स्थापना – श्री महावीर विधान

प्रथम वलय

द्वितीय वलय

तृतीय वलय

चतुर्थ वलय

वीर गुण अर्घ्यावली

(दोहा)

तीन लोक को देखते, दृष्टा आतम राम । यह शक्ति मुझको मिले, बारंबार प्रणाम ।। 47।।

ॐ ह्रीं ज्ञान चक्षु प्राप्ताय श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।

अक्षर सम अक्षय हुऐ, अक्षर हैं भगवान । भक्त चरण को पूजते, बारंबार प्रणाम ।। 48।।

ॐ ह्रीं अक्षय धन प्राप्ताय श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।

भाग्य विधाता भक्त के, भाग्य हुआ सौभाग्य। भक्ति से पूजा करूं, मिटे कर्म के दाग ।। 49 ।।

ॐ ह्रीं सौभाग्य सुख प्राप्ताय श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।

विद्यायें चरणों झुकी, तुम्हे बनाया ईश । भक्त नित्य भक्ति करें, झुका चरण में शीश ।। 50 ।।

ॐ ह्रीं सर्व विद्या प्राप्ताय श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।

शाश्वत सुख मुक्ति मिली, शाश्वत आतम राम । शाश्वत पद की आशा है, बारंबार प्रणाम ।। 51 ।।

ॐ ह्रीं शाश्वत पद प्राप्ताय श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।

ज्येष्ठ श्रेष्ठ हो जगत में, भक्त के गुरुवर आप । छाया तेरी बैठकर करें आपका जाप ।। 52 ।।

ॐ ह्रीं ज्येष्ठ पद प्राप्ताय श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।

गुण से निर्मित मूर्ति हो, सुन्दरता छविमान । विश्व मूर्ति तुम सम नहीं, बारंबार प्रणाम ।। 53।।

ॐ ह्रीं आत्म लालित्य प्राप्ताय श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः  अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।

इंद्रिय वश करके किया, आतम साधन योग । प्रभो जिनेश्वर भक्त को, मिले आप संयोग ।। 54 ।।

ॐ ह्रीं इंद्रिय विजय कराय श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।

कर्म जीत कर सुख मिला, सिद्धालय का राज । कर्म के हारे हम प्रभो, मिले मुक्ति का ताज।।55।।

ॐ ह्रीं आत्म विजय कराय श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।

गीता छंद

( प्रभु पतित पावन …)

संसार के बंधु जगत में, छल कपट माया करें। तुम सच्चे बंधु भव्यों के, भव्यों के कर्मों को हरें ।। 56।।

ॐ ह्रीं शुभचिंतक बंधुत्व प्राप्ताय श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।

सूर्य रश्मि दीप ज्योति से भी ज्यादा तेज है। मैं ज्योति से ज्योति जलाऊं, तो मिले सुख सेज है ।। 57

ॐ ह्रीं आत्म ज्योति प्राप्ताय श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।

मोह से मोहित हुई, ये जनता सारी रोती है। तुम मोह को निर्मोह कीना, तो मिला सुख मोती है ।। 58।।

ॐ ह्रीं मोह तम विनाशनाय श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।

धारण किया है धर्म को, तुम धर्म चक्री नाथ हो। इस चक्र से जग चक्र टूटे, और मिले सुख पाथ हो ।। 59।।

ॐ ह्रीं धर्म छाया प्राप्ताय श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।

अंतिम जनम है आपका, फिर से जनम ना पाओगे । कर्मों के बंधन तोड़ दीने, फिर ना जग में आओगे ।। 60।।

ॐ ह्रीं पुनर्जन्म रहिताय श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।

नश्वर जगत की माया है, अविनाशी सुख प्रभु आपका। पावन तेरा है नाम जिनवर, मिटता सकल जग ताप का  ।। 61 ।।

ॐ ही क्षणभंगुर जग रहिताय श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।

ध्याता तुम्हीं हो ध्येय तुम हो, ध्यान भी तेरा घरें। निज आतमा से आतमा पा, मुक्ति के सुख को भरें  ।। 62 ।।

ॐ ह्रीं ध्याता ध्येय ध्यान सुख प्राप्ताय श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।

तप घोर कीना कर्म नाशे, पूज्य पद को पा लिया। सुर नर करे तब अर्चना, सर को चरण में झुका दिया ।। 63।।

ॐ ह्रीं पूज्य पद प्राप्ताय श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।

पा दिव्य शांति दिव्य रूप को, लख सभी हर्षाये थे । हो दिव्य आत्मा ज्योति पावन, पाने चरणों आये थे ।। 64 ।।

ॐ ह्रीं दिव्य रूप प्राप्ताय श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।

वाणी से अध्यात्म रस की बूंदे झरना सम वही । हितमित प्रभु प्रिय बोलते, भक्तों के हित को ही कही ।। 65 ।।

ॐ ह्रीं पावन वाणी प्राप्ताय श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।

प्रभु चित्त शांति सिन्धु है, नहि क्षोभ का भी काम है। तुम नाम से ही शांति आई, शांति मय विश्राम है।। 66 ।।.

ॐ ह्रीं चित्त शांति प्राप्ताय श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।

सन्मार्ग पर चलना सिखाते, धर्म पथ पर हम चलें । भव भव की बाधायें हरें, प्रभु मुक्ति की मंजिल मिले ।। 671।

ॐ ह्रीं सन्मार्ग प्राप्ताय श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।

प्रभु आगे-आगे चलते हैं, पीछे सभी संसार है । जो तुम चरण पथ चल दिया, तो मुक्ति भी तैयार है। ।। 68।।

ॐ ह्रीं तीर्थंकर दर्श प्राप्ताय श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।

सब योगियों के द्वारा अर्चित, अर्चना के पात्र हो । हम भक्त भी अर्चन करें, हे वीर मेर

पात्र हो । हम भक्त भी अर्चन करें, हे वीर मेरे मात्र हो ।। 69 ।।

ॐ ह्रीं जन्म-जन्म प्रभु भक्ति प्राप्ताय श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।

तप से करम का मैल धोकर, शुद्ध आतम पा लिया। प्रभु शुद्ध आतम हो हमारा, चरण शीश झुका दिया ।। 70 ।।

ॐ ह्रीं शुद्ध आत्म द्रव्य प्राप्ताय श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।

शेर चाल

(तर्ज दे दी हमे आजादी…)

लेकर के दया ध्वजा जग में वीर उड़ायें। भक्तों की हरी पीर, सब पे दया दिखायें ।। 71 ।।

ॐ ह्रीं कोमल हृदय प्राप्ताय श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।

तुम हो अनंत गुण के सिंधु, बूंद दीजिये। होवे हमारा जग का अंत, ज्ञान दीजिये ।। 72 ।।

ॐ ह्रीं जन्म मृत्यु रहित गुण प्राप्ताय श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।

जिन धर्म के अध्यक्ष, रक्षा मेरी कीजिये । शासन में अपने रख, सुधार मेरा कीजिये ।। 73 ।।

ॐ ह्रीं जिन धर्म आचरण प्राप्ताय श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।

हो दीनबंधु श्री पति, जग में हो कहाते । भक्तों के दुःख करुणा करके, शीघ्र भगाते ।। 74 ।।

ॐ ह्रीं लक्ष्मी सुख प्राप्ताय श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।

फूलों के बीच काटे जैसे, वृक्ष में रहते। वैसा हमारा सुःख है, बाधाओं को सहते ।। 75 ।।

ॐ ह्रीं निराबाध सुख प्राप्ताय श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।

चंचल है मन हमारा प्रभु, अचल कीजिये । मन क्षोभ है अशांत हैं, विश्राम दीजिये ।। 76 ।।

ॐ ह्रीं मानसिक स्थिरता प्राप्ताय श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।

हें वीर न्याय शास्त्र के, ज्ञाता भी कहाते । फिर मुक्ति देने में मुझे क्यों, देर लगाते ।। 77 ।।

ॐ ह्रीं जगत न्याय प्राप्ताय श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।

जिन वीर ने जिन तीर्थ का, शुभ चक्र चलाया। भक्तों को तिरा जग से, मुकित सौख्य दिलाया ।। 78 ।।

ॐ ह्रीं तीर्थंकर पद प्राप्ताय श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।

पूर्णाघ्य (दोहा)

मुक्ति मंजिल दूर है, जाना है परदेश |

वीर प्रभु जी शक्ति दो, मिले दिगम्बर वेश ।।

ॐ ह्रीं पंचम वलये वीर गुण सहिताय श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।

(श्रीफल चढ़ाये)

षष्टम् वलय

Download PDF

श्री महावीर विधान स्वस्ति भूषण माताजी

3 thoughts on “पंचम वलय – Shri Mahaveer Vidhan

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *