प्रतिष्ठाचार्य ब्र. सूरजमल जैन

पूजा

प्रथम वलय

द्वितीय वलय

तृतीय वलय 1 से 16 अर्घ्य

तृतीय वलय-17 से 32 अर्घ्य

चतुर्थ वलय -1 से 16 अर्घ्य

चतुर्थ वलय -17 से 32 अर्घ्य

★ जोगी राशा ★

त्रिभुवन हितकर गुण मणि आकर शिव सुखदायक तुम हो । तीर्थकर चक्रीपद भूषित कामदेव भी तुम हो ॥

चरण कमल जिन शाँति प्रभु के मन हर द्रव्य सजाकर । पूजे मन वच कार्य शुद्ध कर निवसे शिवपुर जाकर ||

ॐ ह्रीं सम्पूर्ण कल्याण मंगल प्रदाय श्री शांतिनाथाय जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ||३३||

सुख सागर अरु ज्ञान सु केवल वांछित वस्तु देवे । ऐसी जिनवर की जो पूजन मन यच तन कर लेवे ॥

तीनों पद से युक्त जिनेश्वर, मायात्यज जो ध्यावे । कर्म नाश कर शिवपुर जावे, मुक्ति पति कहलावे  ।।

ॐ ह्रीं चिन्तामणि समान चिन्तितफलप्रदाय श्री शांतिनाथाय जलादि अर्घ्यं निर्वपामति स्वाहा ||३४||

भव तप नाशक ज्ञान प्रकाशक कल्पवृक्ष सम दानी । ऐसी जिनवर की जो पूजन मन से करता प्राणी ॥

तीनों पद से युक्त जिनेश्वर, मायात्यज जो ध्यावे । कर्म नाश कर शिवपुर जावे, मुक्ति पति कहलावे  ।।

ॐ ह्रीं कल्पवृक्षोपमाकल्पितार्थ फलप्रदाय श्री शांतिनाथाय जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ||३५||

काम धेनु सम नाम जिन्हों का और मनोरथ पूरे । ऐसी जिनवर की जो पूजन करता कल्मष चूरे ।।

तीनों पद से युक्त जिनेश्वर, मायात्यज जो ध्यावे । कर्म नाश कर शिवपुर जावे, मुक्ति पति कहलावे  ।।

ॐ ह्रीं कामधेनुपमाकामनापूर्ण फलप्रदाय श्री शांतिनाथाय जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ||३६||

धर्म धुरन्धर ध्यानी स्वामी मुनिगण चित में धारे । ऐसी जिनवर की जो पूजन करते भव दुख टारे ॥

तीनों पद से युक्त जिनेश्वर, मायात्यज जो ध्यावे । कर्म नाश कर शिवपुर जावे, मुक्ति पति कहलावे  ।।

ॐ ह्रीं परमोज्वल धर्मध्यान बाधा रहित अवधबोधप्रदाय श्री शांतिनाथाय जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ||३७||

तीन लोक के नेत्र जिनेश्वर, शुभ तन विस्मयकारी । पूज करे जो मन वच तन से, होवे भव दुख टारी

तीनों पद से युक्त जिनेश्वर, मायात्यज जो ध्यावे । कर्म नाश कर शिवपुर जावे, मुक्ति पति कहलावे  ।।

ॐ ह्रीं कामदेव स्वरूप प्रदाय श्री शांतिनाथाय जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ||३८||

सौरभ जिनके शुभ तन मांही, और पदारथ नाई । देव इन्द्र मिल उत्सव करते, पूजे उत्तम भाई ||

तीनों पद से युक्त जिनेश्वर, मायात्यज जो ध्यावे । कर्म नाश कर शिवपुर जावे, मुक्ति पति कहलावे  ।।

ॐ ह्रीं सुगन्ध शरीरयुक्त भव प्रदाय श्री शांतिनाथाय जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ||३९||

भामण्डल भास्कर वत चमके, भविजन आनन्दकारी । हुए त्रिलोकी नेत्र सु स्वामी पूजे हम सुखकारी ॥

तीनों पद से युक्त जिनेश्वर, मायात्यज जो ध्यावे । कर्म नाश कर शिवपुर जावे, मुक्ति पति कहलावे  ।।

ॐ ह्रीं त्रैलोक्यनाथाह्लादकारक पदप्रदाय श्री शांतिनाथाय जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ||४०||

क्षीरोदधिसम धवल सु जिन गुण, देव भक्ति से गावे । उत्तम सद्गुण पाने हेतु, भगवन् पूज रचावे ॥

तीनों पद से युक्त जिनेश्वर, मायात्यज जो ध्यावे । कर्म नाश कर शिवपुर जावे, मुक्ति पति कहलावे  ।।

ॐ ह्रीं परमोज्वलगुण गण सहित पद प्रदाय श्री शांतिनाथाय जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ||४१||

विद्वदरत्न गुणों को धारे, तत्व प्रकाशन हारी । वाचस्पति सम पदवी पावे, प्रभू जो पूजे पुजारी ॥

तीनों पद से युक्त जिनेश्वर, मायात्यज जो ध्यावे । कर्म नाश कर शिवपुर जावे, मुक्ति पति कहलावे  ।।

ॐ ह्रीं वाचस्पति समान पद प्रदाय श्री शांतिनाथाय जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ||४२||

नवनिधि स्वामी रत्न चतुर्दश, षड खंडाधिप होवे । देव मनुज खग नमत सुपद युग, जिन पूजन से होवे ।

तीनों पद से युक्त जिनेश्वर, मायात्यज जो ध्यावे । कर्म नाश कर शिवपुर जावे, मुक्ति पति कहलावे  ।।

ॐ ह्रीं चक्रवर्ती पदप्रदाय श्री शांतिनाथाय जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ||४३||

मन को प्यारी सद्गुण वाली, दोनों कुल विकसाती । रूपवती हो पुत्रवती हो जिनके जो गुण गाती ॥

तीनों पद से युक्त जिनेश्वर, मायात्यज जो ध्यावे । कर्म नाश कर शिवपुर जावे, मुक्ति पति कहलावे  ।।

ॐ ह्रीं उभयकुलकमल विकाशन सुर्या शुसमाचरण प्रतिष्ठित गुण मंडित अत्यन्त सुन्दराकृति पुत्रवन्ति मंडन पद प्रदाय श्री शांतिनाथाय जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ||४४||

देव अर्चनादिक षटगुण के, धारी श्रावक होवे बुद्धिवान हो व्रतधारी हो, जो जिन पूजक होये ।

तीनों पद से युक्त जिनेश्वर, मायात्यज जो ध्यावे । कर्म नाश कर शिवपुर जावे, मुक्ति पति कहलावे  ।।

ॐ ह्रीं श्रावक सद्वृत्तकरण बुद्धि पदप्रदाय श्री शान्तिनाथाय जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ||४५||

शरद् ऋतु की पूर्ण चाँदनी, सब जन आनन्दकारी । तद समकीर्ति होवे जग में, शान्ति प्रभु के पुजारी ॥

तीनों पद से युक्त जिनेश्वर, मायात्यज जो ध्यावे । कर्म नाश कर शिवपुर जावे, मुक्ति पति कहलावे  ।।

ॐ ह्रीं परमोज्वलकीर्ति पदप्रदाय श्री शांतिनाथाय जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥ ४६ ॥

 होवे अटूटी सम्पत सारी, धनदोपम कहलावे । दानवीर पद नर ले पावे, अर्चन करने जावे ॥

तीनों पद से युक्त जिनेश्वर, मायात्यज जो ध्यावे । कर्म नाश कर शिवपुर जावे, मुक्ति पति कहलावे  ।।

ॐ ह्रीं गर्वरहित परमलक्ष्मी पदप्रदाय श्री शांतिनाथाय जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ||४७||

पशु नारक कुगति नहीं जाये, गावे प्रभु गुण भाई । नर सुर उत्तमगति परलोका, जो पूजे जिनराई ॥

तीनों पद से युक्त जिनेश्वर, मायात्यज जो ध्यावे । कर्म नाश कर शिवपुर जावे, मुक्ति पति कहलावे  ।।

ॐ ह्रीं नरकतिर्यच गति रहित नरसुरगति सहित भव प्रदाय श्री शांतिनाथाय जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥४८॥

चतुर्थ वलय – 49 से 64 अर्घ्य

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3 thoughts on “चतुर्थ वलय -33 से 48 अर्घ्य शांतिनाथ विधान

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