पूजा

प्रथम वलय

द्वितीय वलय

अथ तृतीय वलय

जोगीराश ३२ अर्ध्य

इन्द्र चतुर्विध काय जिनालय, भक्ति भाव से आवे । संघ में लावे निज परिकर को, मन में हर्ष बढ़ावे ॥

सम्यक दर्शन जिन पूजन से होवे पावन भाई । पद पंकज को पूजो याते, शांतिनाथ जिन राई ॥

इति पुष्पांजलि क्षिपेत्.

दोहा – देव चतुर्णि काय के आये हर्ष बढ़ाय । लेकर निज परिवार को पूजा भाव रचाय ॥

इन्द्र असुर कुमार, सुजाती, लेकर निज परिवारा । अष्ट द्रव्य ले मन्दिर जाकर पूजे भक्ति अपारा ||

शान्तिनाथ पंचम चक्रीश्वर, द्वादश काम सुदेवा । षोड़स तीर्थकर हम पूजे होवें संस्कृति छेवा ॥

ॐ ह्रीं असुरेन्द्र कुमारेण स्वपरिवार सहितेन पाद पद्मार्चिताय जिननाथाय तथैव वर प्रदाय श्री शान्तिनाथाय जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥ १ ॥

निज परिवार सहित धरणेन्द्र, भक्ति भाव गुण गावे । अष्ट द्रवव्य ले मंदिर आये, पूजे हर्ष बढ़ावे | शाँतिनाथ पंचम …

ॐ ह्रीं धरणेन्द्रकुमारेण स्वपरिवार सहितेन पाद पद्मार्चिताय जिननाथाय तथैव वर प्रदाय श्री शान्तिनाथाय जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥ 2॥

भक्ति भाव से इन्द्र सुपर्णा, बैठ विमान जो आवे । अष्ट द्रव्य का थाल सजाकर, पूजे जिन गुण गावे || शाँतिनाथ पंचम …

श्री ह्रीं श्री सुपर्णेन्द्र कुमारेण स्वपरिवार सहितेन पाद पद्मार्चिताय जिन नाथाय तथैव वर प्रदाय श्री शान्तिनाथाय जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥3॥

ले द्वीपेन्द्र सहित कुटुम्बी, मान गलित हो आवे । हेम थाल में द्रव्य सजाकर पूजे शीष नमावे ।। शान्तिनाथ पंचम …

ॐ ह्रीं श्री द्वीपेन्द्र कुमारेण स्वपरिवार सहितेन पादपद्मार्चिताय जिननाथाय तथैव वर प्रदाय श्री शान्तिनाथाय जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ||4||

वह उदधीन्द्रा निज परिकर सह, भक्ति हिये घर आवे । हेम थाल में द्रव्य सजाकर पूजे शीष नमावे | शाँतिनाथ पंचम …

ॐ ह्रीं श्री उदधीन्द्रेण स्वपरिवार सहितेन पाद पद्मार्चिताय जिननाथाय तथैव पर प्रदाय श्री शान्तिनाथाय जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ||५||

स्तनित कुमार सु सह परिवारा, नाच नाच कर आवे । हेम थाल में द्रव्य सजाकर पूजे शीष नमाये । शाँतिनाथ पंचम …

ॐ ह्रीं श्री स्तनिततेन्द्रेण स्वपरिवार सहितेन पादपद्मार्चिताय जिननाथाय तथैव वर प्रदाय श्री शान्तिनाथाय जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥6॥

कुमार सुविद्युत्शक्र, जिनेश्वर, भक्ति करे हर्षावे । हेम थाल में द्रव्य सजाकर पूजे शीष नमाये । शाँतिनाथ पंचम …

ॐ ह्रीं श्री विद्युत्कुमारेन्द्रेण स्वपरिवार सहितेन पादपद्मार्चिताय जिननाथाय तथैव वर प्रदाय श्री शान्तिनाथाय जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ||7||

दिककुमार सु सहित कुटुम्बी, भक्ति करे सुख पाये । हेम थाल में द्रव्य सजाकर पूजे शीष नमाये । शाँतिनाथ पंचम …

ॐ ह्रीं श्री दिककुमारेद्रेण स्वपरिवार सहितेन पादपद्मार्चिताय जिननाथाय तथैव वर प्रदाय श्री शान्तिनाथाय जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा॥8॥

पावक इन्द्र सु भक्ति हिए में, धरकर पाप खपावे । हेम थाल में द्रव्य सजाकर पूजे शीष नमावे ॥ शांतिनाथ पंचम ….

ॐ ह्रीं श्री अग्रिन्द्रेण स्वपरिवार सहितेन पादपद्मार्चिताय जिननाथाय तथैव वर प्रदाय श्री शान्तिनाथाय जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥9॥

वायु कुमार सुसंघ कुटुम्बी, सम मन कर जिन ध्यावे । हेम थाल में द्रव्य सजाकर पूजे शीष नमावे ॥ शाँतिनाथ पंचम …

ॐ ह्रीं श्री वातकुमारेण स्वपरिवार सहितेन पाद पद्मार्चिताय जिननाथाय तथैव वर प्रदाय श्री शान्तिनाथाय जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ||10||

किन्नर इन्द्र सु ले परिवारा, छम छम छम कर आये। हेम थाल में द्रव्य सजाकर पूजे शीष नमावे । शाँतिनाथ पंचम….

ॐ ह्रीं श्री किन्नरेन्द्रेण स्वपरिवार सहितेन पाद पद्मार्चिताय जिननाथाय तथैव पर प्रदाय श्री शान्तिनाथाय जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ||11||

किं पुरुषेन्द्र सुनाम सुशोभित, भक्ति करे सुख पाये । | हेम थाल में द्रव्य सजाकर पूजे शीष नमावे ।। शाँतिनाथ पंचम ….

ॐ ह्रीं श्री किंपुरुषेन्द्रेण स्वपरिवार सहितेन पाद पद्मार्चिताय जिननाथाय तथैव वर प्रदाय श्री शान्तिनाथाय जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ||12||

महोरगेन्द्र सु ले परिवारा, स्तुति करे हर्षावे । हेम थाल में द्रव्य सजाकर, पूजे शीष नमावे ।। शांतिनाथ पंचम….

ॐ ह्रीं श्री महोरगेन्द्रेण स्वपरिवार सहितेन पाद पद्मार्चिताय जिननाथाय तथैव वर प्रदाय श्री शान्तिनाथाय जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ||13||

गन्धर्वो के इन्द्र सुभाई, निज परिवारसु लावे ।  हेम थाल में द्रव्य सजाकर, पूजे शीष नमाये ।।

शांतिनाथ पंचम-

ॐ ह्रीं श्री गन्धर्वेन्द्रेण स्वपरिवार सहितेन पाद पद्मार्थिताय जिननाथाय तथैव वरप्रदाय श्री शांतिनाथाय जलादि अध्यं निर्वपामीति स्वाहा ||१४||

यक्षमघा भी मन वच तन से, शुद्ध होय जिन ध्यावे । हेम थाल में द्रव्य सजाकर, पूजे शीष नमावे ।। शाँतिनाथ पंचम …

ॐ ह्रीं श्री यक्षेन्द्रेण स्वपरिवार सहितेन पाद पद्मार्थिताय जिननाथाय तथैव वर प्रदाय श्री शान्तिनाथाय जलादि अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा ||१५||

इन्द्रसुराक्षस सदबुद्धिधर कुपरिणति को गमावे । हेम थाल में द्रव्य सजाकर, पूजे शीष नमावे ।। शाँतिनाथ पंचम …

ॐ ह्रीं श्री राक्षसेन्द्रेण स्वपरिवार सहितेन पाद पद्मार्चिताय जिननाथाय तथैव वर प्रदाय श्री शान्तिनाथाय जलादि अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा ||१६||

तृतीय वलय-17 से 32 अर्घ्य

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