(त्रिभंगी छंद)
कर्मों का जाला, जिनवर माला, नाम सदा ही जपते हैं। वीरा की पूजा, काम न दूजा, कर्म सदा ही कटते हैं ।।
जयमाला गाऊं, जय जग पाऊं, संकट सारे दूर करो। मन सुमन खिलाओ, ज्ञान पिलाओ, ज्ञानामृत से तृप्त करो।।
(शंभू छंद)
हे वीर तुम्हारा द्वारा ही, बस अब तो मेरा ठिकाना है । सारी दुनिया में घूम चुका, अब शरण तेरी बस जाना है ।।
फूलों के सम रंगीन राग, जग में बस मुझे लुभाते हैं। फिर कष्ट के कांटे चुभते तो, तेरे दर शांति पाते हैं ।।
रत्नों की बारिश आंगन में, कुंडलपुर के जब बीच हुई। मां ने सोलह सपने देखे धरती पर उस क्षण शांति हुई ।।
त्रिशला की गोदी धन्य हुई, जब जन्म आपने पाया था। सिद्धार्थ मगन हो नाचे थे, सुर स्वर्ग का वैभव लाया था । ।
कल्याणक जन्म मनाने को, सिंहासन इन्द्र ने छोड़ दिया। ऐरावत हाथी को लाया, पर्वत सुमेरु पर न्हवन किया ।।
शत अठ विशाल थे स्वर्ण कलश, गंगा सम सिर पर धार वही । कोटि-कोटि सुर नृत्य करें, मुख से सबने जय कार कही ।।
इन्द्राणी ने श्रृंगार किया, वस्त्राभूषण पहनाये थे । माता को गोदी दे बालक, सुर तांडव नृत्य दिखाये थे ।।
धीरे-धीरे चंदा के सम, वीरा बालक भी बढ़े चले । हर गोदी लेकर के झूमे, प्रिय मित्रों के मुख कमल खिले ।।
जिसने तुमको स्पर्श किया, रोगी तन स्वस्थ हुआ तब ही । वाणी को जिसने कान सुना, अमृत सी मिश्री घुली तभी ।।
तुम खेल खेल में मित्रों को, आतम का पाठ पढ़ाते थे। तुम मात पिता के हृदय को, पंकज सा नित्य खिलाते थे ।।
वस्त्राभूषण भोजन पानी, सुर स्वर्ग से नित ही लाते थे । सुर खेल खिलौने बन करके, वीरा का मन बहलाते थे ।।
जब तीस वर्ष की उम्र हुई, हिंसा ने हा हा कार करी । वैराग्य हुआ तब इस जग से, वीरा ने सबकी पीर हरी ।।
जड़ चेतन भेद किया तुमने, चेतन को तन से अलग जान । चैतन का ध्यान लगाया फिर, दीक्षा ले करते आत्म ध्यान ।।
बारह बरसों तक कठिन योग, करके कर्मों का नाश किया। तब केवल ज्ञान की ज्योति जगी, भक्तों को फिर उपदेश दिया ।।
जा समवशरण में सुर नर पशु, वीरा की वाणी सुनते थे। अध्यातम अमृत को पाकर, कल्याण के मोती चुनते थे ।।
आठों कर्मों के रिश्ते को, पावापुर में जा तोड़ दिया। निर्वाण हुआ कल्याण हुआ, मुक्ति से नाता जोड़ लिया ।।
वीरा तेरे दर्शन को हम यहां नयन बिछाकर बैठे हैं। शास्त्रों की वाणी पढ़ पढ़कर, उसमें ही तुमको देखे हैं ।।
भक्तों का तुम कल्याण करो, मेरा कल्याण भी कर देना । हम सच्चे भक्त तुम्हारे हैं, प्रभु मेरी पीड़ा हर लेना ।।
जब तक संसार में हूँ भगवन, तेरे चरणों का साथ मिले। जब तक इस तन में श्वांस रहे, बस तेरे नाम के कमल खिले ।।
अंतिम तीर्थकर महावीर, अंतिम इच्छा पूरी करना । “स्वस्ति” ने है गुणगान किया, भक्तों को भवसागर तरना ।।
दोहा
रत्नत्रय का बोध हो, सात तत्व का ज्ञान । मुक्ति पथ पर हम चलें, हो जावे कल्याण ।।
ॐ ह्रीं श्री महावीर जिनेन्द्राय जयमाला पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा। (श्री फल चढ़ाये)
दोहा
मौत का पतझर जब झरे, जपूं आपका नाम । महावीर के चरण में, बार बार प्रणाम ।।
।।इत्याशीर्वाद पुष्पांजलि क्षिपेत् ।।
(चौपाई छंद)
महावीर की भक्ति करते, महावीर के पथ पर चलते। महावीर के हम अनुगामी, भक्ति चरण में करें नमामि।।
महावीर ने ज्योति जगायी, भक्त ने वीर की महिमा गायी । कभी भक्त को दूर न करना, हमें पड़े भवसागर फिरना ।।
चरण शरण की सेवा करते, आपहि भक्त के संकट हरते । दिल्ली शहर में भजनपुरा है, पाठ वही पर आके लिखा है।
दो दिन में यह पाठ रचा है, प्रभु भक्ति में भाव जंचा है। चैत सुदी पंचम है प्यारी, दो सहस सन् नौ है न्यारी।।
भावों को स्वीकार करों तुम, भक्तों की भी पीर हरो तुम। “स्वस्ति” की गलती क्षमा है करना भक्ति का बहता है झरना ।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः ।
(इति विधान सम्पूर्ण)
श्री महावीर विधान – स्वस्ति भूषण माताजी
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