प्रतिष्ठाचार्य ब्र. सूरजमल जैन

पूजा

प्रथम वलय

द्वितीय वलय

तृतीय वलय 1 से 16 अर्घ्य

तृतीय वलय-17 से 32 अर्घ्य

चतुर्थ वलय -1 से 16 अर्घ्य

चतुर्थ वलय -17 से 32 अर्घ्य

चतुर्थ वलय -33 से 48 अर्घ्य

चतुर्थ वलय – 49 से 64 अर्घ्य

जाप

ॐ ह्रीं शाँतिनाथाय जगत् शाँतिकराय सर्वोपद्रवशांति कुरु कुरु ह्रीं नमः स्वाहा ||

(जातिपुष्प या लवंग से १०८ जाप देवें)

★ गीता ★

जय होत  पंचम चक्रवर्ती बारवे रति ईशजी । गुण  गण   अधीशं  तीर्थकर  हो  सोलवे शांतीशजी ॥

पूजते  भव  भय   विनाशक  आपको जिन देवजी । नमन करते पद कमल में  गात गुण महादेवजी ॥

दोहा-

 कामदेव चक्रीशजी हो तीर्थकर आप ।  गाऊँ तय गुणमालिका मिटे सकल संताप ॥

अथ जयमाला

त्रोटक

जय हस्तिनागपुर जनम जिनं । हो बाल सूर्य सम आप जिनं ॥

जय माता एरादेवी जिनं । जय विश्वसेन है पितृ जिनं ||१||

जय हेम वर्ण तन आप लखा । जय धनु चालीस उतंग भखा ||

हो चक्रवर्ती षट् खण्डाधिप । जय कामदेव हो आप महिप ||२||

जय षोड्ष तीर्थकर जु बने । इन पदवी त्रय से आप सने ॥

कुछ कारण पाकर शाँति जिनं । वैराग्य हुआ है आप जिनं ||३||

जय दूर्धर तप प्रभु आप किया । जय दुष्ट कर्म चकचूर किया ||

जय शुक्ल ध्यान में आप लीन । जय अरिरज रहस विनास कीन ||४||

जय समवशरण उपदेश दिया । जय भव्य कमल विकसाय दिया ||

जय नष्ट किये अवशेष कर्म । जय मुक्ति रमा के परम शर्म ||५||

जय भव सागर के पोत जिनं । जय कर्म विपाटक शाँति जिनं ॥

जय विघ्न विनाशक शाँति जिनं । जय मोह प्रहारक शाँति जिनं ॥६॥

जय श्रेष्ठ गुणों के धारक हो ।’ जय मंगलमय शुभकारक हो ।

जय भवि हित हेतुक आप जिनं । जय मन्मथ मारक शाँति जिनं ॥७॥

जय वज्रपाप के खण्डक हो । वृषस्याद्वाद के मण्डक हो ।

जय केवल ज्ञान सुभास्कर हो । जय नयनकमल के विभाकर हो ||८||

 जय सम्यक् साधन आप जिनं । जय सुगति प्रदायक शांति जिनं ॥

जय कुगति गमन के अर्गल हो । जय दुख दावानल के जल हो ||९||

 जय शांतिनाथ जगसात समं । हो भवन तीन के पितृ समं ॥

जय परहितकारी शाँति जिनं । जय भवहित देशक शाँति जिनं ||१०||

जय नाना रोग रु शोक हरा । जय संपति विपुलसु आप करा ॥

जय शिव सुख दाता शाँति जिनं । जय भव भय हरता शाँति जिनं ||११||

जय गर्व विनाशक शाँति जिनं । जय बहु गुणदाता शाँति जिनं ॥

जय ग्रह बाधा दुख नाशक हो । जय अहिष्यालादि भगायक हो ||१२||

जय भव्य कमल बोधन दिनेश । जय आनन्दकारक हो जिनेश ||

जय ब्रह्मा विष्णु महेश जिनं । जय शंकर शंकर शाँति जिनं ||१३||

 जय तारण तरण सु आप नाथ । ब्रह्म सूरज को दो चरण साथ ||

यह अर्जी हमारी बार बार । सुन लीजो दीनानाथ सार ||१४||

घत्ता

श्री शाँति महंता गुणगण वंता, शिवतियकंता सौख्यकरा ॥

हम पूजे ध्यावे दुरित नशावे, शिव पद पावे दुक्ख हरा ||१५||

ॐ ह्रीं श्री शांतिनाथाय जयमाला पूर्णाय निर्वपामीति स्वाहा ||

दोहा-

भ्रमत फिरे संसार में जीव अनादि काल । जिन पूजन सुत निधि मिले कर्म कटे तत्काल ॥

अडिल्ल

फँसे अनादि काल कर्म में जीव जी । अर्जन करते पाप सदा ही अतीव

जिन पूजन से कटे महा भवताप जी। पुत्र मित्र शिव होय नहीं संताप जी ||

शांतिनाथ विधान डाउनलोड करें ( Download shantinath vidhan PDF)

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2 thoughts on “जाप & जयमाला – शांतिनाथ विधान

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