Kalghatgi (ಕಲಘಟಗಿ ) Dharwad district, Karnataka 18 to 25 Jan 1996

परमपूज्य गणिनी आर्यिका रत्न 105 श्री सुभूषणमति माताजी के सानिध्य में सर्वतोभद्र महामंडल विधान कलघटगी धारवाड़ जिला, कर्नाटक 18 से 25 जनवरी 1996 संपन्न हुआ

जैन आगम में वर्णित पाॅंच प्रकार की पूजाओं में से एक यह सर्वतोभद्र विधान पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी द्वारा सन् 1987 में लिखित सबसे बडा विधान है। इसमें 101 पूजाएॅं है, इसको लिखने में 40 छन्दों का प्रयोग किया गया है। तीन लोक का मंडल बनाकर 8, 11 या 15 दिनों में इस विधान को पूर्ण किया जाता है।

सर्वतोभद्र विधान में तीन लोक में स्थित आठ करोड़ 72 लाख 756 कृत्रिम और अकृत्रिम जीनालयों की पूजा बड़े भक्ति के साथ की गई। तीन लोक के मंडप पर इंद्र तथा इंद्रानी ने मिलकर करीब तीन हजार श्रीफल चढ़ाए । विधान के समापन के बाद हवन हुआ। 

Part-1

सिरगुप्पी गांव के लोग शोभायात्रा के साथ अपने गांव लाए और माताजी की प्रेरणा से नूतन मंदिर निर्माण का संकल्प लिया। उनकी प्रेरणा से दक्षिण के अनेक नगरों में निर्माण की भावना का संचार हुआ, फलत: जब वे मल्लीग्वाड़ पहुंची तब वहां के भक्तों ने भी नूतन मंदिर की प्रेरणा प्राप्त की चरण बढ़ते ही जा रहे थे, लक्ष्मीश्वर में सहस्वकूट चैत्यालय के दर्शन किए फिर मिश्री कोट होते हुए पुनः कालघटगी पहुंचीं। समाज पूर्व परिचित था अतः चार्तुमास की प्रार्थना करने लगा। माताजी 5 जुलाई 1995 को नगर में पहुंच चुकी थीं, उचित समय पर अपनी दीक्षा के बाद ग्यारहवां चार्तुमास स्थापित किया। इसके पूर्व कलघटगी में कभी किसी संघ का वर्षायोग नहीं हुआ था अतः लोगों में कुछ अधिक ही उत्साह था। उस समय माताजी के साथ दो अन्य आर्यिका माताएँ भी संघ में विराजित थीं। दीदी धर्म एवं दीपक भैया भी थे। माताजी की चर्चा और परम्परा से समाज में धार्मिक भावना दृढ हुई और मंगलमय प्रवचनों से आत्मोत्साह बढ़ा। कुल मिलाकर हर दिन सुबह शाम और मध्यान्ह प्रभावना की, पताकाएं खूब लहराई। युवक-युवतियों ने जाग्रति का परिचय देते हुए। ‘आर्यिका सुभूषणमति मंडल’ की स्थापना की तो समाज के वरिष्ठ कार्यकताओं ने माताजी से नवीन मंदिर की प्रेरणा पाकर, उन्हीं के सानिध्य में शिलान्यास समारोह सम्पन्न किया।

Part-2

उसी क्रम में जब माताजी ने ‘सर्वतो भद्र विधान’ कराया तब वृद्ध भक्तों ने उत्साह पूर्वक अपने आनंद को स्पष्ट करते हुए बतलाया कि कर्नाटक प्रांत में यह विधान पहली बार हुआ है, जिससे कलघटगी नगर गौरवान्वित हुआ है। माताजी काही प्रभाव है कि विधान के अवसर पर हमारे प्रदेश के राज्य मंत्री श्री सिद्ध आशीर्वाद लेने आए और उनके निमित्त से अनेक गणमान्य जन पधारे।

Part-3

दीपोस्त्सव के पूर्व प्रात: बेला में संघ ने विधि पूर्वक निष्ठापना की। उसी समीपस्थ दासीकोपा गांव जाकर माताजी ने समाज में 17 वर्ष से चल रहे विवाद को सुलझाया और परस्पर मैत्री की स्थापना की। दी फिर मंदिर निर्माण की प्रेरणा समाज ने खुशी मनाते हुए उसी दिन शिलान्यास समारोह सम्पन्न किया। उसी दिन माताजी ने स्वामी अकलंक देव की निषद्या-स्थली स्वादीमठ की वंदना हेतु बिहार किया। कलघटगी में वर्षायोग के दौरान अनेक भक्तों के साथ- साथ श्री शरद पट्टन सेट्टी, सौभाग्यवती सुमंगला, श्री रवि, श्रीमति सुधा अम्मा, श्रीमान अण्णा राव आदि के नाम भक्ति और सेवा के नए कीर्ति मान रच गए।

Part-4

लगभग सात माह का स्वर्णिम अवसर प्रदान कर संघ ने 4 फरवरी 1996 को बिहार कर दिया। नगर की बहिन बेटियां रोती रह गयीं, माताजी निर्मोह का पाठ पढ़ाकर आगे बढ़ गयीं।

Part-5
Part-6

गणिनी आर्यिका रत्न सुभूषणमति माताजी

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