तृतीय वलय-17 से 32 अर्घ्य
निजतिरिया सह भूतेन्दर भी शीघ्र हो हर्षित आवे । हेम थाल में द्रव्य सजाकर, पूजे शीष नमावे ।।
शान्तिनाथ पंचम चक्रीश्वर, द्वादश काम सुदेवा । षोड़स तीर्थकर हम पूजे होवें संस्कृति छेवा ॥
ॐ ह्रीं श्री मूतेन्द्रेण स्वपरिवार सहितेन पाद पद्मार्थिताय जिननाथाय तथैव वर प्रदाय श्री शान्तिनाथाय जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा || १७ ||
इन्द्र पिशाचों सह परिवारा, ह्ग गुण पाने आवे । हेम थाल में द्रव्य सजाकर, पूजे शीष नमावे ।।
शान्तिनाथ पंचम चक्रीश्वर, द्वादश काम सुदेवा । षोड़स तीर्थकर हम पूजे होवें संस्कृति छेवा ॥
ॐ ह्रीं श्री पिशाचेन्द्रेण स्वपरिवार सहितेन पाद पद्मार्थिताय जिननाथाय तथैव पर प्रदाय श्री शान्तिनाथाय जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ||१८||
चन्द्र भी अपने सह परिवारा, हर्ष हर्ष गुण गाये । हेम थाल में द्रव्य सजाकर, पूजे शीष नमावे ॥
शान्तिनाथ पंचम चक्रीश्वर, द्वादश काम सुदेवा । षोड़स तीर्थकर हम पूजे होवें संस्कृति छेवा ॥
ॐ ह्रीं श्री चन्द्रेण स्वपरिवार सहितेन पाद पद्मार्चिताय जिननाथाय तथैव वर प्रदाय श्री शान्तिनाथाय जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ||१९||
इन्द्र सुभास्कर हे तेजस्वी, जिन पद प्रीति लगाये । हेम थाल में द्रव्य सजाकर, पूजे शीष नमावे |
शान्तिनाथ पंचम चक्रीश्वर, द्वादश काम सुदेवा । षोड़स तीर्थकर हम पूजे होवें संस्कृति छेवा ॥
ॐ ह्रीं श्री सुभास्करेन्द्रेण स्वपरिवार सहितेन पाद पद्मार्थिताय जिननाथाय तथैव वर प्रदाय श्री शान्तिनाथाय जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ||२०||
सौ धर्मेन्द्र सु पुलकित मन से, श्री जिन चैवर दुलावे । हेम थाल में द्रव्य सजाकर, पूजे शीष नमावे ॥
शान्तिनाथ पंचम चक्रीश्वर, द्वादश काम सुदेवा । षोड़स तीर्थकर हम पूजे होवें संस्कृति छेवा ॥
ॐ ह्रीं श्री सौधर्मेन्द्रेण स्वपरिवार सहितेन पाद पद्मार्थिताय जिननाथाय तथैव वर प्रदाय श्री शान्तिनाथाय जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ||२१||
ईशानेन्द्र सु हर्ष हर्ष कर, आवे चँवर दुलावे । हेम थाल में द्रव्य सजाकर, पूजे शीष नमावे ।।
शान्तिनाथ पंचम चक्रीश्वर, द्वादश काम सुदेवा । षोड़स तीर्थकर हम पूजे होवें संस्कृति छेवा ॥
ॐ ह्रीं श्री ईशानेन्द्रेण स्वपरिवार सहितेन पाद पद्मार्थिताय जिननाथाय तथैव वर प्रदाय श्री शान्तिनाथाय जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ||२२||
सनत कुमार सु देव चरण में, झुकि झुकि शीष नमावे | हेम थाल में द्रव्य सजाकर, पूजे शीष नमावे ॥
शान्तिनाथ पंचम चक्रीश्वर, द्वादश काम सुदेवा । षोड़स तीर्थकर हम पूजे होवें संस्कृति छेवा ॥
ॐ ह्रीं श्री सनत्कुमारेण स्वपरिवार सहितेन पाद पद्मार्थिताय जिननाथाय तथैव वर प्रदाय श्री शान्तिनाथाय जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥ २३ ॥
माहेन्दर भी भक्ति रस में जिन वन्दन को आवे । हेम थाल में द्रव्य सजाकर, पूजे शीष नमावे ||
शान्तिनाथ पंचम चक्रीश्वर, द्वादश काम सुदेवा । षोड़स तीर्थकर हम पूजे होवें संस्कृति छेवा ॥
ॐ ह्रीं श्री माहेन्द्रेण स्वपरिवार सहितेन पाद पद्मार्थिताय जिननाथाय तथैव वर प्रदाय श्री शान्तिनाथाय जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ||२४||
सद्बुद्धि लेकर ब्रह्मेन्दर, सह परिवार जु आवे । हेम थाल में द्रव्य सजाकर, पूजे शीष नमावे |
शान्तिनाथ पंचम चक्रीश्वर, द्वादश काम सुदेवा । षोड़स तीर्थकर हम पूजे होवें संस्कृति छेवा ॥
ॐ ह्रीं ब्रह्मेन्द्रेण स्वपरिवार सहितेन पाद पद्मार्थिताय जिननाथाय तथैव वर प्रदाय श्री शान्तिनाथाय जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ||२५||
लान्तवेन्द्र जी माया तजकर जिन गुण गा हर्षावे । हेम थाल में द्रव्य सजाकर, पूजे शीष नमावे ||
शान्तिनाथ पंचम चक्रीश्वर, द्वादश काम सुदेवा । षोड़स तीर्थकर हम पूजे होवें संस्कृति छेवा ॥
ॐ ह्रीं श्री लान्तवेन्द्रेण स्वपरिवार सहितेन पाद पद्मार्थिताय जिननाथाय तथैव वर प्रदाय श्री शान्तिनाथाय जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ||२६||
भक्ति भाव से बह शुक्रेन्दर बैठ विमानों आवे । हेम थाल में द्रव्य सजाकर, पूजे शीष नमावे ।।
शान्तिनाथ पंचम चक्रीश्वर, द्वादश काम सुदेवा । षोड़स तीर्थकर हम पूजे होवें संस्कृति छेवा ॥
ॐ ह्रीं श्री शुक्रेन्द्रेण स्वपरिवार सहितेन पाद पद्मार्चिताय जिननाथाय तथैव वर प्रदाय श्री शान्तिनाथाय जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ||२७||
शतारेन्द्र जिन पद में आकर, भक्ति को दर्शावे । हेम थाल में द्रव्य सजाकर, पूजे शीष नमावे ॥
शान्तिनाथ पंचम चक्रीश्वर, द्वादश काम सुदेवा । षोड़स तीर्थकर हम पूजे होवें संस्कृति छेवा ॥
ॐ ह्रीं श्री शतारेन्द्रेण स्वपरिवार सहितेन पाद पद्मार्थिताय जिननाथाय तथैव वर प्रदाय श्री शान्तिनाथाय जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ||२८||
सम्यग्दृष्टि आनत शक्र जिनको मन से ध्यावे | हेम थाल में द्रव्य सजाकर, पूजे शीष नमावे ।
शान्तिनाथ पंचम चक्रीश्वर, द्वादश काम सुदेवा । षोड़स तीर्थकर हम पूजे होवें संस्कृति छेवा ॥
ॐ ह्रीं श्री आनतेन्द्रेण स्वपरिवार सहितेन पाद पद्मार्थिताय जिननाथाय तथैव वर प्रदाय श्री शान्तिनाथाय जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ||२९||
बाजे बजाकर नानाविधि के, प्राणतेन्द्र गुण गावे । हेम थाल में द्रव्य सजाकर, पूजे शीष नमावे ।।
शान्तिनाथ पंचम चक्रीश्वर, द्वादश काम सुदेवा । षोड़स तीर्थकर हम पूजे होवें संस्कृति छेवा ॥
ॐ ह्रीं श्री प्राणतेन्द्रेण स्वपरिवार सहितेन पाद पद्मार्चिताय जिननाथाय तथैव वर प्रदाय श्री शान्तिनाथाय जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ||३०||
आरणेन्द्र भी मन वच तन से, स्तुति पढ़े हर्षावे । हेम थाल में द्रव्य सजाकर, पूजे शीष नमावे ।।
शान्तिनाथ पंचम चक्रीश्वर, द्वादश काम सुदेवा । षोड़स तीर्थकर हम पूजे होवें संस्कृति छेवा ॥
ॐ ह्रीं श्री आरणेन्द्रेण स्वपरिवार सहितेन पाद पद्मार्चिताय जिननाथाय तथैव वर प्रदाय श्री शान्तिनाथाय जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ||३१||
स्वर्ग अच्युत के इन्द्र सुआकर, जिन पद प्रीति लगावे । हेम थाल में द्रव्य सजाकर, पूजे शीष नमावे ।।
शान्तिनाथ पंचम चक्रीश्वर, द्वादश काम सुदेवा । षोड़स तीर्थकर हम पूजे होवें संस्कृति छेवा ॥
ॐ ह्रीं श्री अच्युतेन्द्रेण स्वपरिवार सहितेन पाद पद्मार्चिताय जिननाथाय तथैव वर प्रदाय श्री शान्तिनाथाय जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ||३२||
भुजंग प्रयास पूर्णार्घ्य
भावन तथा व्यन्तर ज्योतिषि देवा । करे स्वर्ग वासी है जिनकी सु सेवा ।।
आकर के इन्द्र ये बत्तीस नामी । पूजन करे तब शान्तीश स्वामी ||३३||
ॐ ह्रीं श्री चतुर्णिकाय देवेन्द्र पूजित श्री शांतिनाथाय पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ||३३||
गीता
घूमते हैं देवता गण यत्र तत्र सु राजते । भक्ति कर जिनदेव की ये जन्म उत्तम मानते ॥
आइये इस यज्ञ शांतिनाथ की पूजा करें । जन्म मृत्यु वृद्ध के ये शीघ्र ही संकट टरे ॥
दोहा
देव चतुर्णिकाय के भ्रमत भ्रमत भूमाहिं । करे भक्ति जिन देवकी मनमें हर्ष बढ़ाहि ।
दोहा
मन वच तन कर पूजता षोड़श जिन महाराज । पुत्र मित्र सम्पत्ति बढ़े सरे सकल सब काज ॥
इति चतुः षष्टिकोष्टोपरिः पुष्पाञ्जलि क्षिपेत ॥
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