तत्वार्थ सूत्र अध्याय ५ भाग ५ -
scjain - 03-16-2016
द्गल का स्वाभाविक रूप अणु/परमाणु है!कुछ में परस्पर बंध होता है और कुछ में नहीं होता है!निम्न सूत्र से बंध का कारण बताया है !
स्निग्धरूक्षत्वा[b]द्बंध:-३३[/b]
संधिविच्छेद:-स्निगधत्वाद+रूक्षत्वाद+बंध
शब्दार्थ:-स्निग्धत्वाद् =चिकने और रूक्षत्वा[b]द्=रूखापना होना,बंध= बंध का कारण है![/b]
भावार्थ-अणु/परमाणु से अणु/परमाणु का परस्पर बंध उनमे विध्यमान स्निग्ध और रुक्ष गुणों के कारण होता है !
विशेष-
१-किसी परमाणुओं में स्निग्ध(+) और किसी में रुक्ष (-) गुण होते है!स्निग्ध और रुक्ष गुणों के अनंत अविभागीप्रतिच्छेद होते है!शक्ति के न्यूनतम अंश को अविभागी प्रतिच्छेद कहते है!एक एक परमाणु में अनंत अविभागी प्रतिच्छेद होते है जो घटते बढ़ते रहते है! ये घटते घटते किसी समय असंख्यात,संख्यात या इससे भी कम और कभी बढ़ते बढ़ते अनंत अविभागी प्रतिच्छेद हो जाते है!इस प्रकार परमाणुओं की स्निग्धता और रुक्षता में हीनाधिकता पायी जाती है,जिसका अनुमान स्कंध को देखकर हो सकता है!जैसे जल से अधिक स्निग्धता बकरी के दूध के घी में,उससे अधिक गाय के दूध के घी में,और उससे भी अधिक भैस के दूध के घी में होती है!इसी प्रकार धुल,रेत,बजरी में रुक्षणता क्रमश वृद्धिगतहै!इसी प्रकार परमाणुओं में भी हीनाधिक स्निग्धता/रुक्षता होती है जो कि उनके परस्पर बंध का कारण है!
कालद्रव्य के अणु शुद्ध रूप में है वे एक दुसरे से बंध को प्राप्त नहीं होते क्योकि उनमे स्निगध-रुक्ष गुण नहीं है! ये गुण मात्र पुद्गल द्रव्यों में है!
आत्मा का कर्मो से बंध,आत्मा में स्निग्ध-राग गुण,और रुक्ष=द्वेष गुण होने के कारण ही होता है!सिद्धावस्था में इन दोनों गुणों का आत्मा में अभाव होने से कर्म का बंध नहीं होता है !
सूत्र का जैन दर्शन और आधुनिक विज्ञान के परिपेक्ष में विश्लेषण -
जैनदर्शनानुसार-इस कथन को समझने के लिए वैज्ञानिक विश्लेषण से पूर्व,स्निग्ध एवं रुक्ष गुणों को वैज्ञानिक परिपेक्ष्य में समझना अत्यंत आवश्यक है !
तत्व मूलतः दो प्रकार के होते है !
१-धातु-वे तत्व जो प्रकृति में वैद्युत धनीय(+),क्षारीय गुण तथा कम विद्युत ऋणात्मकता(-) वाले जैसे सोना,चांदी,पारा,ताम्बा,जस्ता आदि होते है इनमे स्वाभाविक स्निग्धता (चिकनाई) होती है !
२-अधातु-वे तत्व जो प्रकृति में विद्युत ऋणीय(-),अम्लीय गुण एवं तत्वों की अपेक्षा अधिक वैद्युतऋणात्मकता(-)वाले,जैसे;सिलिकॉन,बोरोन,हीरा,कार्बन,ब्रोमिन,क्लोरीन आदि होते है इनमे स्वाभाविकता रूक्षता (रूखापन) है!इससे स्पष्ट हो जाता है की आचार्य उमा स्वामी जी ने स्निग्ध गुणों से युक्त धातुविक परमाणुओं का और रुक्ष गुणों से युक्त अधातुविक परमाणु में बंध सम्भव कहा है !
वैज्ञानिको के अनुसार विश्लेषण -
धातु-धातु,अधातु-अधातु और धातु-अधातु के परमाणु,परस्पर बंध कर स्कंध के निर्माण करने में सक्षम है !
१-स्निग्ध गुण युक्त धातुविक परमाणु का स्निग्ध धातुविक परमाणु से बंध -
1-(ताम्बा)Cu +(जस्ता)(Zn)+(निकिल )(Ni=जर्मन सिल्वर
2-(लोहा)Fe+(निकिल)Ni+(क्रोमियम)Cr=स्टेनलेस स्टील
२-रुक्षगुण युक्त अधात्विकपरमाणु का रुक्ष गुण युक्त अधात्विक परमाणुओं से बंध -
1- N +3 H ---------> ५०० डिग्री से. =2NH
2 2 3
नाइट्रॉन हाइड्रोजन अमोनिया
2- N + 3 Cl =2NCl
2 2 3
नाइट्रोजन क्लोरीन नाईट्रोजन क्लोराइड
3- 2H + O =2H O
2 2 2
हाईड्रोजन आक्सीजन जल
३-स्निग्ध गुण युक्त धात्विक परमाणु का रुक्ष गुण युक्त अधात्विक परमाणु से बंध -
1-2Na + Cl =2 NaCl
2
सोडियम क्लोरीन सोडियमक्लोराइड (नमक)
2- Cu + S ----------> ऊष्मा = CuS
ताम्बा सल्फर(गंधक) क्यूपरीक सल्फाइड
अणुओ के बंध की शर्ते _
नजघन्यगुणनाम् -३४
संधि-विच्छेद:-न+जघन्य+गुणनाम्
शब्दार्थ:-जघन्य (कम से कम),गुणनाम्=गुणों वाले अणु का बंध,न=नहीं होता
अर्थ-जिन परमाणुओं में स्निग्धता और रुक्षता का एक अविभागी परिच्छेद रह जाता है उनमे परस्पर बंध नहीं होता है
भावार्थ-जिन परमाणुओं में स्निग्ध और रुक्ष गुण न्यूनतम,(अर्थात एक अविभागी प्रतिच्छेद/अंश है) उनका बंध नहीं होता!
एक स्निगध +ve का एक रुक्ष -ve से बंध नहीं होता!, एक रुक्ष(-) का एक रुक्ष (-) से बंध नहीं होता,
एक स्निग्ध +ve का एक स्निग्ध +ve से बंध नहीं होता!
परमाणुओं में ये अनंत अविभागी प्रतिच्छेदों की सख्या घट कर असंख्यात,संख्यात और उससे भी कम हो जाती है और इसी प्रकार बढ़ते बढ़ते अन्नंत भी होती है
क्या जघन्य गुण वाले परमाणु का कभी भी बंध नहीं होगा! उनमे परिणमन उनकी योग्यता अनुसार तो हमेशा होता रहता है,जब वे जघन्य अंश से ऊपर उठेंगे तब वे बंध करने योग्य होगे!
आचार्य उमा स्वामी का अभिप्राय जघन्य गुणानाम से दो स्निग्ध-स्निग्ध,रुक्ष-रुक्ष अथवा स्निग्ध रुक्ष परमाणुओं ,जिनमे रुक्ष और स्निग्ध गुणों के जघन्य अर्थात १ अविभागी प्रतिच्छेद है उनमे बंध नहीं होता से अभिप्राय, परमाणुओं की विद्युत ऋणात्मकता में अंतर १ या १ से कम होता है तो उनमे बंध नहीं होता जो की निम्न दृष्टान्त से स्पष्ट है
सूत्र का जैन दर्शन और आधुनिक विज्ञान के परिपेक्ष में विश्लेष-
सूत्र में आचार्य उमा स्वामी स्पष्ट करते है कि;न -नहीं,जघन्य-न्यूनतम, गुणानाम्-गुणों वाले परमाणुओं;में परस्पर भेदसंघात प्रक्रिया द्वारा बंध होकर स्कन्धोत्पत्ति नहीं होती है;अर्थात जिन परमाणुओं की विद्युत ऋणात्मकता का अंतर १ या कम होता है वे परस्पर भेद संघात(विद्युत संयोजनी ;(Eletro Valent Bonding) प्रक्रिया द्वारा बंध कर स्कन्धोत्पत्ति (स्कंध का निर्माण-Molecule form) नहीं करते है !
उद्धाहरण के लिए :-
परमाणु विद्यत ऋणात्मकता विद्युत ऋणात्मकता में अंतर विद्युत संयोजनी बंध से स्कन्धोत्पत्ति
१-कार्बन २.५ १ स्कन्धोत्पत्ति नहीं होती
आक्सीजन(O) ३. ५
२-क्लोरीन ३.० १ स्कन्धोत्पत्ति नहीं होती
फ्लोरीन ४,०
गुणसाम्येसदृशानाम् -३५
संधि-विच्छेद:-गुण+साम्ये+सदृशानाम्
शब्दार्थ-गुणसाम्ये-दो परमाणुओं के सामान गुण (अविभागीपरिच्छेद) होने पर , सदृशानाम्-सजातीय होने पर अर्थात स्निग्ध-स्निग्ध अथवा रुक्ष -रुक्ष परमाणुओं का बंध नहीं होगा!
भावार्थ-यदि बंधने वाले दो सजातियों परमाणु/अणुओं के गुणों में समानता अर्थात शक्ति के अविभागी प्रतिच्छेद समान होने पर उनमे परस्पर बंध नहीं होता जैसे २ स्निग्ध गुण वाले परमाणु का दुसरे दो स्निगध गुण वाले परमाणु,दो रुक्ष गुण वाले दो रुक्ष गुण वाले परमाणु,और दो स्निग्ध गुण वाले परमाणु का २ रुक्ष गुण वाले परमाणु के साथ बंध नहीं होता है!
यदि गुणों की संख्या में विषमता हो तो सजातीय परमाणुओं का भी बंध होता है!अर्थात १ स्निग्ध( +) परमाणु का दो रुक्ष(-) परमाणु के साथ,एक रुक्ष (-) का २ स्निग्ध(+) परमाणु ,१ स्निग्ध (+) परमाणु का २ स्निग्ध (+) परमाणु ,१ रुक्ष (-) परमाणु का २ रुक्ष (-) परमाणु के साथ बंध हो सत्ता है
यही यह सूत्र बताने के लिए है !सूत्र में सदृश पद सूचित करता है कि दोनों बंधने वाले परमाणुओं के गुणों(अविभागी प्रतिच्छेदों) में असमानता होने पर ही,परमाणुओं में बंध होता है !
इस सूत्र का जैन दर्शन और आधुनिक विज्ञान के परिपेक्ष में विश्लेष-
१-गुण साम्ये सदृशानाम् !!
(गुण साम्ये), दो परमाणुओं में समान गुण अर्थात स्निग्ध और रुक्ष गुण समान होने पर,(सदृशानाम्)एक समान स्निग्ध और रुक्ष गुणवाले परमाणुओं में भेद-संघात प्रक्रिया द्वारा परस्पर बंध होकर स्कन्धोत्पत्ति नहीं होती है!
आधुनिक विज्ञान के अनुसार भी एक सामान विद्युत ऋणात्मकता वाले परमाणुओं में भेद संघात प्रक्रिया द्वारा परस्पर बंध से स्कन्धोत्पत्ति (molecule Formation ) नहीं होती है !
नोट-विद्युत ऋणात्मकता किसी एक परमाणु की वह शक्ति है जिसे दुसरे परमाणु के इलेक्ट्रान पर डालकर उस से वह इलेक्ट्रान शेयर करता है !
उद्धाहरण के लिए :-
नाईट्रोजन(N) और क्लोरीन(Cl) की विद्युत ऋणात्मकता ३
फॉस्फोरस(P) और हाइड्रोजन (H) की २.१(स्कंध का निर्माण
आर्सेनिक (As)और आयोडीन( I) की २.२
आक्सीजन(O)-आक्सीजन(O) की ३.५
बोरोन(B) २,-हाइड्रोजन (H)की २.१ है,
इनके परमाणुओं में भेद-संघात(Electro Valent bonding) प्रक्रिया द्वारा बंध नहीं होता है किन अणुओं/परमाणुओं का किन परिस्थितियों में बंध होता है -
द्वयधिकादिगुणानां तु ३६
संधि विच्छेद -द्वी+अधिक+आदि+गुणानां+तु
शब्दार्थ-तु=लेकिन,द्वयधिकादिगुणानां- केवल ,परस्पर में दो से अधिक,गुण वाले परमाणुओं का बंध होता है!उससे कम या अधिक गुणों का अंतर होने पर बंध नहीं होता
भावार्थ- यदि एक स्निग्ध अथवा रुक्ष परमाणु में दो, तीन चार आदि शक्तिंश (अविभागी प्रतिच्छेद) है और दुसरे में क्रमश: ४,५,६ आदि रुक्ष अथवा स्निग्ध शक्तिंश है तभी दोनों परमाणुओं में बंध हो सकता है, क्योकि उनके गुण परस्पर दो अधिक है! दो से कम अथवा अधिक अंतर होने पर सजातीय और विजातीय परमाणुओं में बंध नहीं हो सकता! जैसे किसी स्निग्ध अथवा रुक्ष, २ गुण वाले परमाणु का बंध २, ३, ५, संख्यात,असंख्यात गुणों वाले स्निग्ध अथवा रुक्ष परमाणुओं से बंध नहीं हो सकता! केवल चार गुण वाले परमाणु में ही बंध संभव है! यह बंध स्निग्ध का स्निग्ध के साथ,रुक्ष का रुक्ष के साथ व स्निग्ध का रुक्ष के साथ है !२ अंशों का अंतर होने पर ही बंध होगा !
प्रोटोन में २ क्वार्क (+) के होते है वही तीसरा क्वार्क (-) वाला होता है ये २ अधिक गुणों वाले का बंध हुआ !पेंटा क़वर्क में ५ क्वार्कों का बंध होता है (उप्र के ३ क्वार्कों का बंध अन्य २ क्वार्कों के साथ होता है जिससे कुल क़वार्क ५ होते है !इस प्रकार न्यूट्रॉन में २ क्वार्क (-) होते है वही तीसरा (+) होता है यह दो अधिक गुण वालों का बंध है !
,अधिकादि -दो से अधिक, गुणानां-स्निग्ध और रुक्ष गुणों में अंतर होने पर,तु--परस्पर परमाणुओं में भेद-संघात प्रक्रिया द्वारा बंध होता है!अर्थात दो परमाणुओं के स्निग्ध और रुक्ष गुणों,अर्थात विद्युत ऋणात्मकता में दो अधिक होने पर परस्पर में भेद संघात प्रक्रिया द्वारा बंध कर के स्कन्धोत्पत्ति होती है!आधुनिक विज्ञान के रसायन विज्ञान के अनुसार भी भेद संघात ;विद्युत संयोजनी बंध (EletroValent Bonding) के द्वारा स्कन्धोत्पत्ति के निर्माण (molecule Formation) के लिए,बंध निर्माण में भाग ले रहे परमाणुओं की विद्युत ऋणात्मकता २ से अधिक होना आवश्यक है !
उद्धाहरण के लिए :-
परमाणु विद्यत ऋणात्मकता विद्युत ऋणात्मकता में अंतर विद्युत संयोजनी बंध से स्कन्धोत्पत्ति
१-सोडियम (Na १ २ सोडियमक्लोराइड (NaCl )
क्लोरीन (Cl) ३
२-पोटेशियम(K) ०.८ २.२ पोटेशियमक्लोराइड KCl
क्लोरीन (Cl) ३.०
५-३-१६
तत्वार्थ सूत्र (मोक्षशास्त्र )
आचर्य उमास्वामी जी द्वारा विरचित
अध्याय ५ (अजीव तत्व )
'मोक्षमार्गस्य नेतराम ,भेतारं कर्मभूभृतां !
ज्ञातारं विश्वतत्त्वानां,वन्दे तद्गुणलब्द्धये'
आचार्य उमास्वामी जी सूत्र ३७ में स्पष्ट करते है
स्कन्धोत्पत्ति के बाद उत्पन्न स्कंध की प्रकृति -
बन्धेऽधिकौ पारिणामिकौ च - ३७
संधिविच्छेद:-बन्धे+अधिकौ+पारिणामिकौ+च
शब्दार्थ:-बन्धे-बंध होने पर,अधिकौ-अधिक गुणों वाला परमाणु ,पारिणामिकौ-परिणमन कराने वाला,च=भी होता है!
अर्थ- और बंध होने पर अधिक गुणों वाला परमाणु,कम गुण वाले परमाणु को अपने अनुरूप परिणमन कर लेता है !
भावार्थ:-जब दो परमाणु अपनी पूर्वास्था को छोड़कर तीसरी अवस्था धारण करते है तभी नवीन स्कंध की उत्पत्ति होती है!यदि ऐसा नहीं हो तो जैसे कपड़े में काले और सफ़ेद धागे परस्पर में संयुक्त होते हुए भी अलग अलग पड़े रहते है वैसे ही परमाणु भी पड़े रहे.और स्कंध की उत्पत्ति ही नहीं हो!अत: अधिक (१०अंश )गुण वाले रुक्ष परमाणु से यदि कम (८ अंश) वाले स्निग्ध परमाणु का बंध होता है तो स्कन्ध रुक्ष गुणों से परिपूर्ण (अम्लीय) होगा!अर्थात दो परमाणुओं के बंध में कम अंशगुण वाला परमाणु अधिक अंशगुण वाले परमाणु के अनुरूप परिणमन कर दोनों परमाणु परिणमन कर नवीन स्कंध में परिवर्तित हो जाते है!
दो अधिक गुणों वाले रमाणुओं का ही बंध होकर स्कंध क्यों बनता है ?
समाधान-बंध करने वाले परमाणुओं के लयवर्त गुणों में दो का अंतर इसलिए रखा है क्योकि यदि अधिक अंतर होगा तो कम गुणों वाला परमाणु लयवर्त तो हो जाएगा किन्तु तीसरी स्कंध अवस्था प्राप्त नहीं कर सकेगा क्योकि वह अपने प्रभाव से अधिक गुण वाले परमाणु को प्रभावित नहीं कर पायेगा!समान गुण होने पर भी बंध इसलिए नहीं हो पायेगा क्योकि दोनों परमाणु समान बलशाली हो जाएंगे ,जिससे एक दुसरे के अनुरूप परिणमन कर नहीं पाएंगे और अलग अलग ही रह जाते है !
गीले गुड़ के समान,एक अवस्था से दुसरी अवस्था को प्राप्त करना ,पारिणामिक कहलाता है !जैसे अधिक् मीठे रस वाला गुड़ ,उस पर पडी धुल को अपने गुण रूप से परिणमाने के कारण पारिणामिक होता है इसी प्रकार अधिक गुण वाला पारिणामिक होता है !
इस सूत्र का जैन दर्शन और आधुनिक विज्ञान के परिपेक्ष में विश्लेष-
बंधेऽधिकौ पारिणामिकौ च
बंधेऽधिकौ पारिणामिकौ च -और बंध करने वाले परमाणु में अधिक गुण रखने वाला परमाणु कम गुण वाले परमाणु को अपने रूप परिणमन करवा लेते है! रसायन विज्ञान मान्य स्कन्धौ अणु (molecules) में भी प्राय: यही देखा जाता है!जब स्निग्ध गुण युक्त धातु का परमाणु रुक्ष गुण युक्त अधातु के परमाणु परस्पर बंध कर स्कन्धो त्पत्ति (molecule formation) करते है तब निर्मित स्कंध (molecule) उसी गुण का होता है जिसका द्रव्यमान (mass) अधिक हो! यदि स्कंध (molecule) निर्माण में भाग ले रहे परमाणु में से यदि स्निग्ध गुण युक्त धातु (क्षारीय) के परमाणु का द्रव्य मान अधिक है तो निर्मित स्कंध क्षारीय प्रकृति का होगा,इसके विपरीत यदि रुक्ष (अम्लीय) अधातु के परमाणु का द्रव्यमान अधिक हो तब निर्मित स्कंध (molecule) अम्लीय प्रकृति का होगा क्योकि क्षारीय गुण धातु और अम्लीय गुण अधातु का विशिष्ट गुण है!
इन तथ्यों को हम निम्न उद्धहरणों से समझ सकते है -
परमाणु प्रकृति द्रव्यमान निर्मित्त स्कंध निर्मित स्कंध की प्रकृति
१-मैंगनीज़ (Mn)स्निग्ध ५४x१ =५४ मैंगनीज़मोनो आक्साइड (MnO) क्षारीय
आक्सीजन (O) रुक्ष १६ x १ =१६
2-मैंगनीज़ (Mn)स्निग्ध ५४x२=१०८ मैंगनीज़ आक्साइड (Mn O ) अम्लीय 2 7
आक्सीजन (O) रुक्ष १६ x ७ =११२
उपर्युक्त तीन सूत्र के माध्यम से आचारश्री ऊमा स्वमी जी ने हमे अवगत करवाया कि दो परमाणुओं को भेद संघात (विद्युत संयोजनी बंध -electro valent bonding) से दो परमाणुओं को बंध कर स्कंध का निर्माण किन परिस्थियों में होगा और किन में नहीं होगा !उन्होंने बताया कि दो परमाणुओं में एक समान स्निग्ध रुक्ष गुण अर्थात एक समान विद्युत ऋणात्मकता वाले परमाणुओं में तथा उनकी विद्युतऋणात्मकता में एक या एक अंतर होगा तब वे स्कन्धोत्पत्त्ति में असक्षम होंगे,किन्तु यदि उनका अंतर दो या इससे अधिक होगा तभी स्कन्धोत्पत्ति में सक्षम होंगे!
द्रव्य को परिभाषित करते है आचार्य-
गुणपर्ययवदद्रव्यम् ३८
सन्धिविच्छेद-गुण+पर्ययवद+द्रव्यम्
शब्दार्थ-गुण=गुण युक्त,पर्ययवद-पर्याय युक्त,द्रव्यम्-द्रव्य कहते है!
अर्थ-गुण और पर्याय युक्त द्रव्य होता है !
गुण-द्रव्य में अनेक पर्यायों के व्यतीत होने पर भी जो द्रव्य से कभी पृथक नहीं होता वह उस द्रव्य का गुण है!जैसे जीव के चेंतनत्व,ज्ञान,वीर्य,दर्शनादि तथा पुद्गल के स्पैश रस ,गंध,और वर्ण (रूप) गुण है! इसलिए गुण को अन्वयी कहते है!
पर्याय- द्रव्य में क्रम से होने वाली विक्रिया होती रहती है,जो द्रव्य में आती जाती रहती है,वह पर्याय है जैसे;जीव की नरक,तिर्यंच,देव और मनुष्य गतियां,जीव द्रव्य की पर्याय है!इसलिए पर्याय को व्यतिरेकी कहते है!
भावार्थ-द्रव्य गुण पर्याय युक्त होता है!कोई भी द्रव्य गुण और पर्याय रहित हो ही नहीं सकता!जैसे जीव द्रव्य,ज्ञान-दर्शनादि गुण के बिना तथा किसी संसारी अथवा सिद्ध पर्याय के बिना हो ही नहीं सकता!प्रत्येक द्रव्य की पर्याय और गुण अवश्य होंगे'
विशेष-
१- द्रव्य में गुण और पर्याय न तो सर्वथा भिन्न है और नहीं अभिन्न! वास्तव में द्रव्य में गुण और पर्याय दोनों है और अभिन्न है!लेकिन वर्णन करते हुए सबका अलग अलग वर्णन करते है जैसे यह जीव की नरक,मनुष्य,देव अथवा तिर्यंच पर्याय है!यद्यपि गुण और पर्याय के अपेक्षा द्रव्य अलग नहीं हो सकता किन्तु कथन की अपेक्षा उनका वर्णन अलग से किया जाता है! उद्धाहरण के लिए स्वर्ण चिकना,पीला होता है!उनके ये गुण स्वर्ण से अभिन्न नहीं है क्योकि यदि हम कहे की हमें पीले रंग रहित स्वर्ण दे दीजिये तो असंभव है!किन्तु जब कथन करते है तो कहेंगे पीला,चिकना स्वर्ण दे दीजिये!
RE: तत्वार्थ सूत्र अध्याय ५ भाग ५ -
Manish Jain - 07-15-2023
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तत्वार्थ सूत्र (Tattvartha sutra)
अध्याय 1
अध्याय 2
अध्याय 3
अध्याय 4
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अध्याय 6
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