प्रतिष्ठाचार्य ब्र. सूरजमल जैन
जाप
ॐ ह्रीं शाँतिनाथाय जगत् शाँतिकराय सर्वोपद्रवशांति कुरु कुरु ह्रीं नमः स्वाहा ||
(जातिपुष्प या लवंग से १०८ जाप देवें)
★ गीता ★
जय होत पंचम चक्रवर्ती बारवे रति ईशजी । गुण गण अधीशं तीर्थकर हो सोलवे शांतीशजी ॥
पूजते भव भय विनाशक आपको जिन देवजी । नमन करते पद कमल में गात गुण महादेवजी ॥
दोहा-
कामदेव चक्रीशजी हो तीर्थकर आप । गाऊँ तय गुणमालिका मिटे सकल संताप ॥
अथ जयमाला
त्रोटक
जय हस्तिनागपुर जनम जिनं । हो बाल सूर्य सम आप जिनं ॥
जय माता एरादेवी जिनं । जय विश्वसेन है पितृ जिनं ||१||
जय हेम वर्ण तन आप लखा । जय धनु चालीस उतंग भखा ||
हो चक्रवर्ती षट् खण्डाधिप । जय कामदेव हो आप महिप ||२||
जय षोड्ष तीर्थकर जु बने । इन पदवी त्रय से आप सने ॥
कुछ कारण पाकर शाँति जिनं । वैराग्य हुआ है आप जिनं ||३||
जय दूर्धर तप प्रभु आप किया । जय दुष्ट कर्म चकचूर किया ||
जय शुक्ल ध्यान में आप लीन । जय अरिरज रहस विनास कीन ||४||
जय समवशरण उपदेश दिया । जय भव्य कमल विकसाय दिया ||
जय नष्ट किये अवशेष कर्म । जय मुक्ति रमा के परम शर्म ||५||
जय भव सागर के पोत जिनं । जय कर्म विपाटक शाँति जिनं ॥
जय विघ्न विनाशक शाँति जिनं । जय मोह प्रहारक शाँति जिनं ॥६॥
जय श्रेष्ठ गुणों के धारक हो ।’ जय मंगलमय शुभकारक हो ।
जय भवि हित हेतुक आप जिनं । जय मन्मथ मारक शाँति जिनं ॥७॥
जय वज्रपाप के खण्डक हो । वृषस्याद्वाद के मण्डक हो ।
जय केवल ज्ञान सुभास्कर हो । जय नयनकमल के विभाकर हो ||८||
जय सम्यक् साधन आप जिनं । जय सुगति प्रदायक शांति जिनं ॥
जय कुगति गमन के अर्गल हो । जय दुख दावानल के जल हो ||९||
जय शांतिनाथ जगसात समं । हो भवन तीन के पितृ समं ॥
जय परहितकारी शाँति जिनं । जय भवहित देशक शाँति जिनं ||१०||
जय नाना रोग रु शोक हरा । जय संपति विपुलसु आप करा ॥
जय शिव सुख दाता शाँति जिनं । जय भव भय हरता शाँति जिनं ||११||
जय गर्व विनाशक शाँति जिनं । जय बहु गुणदाता शाँति जिनं ॥
जय ग्रह बाधा दुख नाशक हो । जय अहिष्यालादि भगायक हो ||१२||
जय भव्य कमल बोधन दिनेश । जय आनन्दकारक हो जिनेश ||
जय ब्रह्मा विष्णु महेश जिनं । जय शंकर शंकर शाँति जिनं ||१३||
जय तारण तरण सु आप नाथ । ब्रह्म सूरज को दो चरण साथ ||
यह अर्जी हमारी बार बार । सुन लीजो दीनानाथ सार ||१४||
घत्ता
श्री शाँति महंता गुणगण वंता, शिवतियकंता सौख्यकरा ॥
हम पूजे ध्यावे दुरित नशावे, शिव पद पावे दुक्ख हरा ||१५||
ॐ ह्रीं श्री शांतिनाथाय जयमाला पूर्णाय निर्वपामीति स्वाहा ||
दोहा-
भ्रमत फिरे संसार में जीव अनादि काल । जिन पूजन सुत निधि मिले कर्म कटे तत्काल ॥
अडिल्ल
फँसे अनादि काल कर्म में जीव जी । अर्जन करते पाप सदा ही अतीव
जिन पूजन से कटे महा भवताप जी। पुत्र मित्र शिव होय नहीं संताप जी ||
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