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तत्वार्थ सूत्र अध्याय ५ भाग ६ - Printable Version

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तत्वार्थ सूत्र अध्याय ५ भाग ६ - scjain - 03-16-2016

काल भी द्रव्य है  

कालश्च -३९

संधि विच्छेद-काल :+च 

शब्दार्थ-काल:-काल,च -भी ('च' का अन्वय सूत्र २  "द्रव्याणि" के साथ है) 
अर्थ-काल भी द्रव्य है! 
भावार्थ- काल भी द्रव्य है क्योकि वह भी गुण,पर्याय तथा उत्पाद,व्यय,ध्रौव्य युक्त है!
[b]विशेष[/b]
१-इस प्रकार सूत्र १ में धर्म,अधर्म,आकाश और पुद्गल ४, सूत्र ३ में जीव-१  और ३९ में काल -१ ,उल्लेखित कुल द्रव्य छः ही हैं हीनाधिक नही !
२-सूत्र १, में चार द्रव्यों के  साथ, काल द्रव्य का कथन नहीं किया गया क्योकि उस सूत्र में अजीव एवं कायावान (बहुप्रदेशी) द्रव्यों का उल्लेख कियाहै जबकि कालद्रव्य कायावन नहीं है,एक प्रदेशी है!
३ -काल द्रव्य होने की सिद्धि-
काल द्रव्य में ध्रौव्य पाया जाता है क्योकि सदा से उसका स्वभाव स्थायी है,यह ध्रुवता स्व निमित्तिक है!उत्पाद और व्यय ,दोनों 'स्व' और 'पर' निमित से है!काल द्रव्य अनंत पदार्थों के प्रति समय परिणमन में कारण है,अत: कार्य के भेद से -कारण में प्रति समय भेद होना जरूरी है,यह पर निमित्तक उत्पाद व्यय है तथा काल द्रव्य में भी अगुरुलघु गुण है जिस से  षटगुणहानिवृद्धि की अपेक्षा प्रति समय उत्पाद व्यय 'स्व' निमित्तक भी होता है!
 दूसरा लक्षण काल द्रव्य;गुण-पर्याय युक्त है!काल द्रव्य में सामन्य और विशेष दोनों गुण है! काल द्रव्य समस्त द्रव्यों की वर्तना का हेतु है,यह उसका विशेष गुण है क्योकि यह अन्य किसी द्रव्य में नहीं है!अचेतनत्व, अमूर्तिकत्व, सूक्ष्मत्व,अगुरुलघुत्व,इसमें सामान्य गुण है जो की अन्य द्रव्यों में भी पाये जाते है !उत्पाद,व्यय और ध्रौव्य से युक्त होने के कारण काल भी द्रव्य है!
यह अमूर्तिक है क्योकि इसमें रस,गंध,स्पर्श और वर्ण नहीं पाये जाते और 
ज्ञान,दर्शनादि चेतन के गुणों के अभाव होने से अचेतन है !
काल द्रव्य आस्तिकाय नहीं है अर्थात एक प्रदेशी है क्योकि लोकाकाश के प्रत्येक प्रदेश पर एक एक कालाणु,रत्नों की राशि की भांति स्थित है जो की स्निग्ध-रुक्ष गुण के अभाव में स्कंध नहीं बनाते, परस्पर मिलते नहीं हैं !इसलिए प्रत्येक कालणु,एक एक काल द्रव्य है! काल द्रव्य एक नहीं अपितु, जितने लोकाकाश के असंख्यात प्रदेश है उतने ही असंख्यात काल द्रव्य है!कालणु निष्क्रिय है क्योकि यह एक स्थान से दुसरे स्थान गमन  नहीं करते ,जहाँ के तहाँ स्थित रहते है !ये अनादिकाल से है और  रहेंगे 

कालद्रव्य कितने समय वाला है
[b]सोऽनन्तसमयः ४० [/b]
संधिविच्छेद :-सो+अनन्त+समयः
शब्दार्थ सो-वह काल द्रव्य,अनन्त=अनंत,समयः=समय वाला है!
अर्थ-वह काल द्रव्य,अनंत समय वाला है 
भावार्थ-वह काल द्रव्य अनादिकाल से है और अनंत काल तक रहेगा! यह अनश्वर है!
विशेष-
समय-एक पुद्गल परमाणु मंद गति से,आकाश के एक प्रदेश से निकटतम दुसरे प्रदेश पर, जाने में जितना काल लेता है वह एक समय है,यह व्यवहार काल की सूक्षमत: इकाई है!१-समय-काल का सूक्षमत: अविभागी भाग है! केवली भगवान् का विषय होने के कारण इस को समझाया नहीं जा सकता है फिर भी इसकी तुलना एक पलक झपकने में लगे काल से करी जा सकती है!एक बार पलक झपकने में असंख्यात समय लगते है!

वर्तमानकाल एक समय प्रमाण है क्योकि एक समय काल व्यतीत हो जाने पर वह भूत होकर, दूसरा समय उसका स्थान लेकर वर्तमान कहलाता है,किन्तु भूत और भविष्यत काल अनन्त समय वाले  है!
व्यवहारकाल;भूत,वर्तमान और भविष्यत्काल सहित अनन्त समय का है इसकी समय,आवली,सैकंड,मिनट,घंटा,दिन, पक्ष,माह,वर्ष,युग,लक्ष,पूर्वांग,पूर्व,अचल तक अन्य ईकाईयां है!व्यवहारकाल,निश्चयकाल की पर्याय है!
यह सूत्र,निश्चय काल का ही प्रमाण बताता है क्योकि एक कालाणु,अनन्त पर्यायों की वर्तना में कारण है,इसलिए उपचार से कालाणु को अनन्त कह सकते है !
निश्चयकाल द्रव्य-लोककाश के,प्रत्येक प्रदेश पर,रत्नों की राशि के समान,एक एक कालाणु स्थित है उसे निश्चय काल द्रव्य कहते है! वर्तना उसका कार्य है !




द्व्याश्रयानिर्गुणा गुणाः ४१

संधि विच्छेद:-द्रव्य+आश्रय+अनिर्गुणा +गुणाःशब्दार्थ- द्रव्य-जो द्रव्य के,आश्रय-आश्रय से रहते हो और,अनिर्गुणा-अन्य गुण उन गुणों में नहीं पाए जाए,गुणाः=उन्हें गुण कहते है!
अर्थ-जो द्रव्य के आश्रय से रहता है,सदैव द्रव्य में रहता है,और जिसमे स्वयं दूसरा गुण नहीं रहता,उसे गुण कहते है!

भावार्थ-ज्ञान और दर्शन जीव के गुण,जीव द्रव्य के आश्रय पाए जायेगे,जीव होगा तो यह गुण निश्चित रूप से होंगे !ज्ञान में दर्शन,सुख,चरित्र अन्य कोई गुण नहीं है,दर्शन गुण में;ज्ञान,/सुख गुण नहीं है! किन्तु वह जीव में है! अर्थात जो द्रव्य के आश्रय तो रहते हो, द्रव्य के बहार न पाए जाते हो,जैसे ज्ञान दर्शन हमें जीव के अतिरिक्त किसी अन्य द्रव्य में नहीं मिल सकते! ये जीव में ही मिलेंगे! कोई भी गुण किसी अन्य गुण में हस्तक्षेप नही कर सकता (कोई भी गुण किसी अन्य गुण में  encroachment नही करता 
 गुण के भेद-
१-सामान्यगुण- अन्य द्रव्यों में भी पाए जाते है जैसे अस्तित्व,वस्तुत्व,प्रमेत्व ,अगुरुलघुत्व आदि!
और 
२-विशेष गुण-उसी द्रव्य में पाए जाते है जैसे जीव में ज्ञान दर्शन;पुद्गल के स्पर्श ,रस ,गंध,वर्ण आदि 
आचार्यश्री पर्याय की परिभाषा बताते हुए कहते है -
तदभाव:परिणाम: !!४२!! 
संधि-विच्छेद:-तदभाव:+परिणाम: 
शब्दार्थ-तदभाव:-जो द्रव्य,जिस रूप में है।परिणाम:-पर्याय है!
अर्थ:-जीव,धर्म,अधर्म,पुद्गल,आकाश और कालद्रव्य है,उनके उसी रूप रहने को परिणाम/पर्याय कहते है!जैसे जीव की नर,देव आदि पर्याय है! नर में बालक का बालयपन उसकी बालक पर्याय है !
भावार्थ-अंगुली को मोड़ते है,तो जिस कोण में वह मुड़ कर स्थिर होती है वही उसकी पर्याय है! हम खड़े है तो हमारी पर्याय खडी है,बैठने पर बैठी पर्याय है!जिस द्रव्य का जो स्वभाव होता है वही उसका भावहै,जैसे धर्मद्रव्य का स्वभाव पुद्गल और जीव की गति में उत्प्रेरक सहायक होना है!धर्मद्रव्य का परिणमन सदा इसी रूप होगा!जीवद्रव्य का स्वभाव चेतनत्व/ज्ञान-दर्शनादि है वह परिणमन सदा उसी रूप करेगा !
[b]विशेष-[/b]
[b]१-इन ४२ सूत्रों का हमें तीनोयोग से दत्तचित्त होकर स्वाध्याय कर,अपने जीवन में अंगीकार करना चाहिए!जिससे हमारे वर्तमान और अन्य भवों की गुणवत्ता में उत्थान होकर हमारा कल्याण हो सके![/b]
[b]२-हमारे युवा वर्ग ही नही अपितु [b][b]प्रौढ़[/b] वर्ग भी बहुदा संशयवश,कि 'हमारे आध्यात्मिक ग्रंथों में उल्लेखित द्रव्य,तत्व,पदार्थ आदि वास्तव में सही भी है या किसी ने प्रमाद वश गलत तो नही इनमे  प्रतिपादित कर दिया है" धर्म से विमुख होने लगते है!इस अध्याय के सूत्रों को स्वध्याय से समझने और वैज्ञानिक कसौटी पर तुलना करने के पश्चात मुझे दृढ विशवास है कि युवा और प्रौढ़ सभी वर्गों में अपने शास्त्रों के प्रति श्रद्धान में प्रगाढ़ता आएगी,उनका सम्यक्त्व दृढ  परिपक्व होगा  क्योकि हमारे सच्चे(सत्या महाव्रती पूर्वाचार्यों द्वारा प्रतिपादित) शास्त्रों में लगभग आज से २६०० वर्ष पूर्व [/b][/b][b]भगवान महावीर की [/b][b]प्रतिपादित वाणी उन्नीस और बीसवी सदी के वैज्ञानिको के अनुसंधान से भी प्रमाणित हो रही है![/b]
[b]आज का बच्चा भी प्रमाण के बिना किसी बात का हृदयांगम करने के लिए तैयार नही होता !यह अध्याय उनकी अधिकाँश जिज्ञासाओं को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से शांत करने में सहकारी होगा!    [/b]
[b]  [/b]इस प्रकार आचार्य उमास्वामी  विरचित तत्वार्थ सूत्र जी के पंचम  अध्याय,में छः द्रव्यों  के वर्णन की इति श्री हुई!मुझ  जैसे अल्पज्ञानी द्वारा त्रुटियाँ रहना स्वाभाविक है अत: बुद्धिजीवी और प्रबुद्ध विद्वानों से  विनम्र निवेदन है उन्हें ठीक कर;मुझे बता कर, मेरा मार्ग दर्शन कर अनुग्रहित करने की कृपा करे!



RE: तत्वार्थ सूत्र अध्याय ५ भाग ६ - Manish Jain - 07-15-2023

अधिक जानकारी के लिए.... 
तत्वार्थ सूत्र (Tattvartha sutra)
अध्याय 1 
अध्याय 2
अध्याय 3
अध्याय 4
अध्याय 5
अध्याय 6
अध्याय 7
अध्याय 8
अध्याय 9
अध्याय 10