प्रतिष्ठाचार्य ब्र. सूरजमल जैन

पूजा

प्रथम वलय

द्वितीय वलय

तृतीय वलय 1 से 16 अर्घ्य

तृतीय वलय-17 से 32 अर्घ्य

चतुर्थ वलय -1 से 16 अर्घ्य

चतुर्थ वलय -17 से 32 अर्घ्य

चतुर्थ वलय -33 से 48 अर्घ्य

दुर्लभ है तीर्थकर पदवी, भवन तीन में सोहै । सोलह कारण भावन अरु, जिन पूजन से वह हो है ।

तीनों पद से युक्त जिनेश्वर, मायात्यज जो ध्यावे । कर्म नाश कर शिवपुर जावे, मुक्ति पति कहलावे  ।।

ॐ ह्रीं षोड़शकारण भावना साधनबल पदप्रदाय श्री शांतिनाथाय जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा || 49 ||

तीर्थकर माता सम होवे, षोड़स स्वप्ने देखे । देव देवियाँ सेवा करते, पूजे हर्ष विशेखे ॥

तीनों पद से युक्त जिनेश्वर, मायात्यज जो ध्यावे । कर्म नाश कर शिवपुर जावे, मुक्ति पति कहलावे  ।।

ॐ ह्रीं जिनजननीतुल्यैक जननीपदप्रदाय श्री शांतिनाथाय जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ||50 ||

मेरु शिखर पर हो अभिषेक ऐसी पदवी पाये । सुमन सुमनियाँ उत्सव करते, पूजन से लो. लावे ।

तीनों पद से युक्त जिनेश्वर, मायात्यज जो ध्यावे । कर्म नाश कर शिवपुर जावे, मुक्ति पति कहलावे  ।।

ॐ ह्रीं मेरू शिखरे स्नानयुक्त पदप्रदाय श्री शांतिनाथाय जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ||51 ||

सिद्ध साक्षी से दीक्षा होती, जो अनन्त सुखकारी । ऐसा नरभव पाके भविजन, पूजे प्रभु अविकारी ॥

तीनों पद से युक्त जिनेश्वर, मायात्यज जो ध्यावे । कर्म नाश कर शिवपुर जावे, मुक्ति पति कहलावे  ।।

ॐ ह्रीं सिद्ध साक्षीदीक्षाकारीभवप्रदाय श्री शांतिनाथाय जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ||52||

मुक्ति प्रदायक उत्तम संहनन, युक्त शरीर सु होवे । पुण्यवान वह है इस जग में, जिन पूजन रत होवे ।

तीनों पद से युक्त जिनेश्वर, मायात्यज जो ध्यावे । कर्म नाश कर शिवपुर जावे, मुक्ति पति कहलावे  ।।

ॐ ह्रीं ब्रजवृषमनाराचसंहननमुक्तिप्रदाय श्री शांतिनाथाय जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति  स्वाहा ||53||

रत्नत्रय सुसज्जित होवे, यथाख्यात हो भाई । पालन की शक्ति हो जावे, जिन पूजन सुखदायी ॥

तीनों पद से युक्त जिनेश्वर, मायात्यज जो ध्यावे । कर्म नाश कर शिवपुर जावे, मुक्ति पति कहलावे  ।।

ॐ ह्रीं यथाख्यातरत्नत्रयाचरणयुक्त बलप्रदाय श्री शांतिनाथाय जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति  स्वाहा ||54||

चेतन आतम ध्यान सु अमृत, स्वाद जहाँ पर आवे । ऐसा योग मिले भव सुन्दर, प्रभु पूजन से पावे ॥

तीनों पद से युक्त जिनेश्वर, मायात्यज जो ध्यावे । कर्म नाश कर शिवपुर जावे, मुक्ति पति कहलावे  ।।

ॐ ह्रीं स्वात्मध्यानामृत स्वादसहित भवप्रदाय श्री शांतिनाथाय जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ||55||

देव भी पावन समवशरण में बैठे भव्य अशोक । धर्मामृत को पान करत है, पूजे जिन दे ढोक ।।

तीनों पद से युक्त जिनेश्वर, मायात्यज जो ध्यावे । कर्म नाश कर शिवपुर जावे, मुक्ति पति कहलावे  ।।

ॐ ह्रीं समवशरणविभूति पदप्रदाय श्री शांतिनाथाय जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ||56||

दिव्य ध्वनि खिरती चतुवार रात दिवस जिन सोई । ऐसी शक्ति प्रभु पूजन से नमन करे सो होई ॥

तीनों पद से युक्त जिनेश्वर, मायात्यज जो ध्यावे । कर्म नाश कर शिवपुर जावे, मुक्ति पति कहलावे  ।।

ॐ ह्रीं सत्केवल ज्ञानविभूति पदप्रदाय श्री शांतिनाथाय जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ||57||

अष्टकर्म से रहित जिनेश्वर, गुण आठों सुखदायी । सिद्ध निरंजन पदवी पावे, जो पूजे जिनराई ॥

तीनों पद से युक्त जिनेश्वर, मायात्यज जो ध्यावे । कर्म नाश कर शिवपुर जावे, मुक्ति पति कहलावे  ।।

ॐ ह्रीं निरंजन पदप्रदाय श्री शांतिनाथाय जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।। 58 ।

पद पंकज श्री शान्ति प्रभु के भन को समरस देते । मनरंजन सु पाय निरंजन, पूजन शिवपद लेते ॥

तीनों पद से युक्त जिनेश्वर, मायात्यज जो ध्यावे । कर्म नाश कर शिवपुर जावे, मुक्ति पति कहलावे  ।।

ॐ ह्रीं मनोन्दकरण समर्थाय श्री शांतिनाथाय जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।। 59 ।

शाँति प्रदायक वचन जिनेश्वर, सकल अङ्ग से निकले । स्तवन करे जिनवर का भविजन, नष्ट हो कल्मष सकले ।।

तीनों पद से युक्त जिनेश्वर, मायात्यज जो ध्यावे । कर्म नाश कर शिवपुर जावे, मुक्ति पति कहलावे  ।।

ॐ ह्रीं वचनान्दरकरणसमर्थाय श्री शांतिनाथाय जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ||60||

नग्न दिगम्बर परम सु सुन्दर, प्रभुतन आनन्द दाता । दर्शन से भविकल्मष नाशे, पूजे जिन गुण गाता ॥

तीनों पद से युक्त जिनेश्वर, मायात्यज जो ध्यावे । कर्म नाश कर शिवपुर जावे, मुक्ति पति कहलावे  ।।

ॐ ह्रीं कायानन्दकरण समर्थाय श्री शांतिनाथाय जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ||61||

प्रभु पूजन से शिव सुख मिलता, जो जन मन से ध्यावे । अर्थ वर्ग साधन फल हो तो, विस्मय नाही कहावे ॥

तीनों पद से युक्त जिनेश्वर, मायात्यज जो ध्यावे । कर्म नाश कर शिवपुर जावे, मुक्ति पति कहलावे  ।।

ॐ ह्रीं अर्थवर्गसिद्ध साधनकरण श्री शांतिनाथाय जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ||62||

 प्रभु पूजन से शिव सुख मिलता, भक्ति से गुण गावे । काम वर्ग साधन फल हो तो, विस्मय नाही कहावे ॥

तीनों पद से युक्त जिनेश्वर, मायात्यज जो ध्यावे । कर्म नाश कर शिवपुर जावे, मुक्ति पति कहलावे  ।।

ॐ ह्रीं कामवर्गसाधनकरणसमर्थाय श्री शांतिनाथाय जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ||63||

 प्रभु पूजन से शिव सुख मिलता, मगन होय जो करता । सिद्ध होय साधन सब विधि का, भवि विस्मय क्यों धरता ॥

तीनों पद से युक्त जिनेश्वर, मायात्यज जो ध्यावे । कर्म नाश कर शिवपुर जावे, मुक्ति पति कहलावे  ।।

ॐ ह्रीं मोक्षवर्गसाधन सिद्धकरण समर्थाय श्री शांतिनाथाय जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति  स्वाहा ||64||

चतुषष्ठी ऋद्धी के स्वामी, हो अनन्त गुण धारी । देवों के हो देव जिनेश्वर, पूजूं भक्ति प्रसारी ॥

तीनों पद से युक्त जिनेश्वर, मायात्यज जो ध्यावे । कर्म नाश कर शिवपुर जावे, मुक्ति पति कहलावे  ।।

ॐ ह्रीं चतुःषष्ठिऋद्धिसमानगंगाय श्री शांतिनाथाय जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।। 65 ।।

पूर्णार्घ्यं

दोहा – शून्य नेत्र शशि तुल्य जो संख्या वाले देव । शान्तिकरण दुख हरण है पूरण अर्ध सदैव ॥

ॐ ह्रीं शतैकविंशति अंगाय पूर्णाय निर्वपामीति स्वाहा ॥ 66 ॥

गीता

अरहन्त बिन इन देह धारी, को शरण नहीं अन्य है | जो जिनेश्वर शाँति प्रभु हम, हृदय तुम बिन शून्य है ||

ज्यों समुद्र तैरने, संसार में, वर नाव है | त्यों भवोदधि पार जाने, भक्ति जिन यह भाव है ॥67॥

इति पुष्पांजलिक्षिपतेः

जाप & जयमाला

English Translation

49. The path of a Tirthankar is rare; it shines in the three realms. With sixteen auspicious attributes, devotion to Jina alone, who, with all three qualities, resides in his abode, one attains liberation.

Merged with all three realms, O Lord of Jinas, one who contemplates on transcending Maya, destroys karma and reaches the city of Shiva is called the Lord of Liberation

50. The Tirthankar, like the mother, has sixteen dreams. They worship the gods and goddesses and celebrate with great joy. Merged with all three realms …

51. May you receive such an anointment at the summit of Mount Meru. Let the fragrant flowers celebrate, and offer your devotion. Merged with all three realms …

52. Initiation takes place from the perfected witness, who bestows endless happiness. When such a person attains human birth, they worship the unchanging Lord. Merged with all three realms …

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3 thoughts on “चतुर्थ वलय -49 से 64 अर्घ्य शांतिनाथ विधान

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