In India land is become more valuable with urbanization and industrialization . Numerous document like Khasra, Khatauni, Shajra, Registration document, parwana could refer to the Land record. Due to this improper definition, India has a huge amount of land dispute cases
To identify the ownership of particular piece of land Khasra map is used. Khasras traditionally detail in which all the agricultural fields and their areas, measurement, who owns and what cultivators he employs, what crops, what sort of soil, what trees are on the land are mentioned. In essence, Khasra is a record to register harvest inspections which are conducted in the months of September-October (Kharif crop), February- March (Rabi crop) and April- May (Zaid crop).
Sher Shah was first Indian ruler who taken serious steps towards systematically documentation of land categorization, measurement and a schedule of crop rates. This land record system was further developed during the regime of Akbar, who, with the assistance of Raja Todar Mal, fixed cash rates on a more scientific and rational basis. Elaborate Methods were devised for determining the average produce of each class of land and for commuting grain rates into money rates. After Akbar British rule also follow the same khasra system of land record , during 1822, regulations were introduced for detailed surveys and regulations.
Traditional records were based on two very important maps or to technically state; a reference sketch referred to as Aks Shajra or Shajra Kishtwar and a detailed topographical map referred to as a Masavi. For administering day to day work, the Aks Shajra remained/ still remains with the Patwari and the Patwari is responsible for its maintenance, record keeping and upgradation based on regular field visits.
Aks Shajra is usually made on white piece of cloth (natural fibre made from cotton) because practically it is easier to maintain and carry; as it can be folded or shoved in the widths of a register or pocket for easy transportation and it does not get torn or creased or any other kind of damage that is possible to a paper sketch.
A Masavi on the other hand, was drawn on a piece of paper (the size of modern day A2 sheets) following a set pattern of grids running from North to South and East to West along with an Index or Legend for easier reference. The Masavi was a very detailed map and followed traditional measurements; with a village being represented on one sheet to ten or twelve sheets sometimes depending on the size and extent of the village. The Legend Masavi sheet was counted as plus one for all the Masavi sheets of the village. To exemplify, If a village is represented by 8 Masavi sheets along with one legend Masavi, it would be connotated as x village= 8 +1
The Masavi was a traditional toposheet outlining the natural relief features along with the anthropogenic features namely, village settlement area or Abadi, religious structures, roads and paths, canals and rivers, badlands, ridge, marshes and so on in great details and were also colour coded with the legend providing information or key to decipher.
An important element of drawing both Shajra and Masavi was that they were not aligned to the Northerly direction. Rather they were prepared or started from North West and terminated in South West. This is exemplified by the numbering of village fields or plots wherein the 1 numbered plot is found in the top corner of North West and the last numbered plot is found in the bottom corner of South East.
The Aks Shajra was administered with a Khasra Girdawari, Khatauni and Jamabandi.
Khatauni is more specific and is based on Khasra Girdawari. It is similar to an abstract listing out all the land holdings owned by an individual or a family in the village providing detailed information on the owner(s) of a given piece of land(s) in the village.
Jamabandi means rights of records in context of land records. It is revised every 4 or 5 years depending on state and is prepared by the respective patwaris reflecting the changes recorded over a course of 4 or 5 years, after which it is attested by the respective Revenue officer. Two copies are usually prepared wherein one is housed in government’s record room and the other is placed with the patwari.
The Patwari was/is required to maintain a day book referred to as Rognamcha to record its daily activities of the field for record keeping and cross checking for further reference.
Apart from this, the traditional records are all updated at the time of Consolidation or Chak Bandi/ Bandobast wherein the land holdings are consolidated and re-distributed to reduce the number of plots in the land holdings and to have efficient utilisation of land and resources.
Another crucial document created was Wajib-ul Arz or record of village genealogy. It was created in 1880 in Urdu for the villages present in Delhi at that time. It contains information on the beginnings of the village, its earliest residents and their genealogy. But this practice is lost at the moment and is overtaken by the modern innovations and practices of record keeping. However, it is interesting to note that Wajib- ul Arz is treated as a legal document and is permissible to be presented as evidence in any court of law in India to resolve land disputes since it is a record/evidence of recorded ownership
जमीन जायदाद और कानुन से सम्बंधित शब्द
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1 आबादी देह – गॉंव का बसा हुआ क्षेत्र ।
2 मौजा – ग्राम
3 हदबस्त- त्हसील में गॉंव का सिलसिलावार नम्बर ।
4 मौजा बेचिराग – बिना आबादी का गॉंव ।
5 मिसल हकीयत – बन्दोबस्त के समय विस्तारपूर्वक तैयार की गई जमाबन्दी ।
6 जमाबन्दी – भूमि की मलकियत व बोने के अधिकारों की पुस्तक ।
7 इन्तकाल – मलकियत की तबदीली का आदेश ।
8 खसरा गिरदावरी – खातेवार मलकियत,बोने व लगान का रजिस्टर ।
9 लाल किताब – गॉंव की भूमि से सम्बन्धित पूर्ण जानकारी देने वाली पुस्तक ।
10 खतौनी पैमाईश – बन्दोबस्त/चकबन्दी में पैमाईश के बाद मलकियत की जोत का विवरण ।
11 शजरा नसब – भूमिदारों की वंशावली ।
12 पैमाईश – भूमि का नापना ।
13 गज – भूमि नापने का पैमाना ।
14 अडडा – जरीब की पडताल करने के लिए भूमि पर बनाया गया माप ।
15 जरीब – भूमि नापने की 10 कर्म लम्बी लोहे की जंजीर ।
16 गठठा – 57.157 ईंच जरीब का दसवां भाग ।
17 क्रम – 66 ईंच लम्बा जरीब का दसवां भाग ।
18 क््रास- लम्ब डालने के लिए लकडी का यन्त्र ।
19 झण्डी- लाईन की सीधाई के लिए 12 फुट का बांस ।
20 फरेरा – दूर से झण्डी देखने के लिए बांस पर बंधा तिकोना रंग बिरंगा कपडा ।
21 सूए – पैमाईश के लिए एक फुट सरिया ।
22 पैमाना पीतल – म्सावी बनाने के लिए पीतल का बना हुआ ईंच ।
23 म्ुसावी – मोटे कागज पर खेतों की सीमायें दर्शाने वाला नक्शा ।
24 शजरा- खेतों की सीमायें दिखाने वाला नक्शा
28 फिल्ड बुक – खेतों के क्षेत्रफल की विवरण पुस्तिका ।
29 बीघा – 40ग40 वर्ग करम त्र4 बीघे का खेत ।
30 मुरब्बा- 25 किलों की समूह यानि 200 कनाल
31 मुस्ततील – 25 एकड का समूह यानि 200 कनाल
32 इस्तखराज – नम्बर की चारों भुजाओं की लम्बाई व चौडाई क्षेत्रफल निकालना
33 रकबा – खेत का क्षेत्रफल
34 किस्म जमीन- भूमि की किस्म
35 जमीन सफावार- खेतों का पृष्ठवार जोड
36 थ्मजान खातावार – जेतवार जोड
37 मिजान कुलदेह- गॉंव के कुल क्षेत्रफल का जोड
38 जोड किस्मवार- गॉंव की भूमि का किस्मवार जोड
39 गोशा – खेत का हिस्सा
40 त्तीमा – खेत का बांटा गया भाग
41 व्तर – कर्ण
42 बिसवांसी- 57.157 ईंच कर्म का वर्ग
43 बिसवा – 20 बिसवांसी
44 बिघा – 20 बिसवा
45 म्रला – 9 सरसाही बारबर 30-1/4 वर्ग गज त्र1/20
46 क्नाल – 20 मरले 605त्र वर्ग गज त्र1/8 एकड
47 एकड -एक किला (40 करमग 36 करम) 4 बीघे- 16 बिसवेत्र(4840 वर्ग गज)
49 शर्क – पूर्व
50 गर्व – प्श्चिम
51 जनूब – दक्षिण
52 शुमाल – उत्तर
53 खेवट – मलकियत का विवरण
54 खतौनी – कशतकार का विवरण
55 पत्ती तरफ ठोला – गॉंव में मालकों का समूह
56 गिरदावर(कानूनगो)- पटवारी के कार्य का निरीक्षण करने वाला
57 दफतर कानूनगो – तहसील कार्यालय का कानूनगो
58 नायब दफतर कानूनगो – सहायक दफतर कानूनगो
59 नायब तटवारी – रिकार्ड रूम तहसील के देखभाल करने वाला पटवारी ।
60 सदर कानूनगो- जिला कार्यालय का कानूनगो ।
61 वासल वाकी नवीस राजस्व विभाग की वसूली का लेखा रखने वाला कर्मचारी
62 मालिक – भूमि का भू-स्वामी
63 कास्तकार- भूमि को जोतने वाला एवं कास्त करने वाला ।
64 मालक कब्जा- मालिक जिसका शामलात में हिस्सा न हो ।
65 मालक कामिल – मालिक जिसका शामलात में हिस्सा हो
66 शामलात- सांझाी भूमि
71 मुजारा – भूमि को जोतने वाला जो मालिक को लगान देता हो ।
72 मौरूसी- बेदखल न होने वाला व लगान देने वाला मुजारा
73 गैर मौरूसी – बेदखल होने योग्य कास्तकार
74 छोहलीदार – जिसको भूमि दान दी जावे ।
75 व्सायल आबपासी -सिंचाई के साधन ।
76 नहरी – नहर के पानी से सिंचित भूमि ।
77 चाही नहरी – नहर व कुएं द्वारा सिंचित भूमि
78 चाही – क्ुएं द्वारा सिंचित भूमि
79 चाही मुस्तार- खरीदे हुए पानी द्वारा सिंचित भूमि ।
80 बरानी – वर्षा पर निर्भर भूमि ।
81 आबी – नहर व कुएंे के अलावा अन्य साधनों से सिंचित भूमि ।
82 बंजर जदीद – चार फसलों तक खाली भूमि ।
83 बंजर कदीम – आठ फसलों तक खाली पडी भूमि
84 गैर मुमकिन – कास्त के अयोग्य भूमि ।
85 नौतौड कास्त -अयोग्य भूमि को कास्त योग्य बनाना ।
86 क्लर – शोरा या खार युक्त भूमि ।
87 चकौता – नकद लगान ।
88 सालाना – वार्षिक
89 लगाने बिलमुक्ता साल तमाम- क्ुल वार्षिक तयशुद्वा लगान ।
90 बटाई – पैदावार का भाग ।
91 तिहाई – पैदावार का 1/3 भाग ।
92 निसफी – पैदावार का 1/2 भाग ।
93 पंज दुवंजी – पैदावार का 2/5 भाग ।
94 चहाराम – पैदावार का 1/4 भाग ।
95 तीन चहाराम – पैदावार का 3/4 भाग ।
96 बहिस्सा बराबर – समभाग ।
97 मुन्द्रजा – पूर्वलिखित (उपरोक्त)
98 मजकूर -चालू
99 राहिन – गिरवी देने वाला ।
100 मुर्तहिन – गिरवी लेने वाला ।
101 बाया – भूमि बेचने वाला ।
102 मुस्तरी – भूमि खरीदने वाला ।
103 वाहिब – उपहार देने वाला ।
104 मौहबईला – उपहार लेने वाला ।
105 देहिन्दा – देने वाला ।
106 गेरिन्दा – लेने वाला ।
107 लगान – मुजारे से मालिक को मिलने वाली राशी या जिंस
108 पैमाना हकीयत -शामलात भूमि में मालिक का अधिकारी ।
109 सरवर्क – आरम्भिक पृष्ठ ।
111 मकव्वा(शजरा नसब) – शजरा नसब वंशावली रखने का लिफाफा ।
114 मुफसल जमाबन्दी- विस्तारपूर्वक जमाबन्दी ।
117 नक्शा हकूक चाहात – क्ूएं द्वारा पानी लेने के अधिकार ।
118 वाजिबुलअर्ज – ग्रामवासियों के ग्राम सम्बन्धी रस्में रीति रिवाज ।
119 विरासत – उत्तराधिकार ।
120 लावल्द(बिलाजन)- निसंतान व बिला विधवा ।
121 मुतवफी – मृतक
122 हिब्बा – उपहार ।
123 बैयहकशुफा – भूमि खरीदने का न्यायालय द्वारा अधिकार ।
124 श्रहन बाकब्जा – कब्जे सहित गिरवी ।
125 आड रहन – बिला कब्जा गिरवी ।
126 बैयवहिफज रहन- रहन होते हुए भूमि अन्य को बेचना ।
127 रहन दर रहन – मुर्तहिन द्वारा कम राशि में गिरवी रखना
129 फकुल रहन- गिरवी रखी भूमि को छुडा लेना ।
130 बैयहक मुर्तहिनी – मुर्तहिनी द्वारा अपने अधिकार उतनी ही राशि में बेचना ।
131 इन्तकाल फकुलरहन(तरतीबी)- रिकार्ड के इन्द्राज को ठीक करने के लिए इन्तकाल दर्ज करना
132 फक सैकिण्ड रहन – सैकिण्ड रहन छुडवाना ।
133 तबादला – भूमि के बदले भूमि लेना ।
134 बैय – जमीन बेच देना
135 तकसीम खानगी – भूमि का घरेलू बंटवारा ।
136 तकसीम बहुकम अदालत- भूमि की अदालत द्वारा बंटवारा या तकसीम
137 तबदील मलकियत – न्यायालय के आदेशानुसार मलकियत की तबदीली ।
138 पडत सरकार – राजस्व रिकार्ड रूम में रखी जाने वाली प्रति ।
139 पडत पटवार – रिकार्ड की पटवारी के पास रखी जाने वाली प्रति ।
140 मुसन्ना – असल रिकार्ड के स्थान पर बनाया जाने वाला रिकार्ड ।
141 फर्द – नकल
142 फर्द बदर – राजस्व रिकार्ड में हुई गलती को ठीक करना ।
143 मिन – भाग
144 गिरदावरी- खेतों का फसलवार निरीक्षण ।
145 जिंसवार- फसलवार जिंसों का जोड
146 बन्दोबस्ती झाड पैदावार – बन्दोबस्त के दौरान निर्धारित की गई औसत पैदावार(जमीन की किस्तवार)
147 फसल खरीफ – सावनी की फसल
148 खराबा – प््रााकृिितक आपदा से खराब हुई फसल ।
149 फसल रबी – आसाढी की फसल ।
150 पुख्ता – औसत झाड पैदावार के अनुसार पक्की फसल
151 साबिक – भूतपूर्व, पूर्व,पुराना ।
152 हाल – वर्तमान, मौजूदा ।
153 बदस्तूर – जैसे का तैसा(पूर्ववत)
154 तकावी – फसल ऋण ।
155 कुर्की – अटैचमैन्ट
156 दसतक – राईट आफ डिमाण्ड
157 नीलाम – खुली बोली द्वारा बेचना ।
158 बिला हिस्सा – जिसमें भाग न हो ।
159 मिन जानिब- की ओर से ।
160 बनाम – के नाम ।
161 जलसाआम – जनसभा ।
162 बशनाखत – की पहचान पर ।
163 पिसर या वल्द – पुत्र
164 दुखतर – सुपुत्री
165 वालिद – पिता
166 वालदा -माता
167 बेवा – विधवा
168 वल्दीयत -पिता का नाम
169 हमशीरा – बहन
171 पिसल मुतबन्ना – गोद लिया हुआ पुत्र
172 हद-सीमा.
173 हदूद – सीमायें
174 सेहहदा – तीन गॉंवों की एक स्थान पर मिलने वाली सीमाओं पर पत्थर
175 बखाना कास्त- कास्त के खाने में दर्ज ।
176 सकूनत – निवास स्थान
177 महकूकी – काटकर दोबारा लिखना