चतुर्थ वलय
भुजंग प्रयास
हुआ दोष मेरे विकारी जो मन से । हुई व्याधि जिनवर जी उसही अघन से |
तद् विघ्न नाशक हो शान्ति जिनेश्वर । नमो भक्ति पूजे हो मुक्ति ह्रदेश्वर ।।
ॐ ह्रीं श्री मानसिक पापोद्भवोपद्रवनिवारकाय श्री शाँतिनाथाय जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ||१||
हुआ दोष मेरे विकारी वचन से । हुई व्याधि जिनवर जी उसही अघन से ।
तद् विघ्न नाशक हो शान्ति जिनेश्वर । नमो भक्ति पूजे हो मुक्ति ह्रदेश्वर ।।
ॐ ह्रीं श्री वाचनिक पापोद्भवोपद्रवनिवारकाय श्री शाँतिनाथाय जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा || २ |
हुआ दोष मेरे विकारी जो तन से । हुई व्याधि जिनवर जी उसही अघन से ||
तद् विघ्न नाशक हो शान्ति जिनेश्वर । नमो भक्ति पूजे हो मुक्ति ह्रदेश्वर ।।
ॐ ह्रीं श्री कायिक पापोद्भवोपद्रव निवारकाय श्री शाँतिनाथाय जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ||३||
हुई लक्ष्मी पुरराज ग्रहे जो नष्ट । वही देव देता है हमको ही कष्ट ।
तद् विघ्न नाशक हो शान्ति जिनेश्वर । नमो भक्ति पूजे हो मुक्ति ह्रदेश्वर ।।
ॐ ह्रीं जिनराज लक्ष्मीपुर राज्यगेहपदभ्रष्टोद्भवोपद्रव निवारकाय श्री शाँतिनाथाय जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ||४||
उदय पूर्व कर्मों से आपद जो आवे । वही त्रास स्वामी जी मुझको भुलावे ॥
तद् विघ्न नाशक हो शान्ति जिनेश्वर । नमो भक्ति पूजे हो मुक्ति ह्रदेश्वर ।।
ॐ ह्रीं दरिद्रोद्भवोपद्रव निवारकाय श्री शाँतिनाथाय जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥ ५ ॥
कुष्ट जलोदर अनेकों कु रोगा । बड़ा कष्ट जिनवरजी हमने ही भोगा ।
तद् विघ्न नाशक हो शान्ति जिनेश्वर । नमो भक्ति पूजे हो मुक्ति ह्रदेश्वर ।।
ॐ ह्रीं भीम भगदर गलित कुष्ट गुल्म रक्त पित्तवात कफस्फोटकाद्युपद्रव निवारकाय श्री शाँतिनाथाय जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ||६||
इष्ट वियोगा अनिष्ट कु योगा । हुआ दुक्ख जिनवरजी परके संयोगा ||
तद् विघ्न नाशक हो शान्ति जिनेश्वर । नमो भक्ति पूजे हो मुक्ति ह्रदेश्वर ।।
ॐ ह्रीं इष्ट वियोगानिष्टसयोगोद्भवोपद्रव निवारकाय श्री शाँतिनाथाय जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ||७||
स्व चक्र परका उपद्रव जो आवे | वही उपसर्ग जो हमको सतावे ॥
तद् विघ्न नाशक हो शान्ति जिनेश्वर । नमो भक्ति पूजे हो मुक्ति ह्रदेश्वर ।।
ॐ ह्रीं स्वचक्र पर चक्रोद्भवोपद्रव निवारकाय श्री शांतिनाथाय जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ||८||
अनेकों कुशस्त्रों की आपद जो आवे । यही उपसर्ग जो निज को भुलावे ||
तद् विघ्न नाशक हो शान्ति जिनेश्वर । नमो भक्ति पूजे हो मुक्ति ह्रदेश्वर ।।
ॐ ह्रीं विविधायुधोद्भवोपद्रव निवारकाय श्री शाँतिनाथाय जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ||९||
मगरमच्छ आदि उपद्रव हैं भारी । यही दुक्ख भासे प्रभु त्रासकारी ||
तद् विघ्न नाशक हो शान्ति जिनेश्वर । नमो भक्ति पूजे हो मुक्ति ह्रदेश्वर ।।
ॐ ह्रीं जलचर जीव दुष्टोद्भवोपद्रव निवारकाय श्री शाँतिनाथाय जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ||१०||
शूकर सिंह गजों दुक्ख होवे । और अनेकों उपद्रव जु होवे ।
तद् विघ्न नाशक हो शान्ति जिनेश्वर । नमो भक्ति पूजे हो मुक्ति ह्रदेश्वर ।।
ॐ ह्रीं व्याघ्र सिंह गजादि वन पर्वतवासी श्वापदाद्युपद्रव निवारकाय श्री शाँतिनाथाय जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ||११||
पृथ्वी गगनचर उपद्रव कुजीवा । होवे महा दुक्ख जो है सदैवा ।
तद् विघ्न नाशक हो शान्ति जिनेश्वर । नमो भक्ति पूजे हो मुक्ति ह्रदेश्वर ।।
ॐ ह्रीं भूचर गगनचर क्रूर जीवोद्भवोपद्रव निवारकाय श्री शाँतिनाथाय जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ||१२||
भीषण विषैले अहि वृश्चिकादि । उपद्रव जो होवे यही व्याधि आदि ।
तद् विघ्न नाशक हो शान्ति जिनेश्वर । नमो भक्ति पूजे हो मुक्ति ह्रदेश्वर ।।
ॐ ह्रीं व्याल वृश्चिकादि विषदुर्द्धरोपद्रव निवारकाय श्री शाँतिनाथाय जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ||१३||
नखश्रृंगोवाले पशु दुक्ख देवे । कर्म असाता से कष्ट जु सेवे ॥
तद् विघ्न नाशक हो शान्ति जिनेश्वर । नमो भक्ति पूजे हो मुक्ति ह्रदेश्वर ।।
ॐ ह्रीं दुष्ट जीव पद करनखोद्भवोपद्रव निवारकाय श्री शांतिनाथाय जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ||१४||
दंशमशककंटकादि उपद्रव । दुक्खों को जिनवर जी भोगूं हूँ नव-नव ॥
तद् विघ्न नाशक हो शान्ति जिनेश्वर । नमो भक्ति पूजे हो मुक्ति ह्रदेश्वर ।।
ॐ ह्रीं चंचुतुडंदादा कंटकोद्भवोपद्रव निवारकाय श्री शाँतिनाथाय जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ||१५||
चारों तरफ से जो अग्नि जलावे । यही दुक्ख जिनवरजी सबको सतावे ॥
तद् विघ्न नाशक हो शान्ति जिनेश्वर । नमो भक्ति पूजे हो मुक्ति ह्रदेश्वर ।।
ॐ ह्रीं दावानलोद्भवोपद्रव निवारकाय श्री शाँतिनाथाय जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ||१६||
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