03-31-2016, 08:22 AM
दिग्व्रत के अतिचार-
ऊर्ध्वाधस्तिर्यग्व्यतिक्रम -क्षेत्र वृद्धि-स्मृत्यन्तरा धनानि !!३०!!
सन्धिविच्छेद -ऊर्ध्व+अधो +तिर्यग् +व्यतिक्रम +क्षेत्र +वृद्धि+स्मृत्यन्तराधनानि
शब्दार्थ- (ऊर्ध्व+अधो +तिर्यग्) व्यतिक्रम -ऊपर,नीचे और तियाग दिशा का उल्लंघन करना ,क्षेत्र वृद्धि-मर्यादित क्षेत्रो को बढ़ा लेना ,स्मृत्यन्तराधनानि-मर्यादा को भूल जाना !
अर्थ -ऊर्ध्व,अधो ,तिर्यग् दिशाओं में नियम लेते समय की सीमा का,व्यतिक्रम+उल्लंघन करना ,क्षेत्र की सीमा को बढ़ा लेना और मर्यादित सीमा को ही भूल जाना ,दिग्व्रत के अतिचार है !
भावार्थ-
उर्ध्व व्यतिक्रम -जीवन पर्यन्त लिए गए दिग्व्रत में ऊपर की दिशा अर्थात पर्वत ,हवाई जहाज से आकाश में उड़ी गई ऊंचाई आदि की सीमा का उल्लंघन करना उर्ध्व व्यतिक्रम है !मानलीजिए ऊपर २५००० फ़ीट का नियम लया है किन्तु हवाई जहाज से ३०००० फुट अकस्मात् जाना पड़ जाए तो यह उर्ध्व व्यतिक्रम अतिचार होगा !
अधो व्यतिक्रम-व्रती ने नियम लेते समय नीचे की दिशा में गमन का ५००फुट का नियम लियाहै किन्तु कही उसे अज्ञानता वश ,इस सीमा से नीचे जाना पड़ जाए तो अधो व्यतिक्रम होता है ,ऐसा होने पर प्रायश्चित लेना पड़ता है !
तिर्यग् दिशा में क्षेत्र वृद्धि व्यतिक्रम -मन लीजिये व्रती २०० किलोमीटर गमन का नियम लेता है ,वह इस सीमा का उल्लंघन करता है तो दिगव्रत में तिर्यग् दिशा में क्षेत्र वृद्धि का अतिचार लगता है !यदि निर्धारित सीमा भूल ही जाता है व्रती तब संरिति अंतरधान अतिचार व्रतों में लगता है !
विशेष-व्रती दिग्व्रत में सीमित दासों दिशाओं का नियम पांच पापो से निवृत होने के लिए लेता है किन्तु यदि इन सीमाओं का उल्लंघन ,धार्मिक कार्यों,जैसे तीर्थ यात्रा,पंचकल्याणक,अथवा मुनि के प्रवचन सुनने के लिए किया जाए तो व्रत में अतिचार नहीं होता बशर्ते सीमाओं का उल्लंघन सिर्फ धार्मिक प्रवृत्ति के लिए क्या हो उसके साथ आप व्यापर या मोरंजन के कार्य क्रम नहीं कर सकते!
देशव्रत के अतिचार-
आनयन प्रेष्यप्रयोग शब्द रूपानुपात पुद्गल क्षेपा: !!३१!!
संधि विच्छेद-आनयन+ प्रेष्यप्रयोग+शब्दानुपात +रूपानुपात+ पुद्गल+ क्षेपा:
शब्दार्थ-आनयन, प्रेष्यप्रयोग ,शब्दानुपात, रूपानुपात,पुद्गल-पुद्गल /पत्थर आदि , क्षेपा:-फेंकना
अर्थ-आनयन, प्रेष्यप्रयोग ,शब्दानुपात, रूपानुपात,पुद्गल फेंकना,पांच देश व्रत के अतिचार है !
भावार्थ-
आनयन अतिचार -स्वयं अपने मर्यादित क्षेत्र में रहते हुए ,किसी अन्य के द्वारा मर्यादित क्षेत्र से वस्तु मंगवाना !व्रत में आनयन अतिचार है!
प्रेष्यप्रयोगअतिचार - स्वयं मर्यादित क्षेत्र में रहते हुए ,किसी सेवक को उसी कार्यवश,
अपने मर्यादित क्षेत्र से बहार भेजकर वस्तु मंगवाना !व्रत में प्रेष्यप्रयोग अतिचार है !
शब्दानुपात अतिचार -स्वयं अपने निर्धारित क्षेत्र में रहते हुए ,निर्धरित सीमा के बाहर से फोन से अथवा खांस कर अपना अभिप्राय समझाना ,व्रत में शब्दानुपात अतिचार है !
रुपानुपात अतिचार -
स्वयं अपने निर्धारित क्षेत्र में रहते हुए ,मर्यादा से बाहर रह रहे व्यक्ति को अपना रूप दिखाकर इशारा करना ,व्रत में रूपानुपात अतिचार है
पुद्गलक्षेप-स्वयं अपने निर्धारित क्षेत्र में रहते हुए ,मर्यादा से बाहर पत्थर /कंकड़ आदि फेंक कर संकेत देना ,व्रत में पुद्गलक्षेप अतिचार है !
ऊर्ध्वाधस्तिर्यग्व्यतिक्रम -क्षेत्र वृद्धि-स्मृत्यन्तरा धनानि !!३०!!
सन्धिविच्छेद -ऊर्ध्व+अधो +तिर्यग् +व्यतिक्रम +क्षेत्र +वृद्धि+स्मृत्यन्तराधनानि
शब्दार्थ- (ऊर्ध्व+अधो +तिर्यग्) व्यतिक्रम -ऊपर,नीचे और तियाग दिशा का उल्लंघन करना ,क्षेत्र वृद्धि-मर्यादित क्षेत्रो को बढ़ा लेना ,स्मृत्यन्तराधनानि-मर्यादा को भूल जाना !
अर्थ -ऊर्ध्व,अधो ,तिर्यग् दिशाओं में नियम लेते समय की सीमा का,व्यतिक्रम+उल्लंघन करना ,क्षेत्र की सीमा को बढ़ा लेना और मर्यादित सीमा को ही भूल जाना ,दिग्व्रत के अतिचार है !
भावार्थ-
उर्ध्व व्यतिक्रम -जीवन पर्यन्त लिए गए दिग्व्रत में ऊपर की दिशा अर्थात पर्वत ,हवाई जहाज से आकाश में उड़ी गई ऊंचाई आदि की सीमा का उल्लंघन करना उर्ध्व व्यतिक्रम है !मानलीजिए ऊपर २५००० फ़ीट का नियम लया है किन्तु हवाई जहाज से ३०००० फुट अकस्मात् जाना पड़ जाए तो यह उर्ध्व व्यतिक्रम अतिचार होगा !
अधो व्यतिक्रम-व्रती ने नियम लेते समय नीचे की दिशा में गमन का ५००फुट का नियम लियाहै किन्तु कही उसे अज्ञानता वश ,इस सीमा से नीचे जाना पड़ जाए तो अधो व्यतिक्रम होता है ,ऐसा होने पर प्रायश्चित लेना पड़ता है !
तिर्यग् दिशा में क्षेत्र वृद्धि व्यतिक्रम -मन लीजिये व्रती २०० किलोमीटर गमन का नियम लेता है ,वह इस सीमा का उल्लंघन करता है तो दिगव्रत में तिर्यग् दिशा में क्षेत्र वृद्धि का अतिचार लगता है !यदि निर्धारित सीमा भूल ही जाता है व्रती तब संरिति अंतरधान अतिचार व्रतों में लगता है !
विशेष-व्रती दिग्व्रत में सीमित दासों दिशाओं का नियम पांच पापो से निवृत होने के लिए लेता है किन्तु यदि इन सीमाओं का उल्लंघन ,धार्मिक कार्यों,जैसे तीर्थ यात्रा,पंचकल्याणक,अथवा मुनि के प्रवचन सुनने के लिए किया जाए तो व्रत में अतिचार नहीं होता बशर्ते सीमाओं का उल्लंघन सिर्फ धार्मिक प्रवृत्ति के लिए क्या हो उसके साथ आप व्यापर या मोरंजन के कार्य क्रम नहीं कर सकते!
देशव्रत के अतिचार-
आनयन प्रेष्यप्रयोग शब्द रूपानुपात पुद्गल क्षेपा: !!३१!!
संधि विच्छेद-आनयन+ प्रेष्यप्रयोग+शब्दानुपात +रूपानुपात+ पुद्गल+ क्षेपा:
शब्दार्थ-आनयन, प्रेष्यप्रयोग ,शब्दानुपात, रूपानुपात,पुद्गल-पुद्गल /पत्थर आदि , क्षेपा:-फेंकना
अर्थ-आनयन, प्रेष्यप्रयोग ,शब्दानुपात, रूपानुपात,पुद्गल फेंकना,पांच देश व्रत के अतिचार है !
भावार्थ-
आनयन अतिचार -स्वयं अपने मर्यादित क्षेत्र में रहते हुए ,किसी अन्य के द्वारा मर्यादित क्षेत्र से वस्तु मंगवाना !व्रत में आनयन अतिचार है!
प्रेष्यप्रयोगअतिचार - स्वयं मर्यादित क्षेत्र में रहते हुए ,किसी सेवक को उसी कार्यवश,
अपने मर्यादित क्षेत्र से बहार भेजकर वस्तु मंगवाना !व्रत में प्रेष्यप्रयोग अतिचार है !
शब्दानुपात अतिचार -स्वयं अपने निर्धारित क्षेत्र में रहते हुए ,निर्धरित सीमा के बाहर से फोन से अथवा खांस कर अपना अभिप्राय समझाना ,व्रत में शब्दानुपात अतिचार है !
रुपानुपात अतिचार -
स्वयं अपने निर्धारित क्षेत्र में रहते हुए ,मर्यादा से बाहर रह रहे व्यक्ति को अपना रूप दिखाकर इशारा करना ,व्रत में रूपानुपात अतिचार है
पुद्गलक्षेप-स्वयं अपने निर्धारित क्षेत्र में रहते हुए ,मर्यादा से बाहर पत्थर /कंकड़ आदि फेंक कर संकेत देना ,व्रत में पुद्गलक्षेप अतिचार है !