There are nine culture zone of rajasthan

Rajasthan is divided into nine regions or zones : 

  1. Merwara ( मेरवाड़ा )
  2. Hadoti ( हाड़ौती )
  3. Dhundhar ( ढूँढाड़ )
  4. Godwad ( गोरवार या गोडवार )
  5. Shekhawati ( शेखावटी )
  6. Mewar ( मेवाड़ )
  7. Marwar (मारवाड़)
  8. Vagad ( वागड़ )
  9. Brij & Mewat ( ब्रज & मेवात )

1. Merwara / Merat ( मेरवाड़ा )- it is belived that this name was derived from a tribe called “MER” which was living in this area in ancient times. Ajmer,tonk etc.

A type of music called Fariyad is also very popular in Ajmer Merwara region . It is a completely compilation of Qawaalis that are sung in devotion to the Sufi saint Khwaja Moinuddin Chishti.

मेरवाड़ा क्षेत्र, ब्रिटिश भारत का एक पूर्व प्रांत था. यह क्षेत्र अजमेर और मेरवाड़ा नाम के दो ज़िलों से मिलकर बना था. इस क्षेत्र का क्षेत्रफल 2.599 वर्ग मील था.
मेरवाड़ा क्षेत्र की मुख्य भौगोलिक विशेषता अरावली पर्वत श्रेणी है. यह श्रेणी अजमेर और नासिराबाद के बीच फैली हुई है. इस श्रेणी के एक ओर होने वाली वर्षा चंबल नदी में होकर बंगाल की खाड़ी में जाती है. दूसरी ओर होने वाली वर्षा लूनी नदी से होकर अरब सागर में जाती है.
मेरवाड़ा क्षेत्र को अजमेर-मेरवाड़ा, अजमेर प्रांत, और अजमेर-मेरवाड़ा-केकरी के नाम से भी जाना जाता है. यह क्षेत्र पुष्कर के नाम से भी प्रसिद्ध है. पुष्कर के चारों ओर जाट, गुर्जर आदि की आबादी है.
मेरवाड़ा क्षेत्र 25 जून, 1818 को संधि द्वारा दौलत राव सिंधिया द्वारा अंग्रेज़ों को सौंपा गया था. यह क्षेत्र 1 नवंबर, 1956 को राजस्थान में विलय कर दिया गया था.

2. Hadoti ( हाड़ौती )

हाड़ा चौहान द्वारा शासित क्षेत्र को हाडोती कहते हैं इसके अंतर्गत कोटा, बूंदी, झालावाड़ , बांरा आदि क्षेत्र आते हैं यह पूरा क्षेत्र मुख्यतः पठारी है तथा यहां पर बड़े सरोवर, नदियां, हरे-भरे उपजाऊ मैदान भी हैं यहां पर मुख्यतः काली मिट्टी और चिकनी मिट्टी पाई जाती है इस क्षेत्र में न्हाण प्रसिद्ध लोक नाट्य है

3. Dhundhar ( ढूँढाड़ )

राजस्थान के मध्य एवं मध्य-पूर्व क्षेत्र यानी प्राचीन आमेर रियासत को ढूंढाड़ क्षेत्र में सम्मिलित किया गया है इसके अंतर्गत जयपुर, दौसा, टोंक जिले आते हैं यहां पर उर्वरक मैदान तथा रेत के टीले पाए जाते हैं यहां पर ढूंढाड़ी भाषा बोली जाती है तथा यहां पर गणगौर तथा बड़ी तीज का त्योहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है

4. Gorwar or Godwar , Godwad ( गोरवार या गोडवार )

(in different periods also was called Chandravati Kingdom, Sirohi State) is a region of Rajasthan state in India, which lies in the southwest Rajasthan and borders with the state of Gujarat.

During the early years of the 19th century, Sirohi Kingdom suffered much from wars with Jodhpur and the Meena hill tribes of the area. The protection of the British was sought in 1817; the pretensions of Jodhpur to suzerainty over Sirohi were disallowed, and in 1823 a treaty was concluded with the British government. Sirohi became a self-governing princely state within British India

गोरवार या गोडवार दक्षिण-पश्चिम राजस्थान में स्थित है और गुजरात राज्य के साथ सीमा पर है. इस क्षेत्र को अलग-अलग समय पर चंद्रावती साम्राज्य और सिरोही राज्य भी कहा जाता था.
गोडवाड़ अरावली रेंज के पश्चिमी भाग में स्थित है. यह राजस्थान के दक्षिण-पश्चिम कोने से उत्तर-पूर्व में कट जाता है. अरावली की सबसे ऊँची चोटी, माउंट आबू इस क्षेत्र में है.
गोडवाड़ क्षेत्र में ये ज़िले शामिल हैं: पाली मारवाड़, जालौर, सिरोही
गोडवाड़ क्षेत्र में ये चीज़ें हैं:
खगोल विज्ञान की वेधशाला (ऑब्जर्वेटरी, गोडवाड़ महोत्सव, सीमेंट कारखाने, राजमार्ग, पर्यटन, कृषि 21वीं सदी में गोडवाड़ विकास, सीमेंट कारखाने, राजमार्ग, पर्यटन और कृषि के दौर से गुजर रहा है

5. Shekhawati ( शेखावटी )

इस क्षेत्र पर कच्छावा राजकुमार शेखा के वंशजों का शासन रहा है इसलिए इसे शेखावटी क्षेत्र कहा जाता है इस क्षेत्र में मुख्यतः चुरू, सीकर, झुंझुनू जिले आते हैं इस क्षेत्र का संपूर्ण भाग रेतीले धोरे तथा मैदान स्थित है इस क्षेत्र पर कई नदियों के किनारे प्राचीन काल की सभ्यता विधमान है इसका खेतड़ी क्षेत्र तांबे के लिए जाना जाता है इस क्षेत्र में हवेलियां, भित्तिचित्र , गीदड़ नृत्य अधिक प्रसिद्ध है

6. Mewar ( मेवाड़ )

राजस्थान के दक्षिणी तथा दक्षिणी- पूर्वी में स्थित प्राचीन मेवाड़ रियासत संस्कृति विभाग के अंतर्गत आता है इसके अंतर्गत उदयपुर, चित्तौड़ ,राजसमंद, डूंगरपुर, बांसवाड़ा , भीलवाडा एवं प्रतापगढ़ जिले को सम्मिलित किया गया है यह क्षेत्र मुख्यतः पहाड़ी क्षेत्र है यहां के लोग वीर स्वाभिमानी एवं स्वतंत्रता प्रिय हैं इस क्षेत्र में मेवाड़ी भाषा बोली जाती है लगभग 1400 वर्षों तक गुहिल वंश का शासन रहा है

7. Marwar (मारवाड़)
राजस्थान के पश्चिम में स्थित प्राचीन मारवाड़ रियासत का क्षेत्र सांस्कृतिक विभाग के अंतर्गत आता है इसमें जोधपुर, नागौर, पाली, जालोर बाड़मेरआदि जिले आते हैं यह पूरा क्षेत्र थार के मरुस्थल का हिस्सा है इस क्षेत्र की भाषा मारवाड़ी है क्षेत्र में घूमर ,घुड़लो , ढ़ोल, लूर, डांडिया तथा गैर नृत्य किए जाते हैं

8. Vagad ( वागड़ )

Vagad is the southern most part of rajasthan consisting Dungarpur and banswara and habited by Tribals such as Bhil , damor etc. They use vagadi dialect to communicate. Which is also used in the gujrat border area.

वागड़, राजस्थान के दक्षिणी भाग में स्थित एक क्षेत्र है. इसकी सीमाएं डूंगरपुर और बांसवाड़ा ज़िलों से तय होती हैं. वागड़ के उत्तर में मेवाड़, दक्षिण-पूर्व और पूर्व में मालवा, और पश्चिम और दक्षिण-पश्चिम में गुजरात स्थित है.  इस क्षेत्र की स्थानीय भाषा वागड़ी है. 

वागड़ में समृद्ध वनस्पति और जीव हैं. यहां के जंगलों में मुख्य रूप से सागौन के पेड़ हैं. यहां तेंदुए और चिंकारा जैसे जंगली जानवर पाए जाते हैं. यहां के आम पक्षियों में मुर्गी, तीतर, काला ड्रोंगो, ग्रे श्राइक, हरा मधुमक्खी भक्षक, बुलबुल और तोता शामिल हैं. 

वागड़ के मुख्य नगर बांसवाड़ा और डूंगरपुर हैं.  यहां के संग्रहालय में मूर्तियां, शिलालेख, धातु प्रतिमाएं और आदिवासी जनजीवन से संबंधित सामग्री प्रदर्शित की गई हैं. यहां की प्रतिमाओं का पत्थर स्थानीय खानों से प्राप्त किया गया था. यह पत्थर गाढ़े नीले-हरे रंग का है. इसे मेवाड़ में परेवा पत्थर कहा जाता है

9. Brij & Mewat ( ब्रज & मेवात )

भरतपुर, धौलपुर एवं करौली जिले को इस भाग में सम्मिलित किया गया है क्योंकि यह जो भाग मथुरा के चौरासी कोस के घेरे में आते हैं इस क्षेत्र में ब्रज भाषाएं बोली जाती है जो काफी मधुर लोकप्रिय है नौटंकी और रासलीला आदि लोक नाटकों का आयोजन भी इसी क्षेत्र में किया जाता है

अलवर, भरतपुर जिलों का जो हिस्सा गुड़गांव की तरफ स्थित है उसमे मेव जाति बड़ी संख्या में निवास करती है और इन लोगों का रहन सहन वेशभूषा खानपान आदि की विशेषताएं युक्त है इसलिए इसे क्षेत्र को मेवात कहतेे हैं

Dressing material of typical rajasthani

The ordinary dress of a male Hindu of the higher classes consists of a turban, which is generally a piece of silk or cotton cloth 30 to 40 feet long and 6 inches broad, having at each end gold-thread work and coloured to suit the wearer, a shirt (kurta), a long coat (angarkha) reaching nearly to the ankles, a loin-cloth (dhoti) worn round the waist, and a scarf (dupatta).

The kurta and angarkha are usually made of a fine-textured material, generally white, resembling fine muslim. Occa- sionally silk is used. The loin-cloth is a long sheet of a coarser material. The Rajput istimrardars are fond of wearing embroidered garments and multicoloured turbans, tied in narrow and picturesque folds. The dress of a Hindu woman of the upper classes consists of a bodice (kanchli), a sheet (orhni) as an upper garment, and a petticoat of chintz or coloured cloth. The clothes of the male agricultural and labouring classes comprise a turban (pagri), a coat (bakhtari) extending to the waist, a loin-cloth (dhoti), and a sheet (pacheora) made of coarse materials.

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