स्थापना – श्री महावीर विधान

प्रथम वलय

द्वितीय वलय

तृतीय वलय

चतुर्थ वलय

पंचम वलय

त्रिशंत गुण अर्घ्यावली

(तर्ज शेर चाल)

संसार के डर आपसे, डर कर हैं भागे । मेरे भी भय को दूर करो, आत्म में जागे  ।। 79 ।।

ॐ ह्रीं भय रहित सुख प्राप्ताय श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।

प्रभु शोक रहित आप हो, विशोक कीजिये । हों रोग शोक नष्ट सारे, सौख्य दीजिये ।। 80 ।।

ॐ ह्रीं शोक विनाशनाय श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।

जब आत्मा के रूप को प्रभु, तुमने निहारा । तब जग की सभी वस्तुओं से किया किनारा ।। 81 ।।

ॐ भाग्य भावना उद्भवाय श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।

विद्वान नाम आपका, कुछ बुद्धि दीजिये । संसार में फंसा हूँ प्रभु कृपा कीजिए ।। 82 ।।

ॐ शास्त्र मर्मज्ञता प्राप्ताय श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।

शांति को पाके शांति जग में, बांटी आपने । शांति के खजाना अशांति, छांटी आपने ।। 83 ।।

ॐ ह्रीं अपूर्व शांति प्राप्ताय श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।

अध्यात्म के अमृत से आप अमर हो गये । भक्तों ने करी भक्ति, पाप मैल धो गये ।। 84 ।।

ॐ ह्रीं अध्यात्म अमृत प्राप्ताय श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।

मंत्रों के देवता हो, मंत्र तुमसे बने हैं। भक्तों की करी रक्षा, भक्त ध्यान सने हैं ।। 85 ।।

ॐ ह्रीं शुभ मंत्र सिद्धाय श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।

मृत्यु पे विजय करके ही, निर्वाण बनाया । मृत्युंजवी मैं भी बनूं प्रभु शरण में आया ।। 8611

ॐ ह्रीं मृत्युंजयी पद प्राप्ताय श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।

पुरुषार्थ किया आपने औ, सफल हो गये। भक्तों को भी आशीष दो, तो सफल हो गये ।। 87 ।।

ॐ ह्रीं पुरुषार्थ सफलता प्राप्ताय श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।

रहते सदा प्रसन्न दुःख, नाही सताये । मुझमें प्रसन्नता भरो, हम जग के सताये ।। 88 ।।

ॐ ही सदा प्रसन्नता प्राप्ताय श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।

पुण्यों का कोष आपके चरणों का दास है । वह पुण्य मुझको प्राप्त हो, प्रभु मुझको आश है।

मैं आया हूँ चरण में प्रभु, पुण्य बढ़ाने । करता हूँ तेरी भक्ति प्रभु, पाप घटाने ।। 89 ।।

ॐ ह्रीं शुभ गुण प्राप्ताय श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः अयं निर्वपामीति स्वाहा।

पावन तुम्हारा नाम है, मन शुद्धि कराये । जपता रहूँ मन बच से सदा, सौख्य दिलाये ।।

प्रभु नाम की माला को सदा, जपता ही रहूं । पावन हो मेरी आत्मा, मैं भजता ही रहूं ।। 90 ।।

ॐ ह्रीं पावन आत्मा दर्शनाय श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।

चाल छंद

(ऐ मेरे वतन के …)

नहि कलह आप करते हो, निर्द्वन्द आप रहते हो । मेरा क्लेश भी नाशो, शांति के संग प्रकाशो ।।

प्रभु पूजा कर्म नशाती, जग की बातें ना भाती । प्रभु अपने पास बुलाओ, चरणों में मुझे बिठाओ ।। 91 ।।

ॐ ह्रीं संसार द्वंद्व विनाशनाय श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः अयं निर्वपामीति स्वाहा।

अध्यातम अमृत पाया, जग का आहार न भाया । मैं आतम ध्यान लगाऊं, अध्यातम भोजन खाऊं ।।

प्रभु पूजा कर्म नशाती, जग की बातें ना भाती ।  प्रभु अपने पास बुलाओ, चरणों में मुझे बिठाओ ।। 92।।

ॐ ह्रीं निराहार स्वास्थ्य प्राप्ताय श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः अर्ध्य निर्वपामीति स्वाहा।

संपति चरणों की दासी, भक्तों की अंखियां प्यासी । फिर भी अभिमान ना करते, निज आतम में ही रहते ।।

प्रभु पूजा कर्म नशाती, जग की बातें ना भाती ।  प्रभु अपने पास बुलाओ, चरणों में मुझे बिठाओ ।। 93।।

ॐ ह्रीं मान कषाय विनाशनाय श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।

सब कर्म कलंक हैं धोये, आतम चादर में सोये । मेरे कलंक भी नाशो, आतम अंदर में वासो ।।

प्रभु पूजा कर्म नशाती, जग की बातें ना भाती ।  प्रभु अपने पास बुलाओ, चरणों में मुझे बिठाओ ।। 94 ।।

ॐ ह्रीं अपयश कलंक विनाशनाय श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।

नहि कोई उपद्रव आये, सब देख तुम्हें झुक जायें। सब दूर उपद्रव जावें, इससे पूजा को गावें ।।

प्रभु पूजा कर्म नशाती, जग की बातें ना भाती ।  प्रभु अपने पास बुलाओ, चरणों में मुझे बिठाओ ।। 95 ।।

ॐ ह्रीं कार्य उपद्रव विनाशनाय श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।

चिंतामणि के चिंतन से, सुख पायें मन मंथन से । सुख का वैभव हम पायें, चरणों में शीश झुकायें ।।

प्रभु पूजा कर्म नशाती, जग की बातें ना भाती ।  प्रभु अपने पास बुलाओ, चरणों में मुझे बिठाओ ।। 96 ।।

ॐ ह्रीं मनवांछा पूर्ण कराय श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।

औषध सम नाम तुम्हारा, रोगों को करें किनारा । हम स्वस्थ्य आत्म को पायें, चरणों में शीश झुकायें ।।

प्रभु पूजा कर्म नशाती, जग की बातें ना भाती ।  प्रभु अपने पास बुलाओ, चरणों में मुझे बिठाओ ।। 97।।

ॐ ह्रीं धर्म औषध प्राप्ताय श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।

साधन और साध्य हमारे, मुक्ति मिले वीर सहारे । हो मोक्ष मार्ग के नेता, कर्मों के आप विजेता ।।

प्रभु पूजा कर्म नशाती, जग की बातें ना भाती ।  प्रभु अपने पास बुलाओ, चरणों में मुझे बिठाओ ।। 98।।

ॐ ह्रीं शुभ निमित्त प्राप्ताय श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।

श्री वीर पिता हो मेरे, बालक चरणों में तेरे । रक्षा प्रभु मेरी करना, संकट को मेरे हरना ।।

प्रभु पूजा कर्म नशाती, जग की बातें ना भाती ।  प्रभु अपने पास बुलाओ, चरणों में मुझे बिठाओ ।। 99 ।।

ॐ ह्रीं प्रभु पितृ छाया प्राप्ताय श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।

ऋद्धि कर जोड़ के आये, प्रभु आतम ध्यान लगायें । ऋद्धि सिद्धी हम पायें, चरणों में शीश झुकायें ।।

प्रभु पूजा कर्म नशाती, जग की बातें ना भाती ।  प्रभु अपने पास बुलाओ, चरणों में मुझे बिठाओ ।। 100 ।।

ॐ ह्रीं ऋद्धि सिद्धी प्राप्ताय श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।

चहुं ओर नाम है तेरा, तेरे नाम से होय सवेरा । महायश कीर्ति जग फैली, भक्तों ने किरणें ले ली ।।

प्रभु पूजा कर्म नशाती, जग की बातें ना भाती ।  प्रभु अपने पास बुलाओ, चरणों में मुझे बिठाओ ।। 101 ।।

ॐ ह्रीं महायश प्राप्ताय श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।

आनंद सरोवर पाया, पूजा कर मुझे भी आया। कर्मों के काटे काटे, तब ही आनंद को बांटे।।

प्रभु पूजा कर्म नशाती, जग की बातें ना भाती ।  प्रभु अपने पास बुलाओ, चरणों में मुझे बिठाओ ।। 102 ।।

ॐ ह्रीं महा आनंद प्राप्ताय श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।

जग में सब जीव सुखी हों, नहि कोई जीव दुखी हो । महामैत्री जग में होवे, सब द्वेष भाव को खोवें ।।

प्रभु पूजा कर्म नशाती, जग की बातें ना भाती ।  प्रभु अपने पास बुलाओ, चरणों में मुझे बिठाओ ।। 103 ।।

ॐ ह्रीं सर्व जीव मैत्री कराय श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।

गुरुवर हो आप हमारे, दीक्षा को आया द्वारे । तेरा मैं शिष्य बनूंगा, मुक्ति सुख को पालूंगा ।।

प्रभु पूजा कर्म नशाती, जग की बातें ना भाती ।  प्रभु अपने पास बुलाओ, चरणों में मुझे बिठाओ ।। 104 ।।

ॐ ह्रीं परम गुरु शरण प्राप्ताय श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।

महाक्रोध को शांत किया है, शांति का दान दिया है। मैं क्रोध रहित हो जाऊं, ऐसी शक्ति को पाऊं ।।

प्रभु पूजा कर्म नशाती, जग की बातें ना भाती ।  प्रभु अपने पास बुलाओ, चरणों में मुझे बिठाओ ।। 105 ।।

ॐ ह्रीं महाक्रोध शत्रु नाशनाय श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।

चहुं और शांति फैलाओ, मंगल उपदेश सुनाओ। कल्याणकारी हैं वीरा, रत्नों में जैसे हीरा ।।

प्रभु पूजा कर्म नशाती, जग की बातें ना भाती ।  प्रभु अपने पास बुलाओ, चरणों में मुझे बिठाओ ।। 106।।

ॐ ह्रीं विश्व शांति कराय श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।

भक्तों के इष्ट तुम्हीं हो, जग में विशिष्ट तुम्हीं हो। सब इष्ट कार्य हो जावें, तेरी पूजा को गावें ।।

प्रभु पूजा कर्म नशाती, जग की बातें ना भाती ।  प्रभु अपने पास बुलाओ, चरणों में मुझे बिठाओ ।। 107।।

ॐ ह्रीं विशिष्ट योग्यता प्राप्ताय श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।

प्रभु सदा तृप्त रहते हैं, इंद्रिय सुख ना चाहते हैं । आतम सुख तृप्ति मैं पाऊं, जब वीर चरण में आऊं ।।

प्रभु पूजा कर्म नशाती, जग की बातें ना भाती ।  प्रभु अपने पास बुलाओ, चरणों में मुझे बिठाओ ।। 108 ।।

ॐ ह्रीं जगत सुख तृप्ति कराय श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।

दोहा

जीवन संध्या डूबती हो न जाये रात । निज आतम की भोर हो, दे दो बीरा साथ ।।

ॐ ह्रीं षष्ठम वलये श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।

(श्री फल चढ़ायें)

पूर्णार्घ्यं

शंभू छन्द

रत्नत्रय की पावन गंगा, भक्ति से नहाने आया हूँ। तन मन निर्मल यह हो जाये, यह भाव साथ में लाया हूँ ।।

महावीर प्रभु की वाणी ने जग जीवों का उद्धार किया। हम अर्घ्य समर्पित करते हैं, जिसने दुख का संहार किया।

ॐ ह्रीं श्री महावीर जिनेन्द्राय पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।

जयमाला

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श्री महावीर विधान स्वस्ति भूषण माताजी

1 thought on “षष्टम् वलय – Shri Mahaveer Vidhan

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