपर वा ले की अपेक्षा से कि सी को कोई कह रहा है, तो गरीब दिख रहा है न? कि हमेशा सबकी अपेक्षा से गरीब है? कोई आदमी आज के समय में हजार पति है, लखपति भी है, तो आज के समय मे गरीब है, समझ लो जब तक करोड़पति न हो। करोड़ों में जब तक खेलने वा ला न हो, लखपती आदमी भी आज के समय में गरीब ही है। हा ँ! बस काम चला रहा है। अब उससे कोई गरीब कहेगा वह परेशान तब होगा जब वो अनेकान्त धर्म को नहीं जानेगा। अनेकान्त दर्श न को जानेगा और कभी भी तेरे को problem हो तो भाई! उससे पूछ ले। इतना कहना सीख लो सब जैनी लोग कि मुझे ये बता दो, जो आप कह रहे हो वो कि स अपेक्षा से है क्योंकि आप तो अनेकान्त को जानने वा ले हो न। बस! हम कि सी भी बात को सुनकर तुरन्त उसे सम्पूर्ण ता के साथ मान लेते हैं कि मैं ऐसा ही हूँ। लेकि न हमें यह तो बता दो कि आप जो कह रहे हो वह सर्वथा है अथवा कि सी अपेक्षा से है। जब आप कहोगे, कि सी अपेक्षा से है, तो बस उसी अपेक्षा से है, पूरा तो नहीं हुआ न। मैं गरीब हूँ कि स अपेक्षा से? बस मैं करोड़पतिय ों की अपेक्षा से गरीब हूँ। ठीक है, करोड़ पतिय ों की अपेक्षा से मैं लखपति हूँ तो तुम भी जान लो अरब पति की अपेक्षा से तुम भी गरीब हो। तुम भी जान लो। अब सन्तुष्टि हो गई कि नहीं हो गई। अगर करोड़ पतिय ों की अपेक्षा से मैं गरीब हूँ तो मेरे नीचे इतने खड़े हैं हजार पति , सैंकड़ा पति जिनके पास में रोजाना सौ रुपये नहीं है अपना दिन नि कालने के लि ए तो उनकी अपेक्षा से तो हम बहुत बहुत बड़े हैं न। तो हम सर्वथा तो गरीब नहीं हो गए। क्या समझ आ रहा है? हर चीज को आप कि सी अपेक्षा से समझोगे तो आपके लि ए कभी भी दुःख पैदा नहीं होगा।
कोई भी आपसे कुछ भी कह दे मान लो कह दिया आपसे कि आप बुरे हो। क्या कह दिया कि सी ने? तुम बहुत-बहुत बुरे हो। हाथ जोड़ कर, पूछ लो आप यह और बता दो कि स अपेक्षा से हम बुरे हैं? यह क्या कह रहे हैं? यह अपेक्षा क्या होती है? बि ना अपेक्षा से जो भी कथन है न, मि थ्या कथन कहलाता है। आप अपेक्षा बताओ। स्या द्वा दी हैं हम। कौन हैं? स्या द्वा दी हैं। माने हमें अपेक्षा से कथन करोगे तो हम मानेंगे आप की बात। आप उससे अपेक्षा पूछ लोगे तो वो क्या कहेगा? आपको एक ही angle से बताएगा न। कि सी एक aspects में वो सोच रहा होगा कि आप इस अपेक्षा से बुरे हो। भाई! तुम्हा रे लि ए तो बुरे हैं न? वह कहेगा- आपने मेरे साथ यह बुरा किया । ठीक है! आपके लि ए ही तो बुरे हो गए, सब के लि ए तो नहीं बुरे हो गए। एक व्यक्ति कह रहा है कि मैंने आपके साथ अच्छा किया था तो आपको बुरा लगा तो चलो कोई बात नहीं। आप हमको बुरा समझ रहे हो तो हम आपकी अपेक्षा से ही बुरे हो गए न? बाकी जो और लोग हैं हमारे घर में, हमारी अपनी पत्नी है, बेटे हैं, भाई है, उन सब की अपेक्षा से तो हम अच्छे हैं। पड़ोसी की अपेक्षा से बुरे हो गए तो क्या हो गया , चलो कोई बात नहीं।
अनेकान्त दर्श न का आलम्बन लेने से, मन में हमेशा प्रसन्नता का भाव रहेगा
दुनिया में ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं जो कि सी की अपेक्षा से बुरा न हो। तीर्थं कर भी नहीं बचे हैं। हा ँ, कोई होता ही नहीं। इसलि ए अपने मन में हमेशा प्रसन्नता का भाव रहेगा, अनेकान्त दर्श न का आलम्बन लेने से, स्या द्वा दी बनने से। कोई आपसे कुछ कहे, आजकल के बच्चे छोटी-छोटी बात पर बुरा मान जाते हैं। मान लो कि सी की माँ नहीं है, कि सी के पि ता नहीं है, कि सी के लि ए कोई अच्छा साधन नहीं है, कि सी के माता-पि ता ने कोई चीज नहीं दिलाई। कि सी ने कुछ comment कर दिया तुरन्त बच्चे बुरा मान जाते हैं। अगर हम उन्हें स्या द्वा द शैली समझा कर रखे और शुरू से ही हम उन्हें यह समझाएँ बेटा! कभी भी कोई तुमसे कोई बात कहे तो तुम पहले एकदम से यह मत सोच लेना कि उसकी बात सर्वथा सही है। ये सोचना कि वो कि स angle से बोल रहा है, कि स अपेक्षा से उसकी बात है। उस अपेक्षा को जानना तो तुम्हा रे लि ए कभी भी दुःख नहीं होगा। हर बेटे को यह बात समझाओ। कभी भी तुमसे कोई बात कहे, तुम्हा रे पि ता ने तुमको यह चीज नहीं दिलाई। ठीक है! यह चीज नहीं दिलाई और बहुत कुछ तो दिलाया न। इस अपेक्षा से चलो ठीक है मेरे पि ता ने यह चीज नहीं दिलाई इसलि ए तुम्हा रा यह घर अच्छा नहीं है, तुम्हा रे पि ता अच्छे नहीं हैं। चलो कोई बात नहीं लेकि न और चीजें तो हैं हमारे पास में।
अनेकान्त दर्श न की महिमा
जब तक आपको ये स्या द्वा द शैली के अनुसार अनेकान्त धर्म की विचारधारा नहीं आएगी आप कि सी से भी अपने आप को परेशान कर सकते हो और आप का मन दुःखी हो सकता है। समझ आ रहा है न? जब भी आपको कोई बुरा कहेगा तो आप देख लेना वह उसकी अपेक्षा से ही बुरा होगा। सबकी अपेक्षा से तो हर कोई बुरा होता नहीं तो आप अपने में खुश रहो। चल भाई मैं तेरी अपेक्षा से बुरा हूँ लेकि न अपने भाई, बेटे, पत्नी उनकी अपेक्षा से तो अच्छा हूँ, बस बात खत्म। जब आप यह देख लोगे कि हमारे लि ए अनेक और भी गुणधर्म हमारे अन्दर हैं तो आपके मन की प्रसन्नता पुनः बन जाएगी। क्या सुन रहे हो? अनेकान्त दर्श न का लोग आज बि लकुल भी लाभ नहीं लेते, उपयोग नहीं करते और अनेकान्त दर्श न की कोई भी व्यक्ति आज महि मा नहीं समझ रहा है। मैंने अभी कुछ दिनों पहले एक article पढ़ा था । जब ये आतंक बहुत मच रहा था विदेशों में तो उस समय पर कि सी से पूछा गया था कि इस देश में अगर ये आतंक मि ट सकता है या दूर हो सकता है, तो कैसे होगा? एक english newspaper में यह एक article नि कला था कि वर्त मान का कि तना भी आतंकवा द है वह तब दूर होगा जब हर व्यक्ति के अन्दर अनेकान्तवा द का ज्ञा न आ जाएगा और यह foreign writer ने लि खा था । क्या समझ आया ? व्यक्ति के दिमाग में जब अनेकान्त होगा, स्या द्वा द होगा तब वो क्या करेगा? वह दूसरों की बात सुनकर बुरा नहीं मानेगा। वह उसकी अपेक्षा समझेगा और अपेक्षा समझने के साथ -साथ यह भी समझेगा कि इसकी भी बात सही तो है लेकि न सर्वथा नहीं है, कि सी अपेक्षा से सही है। इसी का नाम है- अनेकान्तवा द। जब हमें कि सी की बात पूर्ण रूप से बुरी लग जाती है, तो हमारे सामने वो व्यक्ति बुरा हो जाता है, हम उसके दुश्म न बन जाते हैं। आजकल तो लोग छोटी-छोटी बातों पर गोलिया ँ चला देते हैं। कोई अपने कार से जा रहा था , बगल वा ला कोई भी कार अपनी थोड़ी सी भि ड़ा कर चला गया , उसने shoot कर दिया । कार के बाह र नि कला, कुत्ता भी उसका पालतू था उसके साथ में बाह र आया । कि सी ने उसके कुत्ते से थोड़ी सी सटा कर अपनी गाड़ी नि काल कर चला गया या उसके बगल से कोई bike नि काल कर चला गया , उसने उसको shoot कर दिया , डॉगी के कारण से। मतलब आदमी दूसरे को स्वी कार करना ही नहीं चाह रहा है।
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मारे अन्दर और भी गुणधर्म हैं- ये अनेकान्त का उपयोग है
अनेकान्तवा द के माध्य म से ही यह बात सामने आती है कि हम जो हैं वो तो हैं ही और दूसरा अगर हमसे कह रहा है, तो हम समझें यह जो कह रहा है, वह कि स अपेक्षा से कह रहा है। जिस अपेक्षा से कह रहा है उस अपेक्षा से सही है, तो हमारे लि ए उसका बुरा लगेगा ही नहीं। हा ँ इस अपेक्षा से सही है, यह हमें स्वी कार है और बाकी की अन्य अपेक्षाएँ तो हैं जिनके कारण हमारे अन्दर और भी गुणधर्म हैं। यह अनेकान्त का उपयोग है। इसलि ए आचार्य कहते हैं कि अस्ति धर्म और नास्ति धर्म और उसके साथ -साथ अस्ति-नास्ति धर्म , फिर उसके साथ -साथ अवक्तव्य, फिर उसके साथ -साथ अस्ति-अवक्तव्य, नास्ति-अवक्तव्य, अस्ति-नास्ति अवक्तव्य इन सातों भंगों को देखो। मतलब ये सात प्रकार के विचार, सात प्रकार के question आप के दिमाग में आ सकते हैं। जैसे कोई पदार्थ है, तो हमने कहा यह कपड़ा नहीं है, यह कागज है। हमने कहा यह कागज है, फिर यह कपड़ा नहीं हैं। फिर इन दोनों को हम एक साथ कह सकते हैं। हा ँ! यह कथञ्चि त् कागज है, कथञ्चि त् कपड़ा नहीं है। यह हमने क्रम-क्रम से कहा , एक साथ तो फिर भी नहीं कहा और एक साथ जब कहना चाह े तो हम देखते हैं कि एक साथ हम कह नहीं सकते तो उसका नाम है- अवक्तव्य। फिर हमने इसके एक गुणधर्म को पकड़ा। नहीं है, कथञ्चि त् कागज है लेकि न फिर भी बहुत सारा अवक्तव्य है जो हम कह नहीं पा रहे हैं। अगर हमने इसके एक गुणधर्म को पकड़ लिया ये कथञ्चि त् कागज नहीं है, ये कथञ्चि त् कापड़ा नहीं है, तो भी बहुत कुछ है जो इसमें अवक्तव्य रह गया तो वो उसके साथ जुड़ गया । अगर हमने क्रम से भी कह दिया कि ये कथञ्चि त् कागज है, कथञ्चि त् कपड़ा नहीं है और उसके साथ भी बहुत कुछ अवक्तव्य रह जाता है जो कहने में नहीं आ रहा है, तो उसके साथ भी अवक्तव्य जुड़ जाता है। इस तरह से सात प्रकार के question आप के अन्दर आएँगे, आठवा ँ आ ही नहीं सकता। यह हर धर्म के साथ लगेगा, धर्म माने हर उसकी quality जो है। जैसे अस्ति है, तो उसके साथ नास्ति, अस्ति-नास्ति, अवक्तव्य। ऐसा नि त्य धर्म है, अब जैसे पदार्थ नि त्य है कि अनि त्य है। हम कहेंगे स्या द-नि त्य तो स्या द-अनि त्य वो भी है। फिर स्या द में पूछा जाएगा कि सके अपेक्षा से नि त्य तो द्रव्यार् थिक नय की अपेक्षा से, द्रव्य की अपेक्षा से नि त्य है। पर्यायार् थिक नय से पर्याय की अपेक्षा से अनि त्य है। जब हमने कहा स्या द-नि त्य, स्या द-अनि त्य फिर हम क्रम-क्रम से भी उसको कह सकते हैं, स्या द-नि त्य स्या द-अनि त्य तीसरा भंग ये हो गया । फिर जो है बहुत कुछ अवक्तव्य रह जाता है, हम कह नहीं पाते हैं तो वो हो गया चौथा भंग- स्या द-अवक्तव्य। फिर जब हमने कहा स्या द-नि त्य-अवक्तव्य तो उसमें स्या द नि त्य तो है लेकि न उसके साथ में भी बहुत कुछ आवा च्य है, अवक्तव्य है, वो हो गया - पाँचवा ँ भंग। ऐसे जब हमने कहा स्या द-अनि त्य तो उसके साथ भी बहुत कुछ अवक्तव्य रह जाता है, कहने में नहीं आ रहा है, वो हो गया - स्या द-अनि त्य-अवक्तव्य। फिर हमने ये क्रम-क्रम से कहा तो भी कुछ अवक्तव्य रह जाता है, तो हो गया स्या द-नि त्य-अनि त्य-अवक्तव्य। इसके अलावा कोई प्रश्न आएगा ही नहीं। समझ आ रहा है न? हर तरीके से हमारे विचार को पकड़ कर आचार्यों ने हमें यह सप्त भंगी की परि कल्पना दी है कि कोई भी पदार्थ के गुणधर्म को हम अगर अधि क से अधि क भागों में विभाजित कर सकते हैं तो ये सात भंग हैं और इसके माध्य म से हम पदार्थ के पूरे स्व रूप को जान सकते हैं।
वस्तु का धर्म जब हम अपेक्षा के साथ समझेंगे तो हमको हर्ष -वि षाद नहीं होगा
कोई भी कथनी की जाती है वह कि स अपेक्षा से है, यह आपको सोचना है। कि सी ने कहा मेरा बेटा बड़ा गोरा है, तो अब यह पूछो गोरा कि स अपेक्षा से है? क्या गोरा ही है काला नहीं है, कहीं भी? नहीं-नहीं काले की अपेक्षा से नहीं उसमें भी कहीं कालापन है कि नहीं। बाल काले नहीं उसके, आँखों की भौएँ काली नहीं है, आँखों के अन्दर का काँच काला नहीं है। गोरा है यह भी उसकी एक अपेक्षा ही हुई न? बाह री skin की अपेक्षा से उसको गोरा कहा जा रहा है लेकि न यह भी सर्वथा सत्य नहीं है। कोई भी कथन देखो, कि स अपेक्षा से कहा जा रहा है? अपेक्षा पता पड़ेगी तो आपको उसकी सही स्थिति पता पड़ेगी। बि ना अपेक्षा के आप स्वी कार लोगे तो पल में तो खुश हो जाओगे, पल में मुरझा जाओगे। कि सी दिन कि सी ने कह दिया उस गोरे बेटे को कि तू काला हो गया , काला है। फिर क्या होगा? उसे फिर से समझना पड़ेगा कि स अपेक्षा से मैं काला हो गया । कोई भी वस्तु का धर्म जब हम अपेक्षा के साथ समझेंगे तो हमको हर्ष -विषाद नहीं होगा, हम अपने आप रह सकेंगे और अगर हमने अपेक्षाएँ सीखना छोड़ दी तो हम परेशान ही होंगे। आज व्यक्ति depression में जा रहा है उसका सबसे बड़ा कारण यह है कि उसे अपने ही गुणधर्म और जो उसके पास होते हैं, पता नहीं होता है। एक चीज को अपने दिल में बि ठा लेता है उसी में अपना मन घूमाता रहता है और बस उसी में उसका दिमाग लग जाता है। ऐसा लग जाता है कि दिन-रात बस उसी में सोचता रहता है और एक छोटी सी बात को लेकर। पत्नी ने कुछ कह दिया , boss ने कुछ कह दिया , कि सी व्यक्ति ने कुछ कह दिया , एक छोटी सी बात को लेकर और उसका मन उसमें इतना घुल गया , इतना घुल गया कि बस वो depression में चला गया । उभरने का साधन क्या है? दवा इया ँ तो कभी साधन होती ही नहीं हैं। आदमी ही अपने विचार से depression में गया है, तो विचार से ही ऊपर उभर कर आएगा। वह विचार क्या है? वह यह अनेकान्त धर्म का विचार है। जब तक हम इस अनेकान्त का उपयोग अपने जीवन में हर समय नहीं करेंगे तब तक हमारे लि ए इसकी उपयोगि ता समझ में नहीं आएगी। तो हर कथनी में यहा ँ पर यह बताया जा रहा है कि अगर हम कोई भी बात कह रहे हैं तो वे कथञ्चि त् ही, कि सी अपेक्षा से वह है और कि सी अपेक्षा से वह नहीं है। जिस अपेक्षा से है वह सत्य है और जिस अपेक्षा से नहीं है वह भी हमारे लि ए सत्य है।
इसी को कहा जाता है कि अगर हम एकान्त रूप से हमने वह ी मान लिया कि यह यह ी है, तो इसको कहा हमने ही , एक शब्द इसमें लगता है यह ऐसा ही है तो उस अपेक्षा से देखेंगे तब तो कहा जाएगा, ये ऐसा ही है लेकि न जब हम अन्य की अपेक्षा से देखेंगे तो हम कहेंगे कि ये ऐसा भी है। मतलब यह कहना कि यह गरीब ही है, यह सत्य है? यह गरीब भी है ऐसा कहोगे तो चल जाएगा। यह गोरा ही है ऐसा कहोगे तो वह नहीं चलेगा। लेकि न यह गोरा भी है और वह भी तब चलेगा भी वा ला भंग, गोरा ही है, गरीब ही है। जब आप उसकी अपेक्षा बता दोगे माने इस अपेक्षा से तो वह ही लग जाएगा कि यह इस अपेक्षा से हैं। जैसे मान लो उसके साथ में कोई अमीर व्यक्ति खड़ा है, तो उसकी अपेक्षा से वो गरीब ही है। ऐसा कहने में कुछ भी बाधा नहीं है लेकि न उसे भी यह पता होना चाहि ए कि हम गरीब ही नहीं है। समझ आ रहा है? हम गरीब भी हैं क्योंकि एक व्यक्ति की अपेक्षा से हम यह सब कुछ नहीं हैं। अन्य अनेक व्यक्ति हैं उनकी अपेक्षा से भी हम कुछ हैं।
कोई भी चीज अपने अस्तित्व में न छोटी है न बड़ी है
जैसे स्कू स्कू लों में पढ़ाया जाता है बेटा एक line खींची है। अब पूछा गया बताओ, ये line छोटी है या बड़ी है? अभी कुछ भी अपेक्षा नहीं अभी तो एक line खींची है, अब पूछा जा रहा है कि ये line छोटी है या बड़ी है। अभी तो ये छोटी है न बड़ी है। अभी तो जो है सो है। अब वो line तो वह ीं खि ंची है। वह line चार सेंटीमीटर की line थी, हमने उसके ऊपर सात सेंटीमीटर की line खींच दी। अब क्या हो गया ? छोटी हो गई। उस line को छोटा कि ए बि ना इसको छोटा करना है। ऐसा कहा गया था तो समझदार बच्चे ने क्या किया ? उसके ऊपर एक बड़ी line खींच दी। इस line की अपेक्षा से अपने-आप छोटी दिखने लगी। फिर पूछा गया इसी line को आप कुछ भी बढ़ाए बि ना इसको बड़ी करके दिखाओ। सुन रहे हो? उसके नीचे एक दो सेंटीमीटर की एक line उसने खींच दी तो उसकी अपेक्षा से वो बड़ी हो गई। अब उससे पूछा जा रहा है, बताओ इसमें तो हमने कुछ नहीं किया । न हमने इसको छोटा किया , न हमने इसको बड़ा किया । अब यह छोटी और बड़ी कैसी हो गई? समझाओ बच्चों को कि जब ऊपर बड़ी थी तो उसके कारण से छोटी हो गई। वो तो अपनी अस्तित्व में वैसी ही है न? उसका अस्तित्व तो जैसा था वैसा ही है लेकि न हमने उसके अस्तित्व को छोटा कब मान लिया । जब उसके आगे कोई बड़ा आ गया । उसी को हमने बड़ा क्यों कह दिया जब उसके नीचे कोई छोटा आ गया । बेटे को समझाओ, बूढ़े भी समझे। कोई भी चीज अपने अस्तित्व में न छोटी है, न बड़ी है। कोई भी व्यक्ति अपने अस्तित्व में न गरीब है, न अमीर है। यह सब क्या है? सब compare करके होता है। दुनिया में हर व्यक्ति एक दूसरे के साथ अपने को compare करता है और उसी को compare करके अपने-आप को छोटा या बड़ा मान लेता है। अपने आप में न वह छोटा है, न बड़ा है, वह जैसा है वैसा है। मान लो कोई बहुत नाटा व्यक्ति है, बहुत गट्टा -नाटा जिसको आप बोलते हैं, ऐसा भी कोई व्यक्ति है। उससे कहे कोई अरे या र तू बहुत नाटा है, नाटा है, नाटा है। उसे अगर ये अनेकान्त धर्म मालूम हो तो उसे पता पड़ेगा कि अरे! मुझसे ज्या दा तो इस दुनिया में कि तने अनन्त जीव हैं। कि तने कीड़े-चींटी-मकौड़े घूम रहे हैं, कि तनी चिड़िया ँ और पंछी घूम रहे हैं। मैं उनसे बहुत बड़ा हूँ। हम कि सी अपेक्षा से अपने को हमें वैसा स्वी कार करेंगे तो कहलाएगा कि हा ँ! कि सी अपेक्षा से हम ऐसे भी हैं। और अगर हमने सर्वथा ऐसा मान लिया कि हम ऐसे ही हैं तो फिर हम कभी भी सुखी नहीं हो सकते, हम depression में चले जाएँगे।
खुश रहना है, तो अपने से नीचे वालों को देखो-
यह चीज सीखने की है कि हमारा अस्तित्व जैसा है वैसा है। उसमें कहीं कुछ कमी-वेशी नहीं है। लेकि न हम दूसरों की तुलना से अपने आपको आँकते हैं और जो व्यक्ति दूसरों की तुलना से अपने को आँकता है वह अपने को कभी समझ ही नहीं सकता है। हर व्यक्ति दूसरे की तुलना से अपने को आँक रहा है, जो उसके आसपास होंगे उनसे अपनी तुलना करेगा और अपने आपको वैसा मान लेगा। मैं यहा ँ रहने वा ले लोगों के बीच में इनकी अपेक्षा से क्या हूँ? वे नहीं भी कहेंगे तो भी अपनी अपेक्षा से उनकी तुलना से वह अपने आपको वैसा मान लेगा और हर व्यक्ति तुलना कर के ही जो है अपने आप को मानने लग जाता है कि हा ँ मैं ऐसा ही हूँ। सर्वथा तो कुछ होता ही नहीं है। हमेशा हर आदमी ने तुलना की है और तुलना से ही उसके लि ए यह सब जो है सुख-दुःख प्राप्त होते रहते हैं। छोटे से तुलना करेगा तो सुखी रहेगा और बड़े से तुलना करेगा तो दुःखी रहेगा। यह पहले समझाया जाता था , बेटा कभी भी अपनी तुलना अपने बड़ों से मत करना। बड़ों को तो केवल इसलि ए देखना कि अपने को भी ऐसा बड़ा बनना है लेकि न उनसे तुलना करके यह मत सोच लेना कि हम ऐसे हैं। खुश रहना है, तो अपने से नीचे वा लों को देखो। कमाई कि तनी हो रही है? आजीविका कि तनी मि ल रही है? खुश रहना है, तो अपने से नीचे वा लों को देखो। जितना मि ल रहा है उसमें सुखी रहना है, तो अपने से नीचे वा लों को देखो। हमारे पास कि ससे बहुत ज्या दा है? उनसे बहुत ज्या दा है, सुखी रहोगे और अपने से बड़े वा लों को देखोगे तो दुःखी रहोगे। इसलि ए कहा जाता है नीचे देखकर चलो। माने अपने से नीचे वा लों को देखो तो आपके मन में सन्तुष्टि रहेगी, सुख बना रहेगा। नहीं तो आप हमेशा दूसरों से तुलना करके अपने आप को कष्ट में लाएँगे। आपके पास जो है उसका भी आपको सुख नहीं मि लेगा और वहा ँ पहुँ च भी जाओगे तो फिर तुम्हें वहा ँ पर तुलना करने की आदत पड़ गई है। फिर और बड़े होंगे और बड़ों की तुलना करोगे तो उस बड़े का तो कोई अन्त है ही नहीं। इसीलि ए हमें हमेशा पहले समझाया जाता था घरों में, माता-पि ता समझाते थे कि हमेशा अपने से छोटे वा ले को देखना, बड़े वा लों को मत देखना। तभी आप सुखी रह सकोगे मतलब सन्तुष्टि का यह सूत्र है। अगर हमें तुलना करना है, तो अपने से बड़ों से तुलना करेंगे तो हम दुःखी नहीं होना चाहि ए। अपने से बड़ों से सीख हमें मि लना चाहि ए कि हा ँ, उनकी तरह हमें भी आगे बढ़ना है लेकि न तुलना करके अपने मे दुःखी नहीं होना। इतना ज्ञा न रहेगा तो हम बड़ों से भी सीख लेंगे और छोटों से सन्तुष्टि प्राप्त कर लेंगे और इससे चलता रहेगा जीवन। समझ आ रहा है? अगर यह नहीं है, तो फिर दुःख ही दुःख है। इसीलि ए लि खा गया :–
“पर तुलना से हँसना रोना,
सुख
ी
-दुःखी यूँ पलपल होना।
पर तुलना से हँसना रोना,
सुखी-दुःखी यूँ पलपल होना।
चेतन को इन क्ष णिकाओं में,
आखि र मिलता क्या ?
जो हो सो हो, जो है सो है,
ह
मको क्
या
? हमको क्या ? हमको क्या ?
वस्तु स्वरूप जानने वाला कभी भी किसी से डरता नहीं है
बने रहो बि ंदास। दास मत बनो बि ंदास बने रहो। कोई भी व्यक्ति अपने आप में कभी भी कि सी भी तरीके से पूर्ण होता ही नहीं है। हम आपसे कहे तीर्थं करों में भी बहुत सारी कमिया ँ हैं। आज बताएँ, तीर्थं करों की कमिया ँ बताएँ? तीर्थं कर भी अपने आप में पूर्ण नहीं हैं, आप भले ही कहते रहो। स्या द्वा द को जानने वा ला कहेगा कोई भी व्यक्ति कहीं पूर्ण नहीं होता कभी। तीर्थं करों में भी कि तनी कमिया ँ हैं? जैसे? देखो! हम कि सी भी चीज को आँख से देख सकते हैं वो कि सी भी चीज को अपनी आँख से नहीं देख सकते। अरे! उससे क्या लेना-देना? हम कि सी भी चीज का स्वा द ले सकते हैं, बता सकते हैं, हा ँ, कि तनी tasty चीज है, कि तनी चटपटी चीज है। कोई भी अनुभव कर लेते हैं, सब तुम्हा री taste का भी अनुभव करते रहते हैं बैठे-बैठे। फिर कौन से taste का अनुभव आएगा? दुनिया में इतने मसाले हैं, इतने taste हैं, सब चटपटा, खट्टा -मीठा सबका अनुभव कर लेते हो बैठे-बैठे। अनुभव कर लिया , काय का अनुभव कर लेते हैं? जो अनुभव जिस इन्द्रिय का विषय है उसी इन्द्रिय से जब कोई ज्ञा न आएगा तभी तो अनुभव होगा? वो कभी नहीं बता सकते, कचौड़ी कैसी है, ये रसगुल्ला कैसा है, यूँ कह देंगे मीठा है, लेकि न उनके अन्दर वो taste नहीं आ सकता जो taste आप अधूरे हो, हमसे पूछो अभी आपने पूरा नहीं सुना न प्रवचनसार इसलि ए कहते हो, पहले सुन चुके हैं, अतीन्द्रिय ज्ञा न, इन्द्रिय ज्ञा न। आपके पास केवल एक ही ज्ञा न है, भगवा न हा ँ, बस केवलज्ञा न। हमारे पास दो ज्ञा न हैं – मति ज्ञा न, श्रुतज्ञा न, हम आपसे भी बड़े हैं। अरे आप डरते हो, यह ी तो बात है। देखो! स्या द्वा दी कभी डरेगा नहीं। उसे अपेक्षा मालूम है न, हम कि स अपेक्षा से कह रहे हैं। हम आपसे बड़े इसलि ए नहीं हो गए कि तीर्थं करों से भी कोई बड़ा होता है। नहीं! नहीं, हमारी अपेक्षा तो समझो, आप ही ने तो समझाया कि स अपेक्षा से कहा कौन छोटा, कौन बड़ा। हम आपसे बड़े हैं, आप ही ने समझाया स्या द्वा द हमें, हमसे पूछो कि स अपेक्षा से आप बड़े हो, हम बताएँगे आपको।