मङ्गलाचरण ।
श्री सन्मति को आदि ले, अवसाने महावीर । चौबीसों जिनपति नमों, कटे कर्म जंजीर ॥ 1 ॥
गुरु गौतम वन्दन करूं, होय बुद्धि अमलान । सप्त-भंगि वाणी नमों, सकल सु मंगल दान ॥ 2 ॥
जिन शासन में व्रत कहे, एक शतक वसु जान । उनके उत्तम फल कहे, गति विधि को पहिचान ॥ 3 ॥
व्रत सुगन्ध दशमी महा, उनमें एक सुजान । जिसकी महिमा अमित है, श्रुतगोचर सुख खान ॥ 4 ॥
यह व्रत मुझको स्वपद दे, पर-पद में रति-भान । जिस प्रभाव शिव पद लहूं, पाऊँ भव अवसान ॥ 5 ॥
व्रत विधान ।
प्रमुख भाद्रपद मास में, अन्तिम पक्ष महान । उनमें पंचमि से कहे, छह दिन परम बखान ॥ 6 ॥
छह दिन में छह व्रत करे, पंचमि का उपवास । चार दिवस एकाशना, दशमी प्रोषध-वास ॥ 7 ॥
तज आहार कषाय औ, विषयों में अनुराग । धर्मध्यान में लीन हो, जाप्य जपे चित पाग ॥ 8 ॥
व्रत को साधे दश वरस, भाव भक्ति उमगाय । मण्डल आदि विधान रच, पूजा ठाठ रचाय ॥ 9 ॥
सुगन्ध दशमी व्रत कथा पूजा फिर उद्यापन कीजिये, अपनी शक्ति विचार । धर्म प्रभाव बढ़ाइये, ईर्ष्या भाव विडार ॥ 10 ॥
शक्ति हीन हो तो करे, व्रत दूनो भ्रम छोर । श्रद्धा भक्ति बढ़ाइये, यही धर्म की ठोर ॥ 11 ॥
ज्ञान और वैराग्य ही, शिव मग साधक जान । ज्ञान-हीन करनी वृथा, करे न भव की हान ॥ 12 ॥
मण्डल रचना
॥ चौपई ॥
चौरस चौकी सुन्दर होय, वस्त्र धरो उस ऊपर धोय । बीचों बीच स्वस्तिक को घेर, वलय दूसरा दीजे फेर ॥1॥
उसमें कोठे हों चौबीस, किन्तु समुच्चय हों जगदीश । इसके नीचे वृत्त तीसरा, उसके भाग होय दश खरा ॥ 2 ॥
एक एक के षट् षट् भाग, रखिये जिनपद में अनुराग । इस प्रकार मण्डल रच खरो, पूजा दशमी के दिन करो ॥ 3 ॥
व्रत पूजा अरु जाप्य विधान, फल इच्छा बिन सुखकी खान । कर निदान जो व्रत आदरै, अनुष्ठान सब निष्फल करै ॥ 4 ॥
अतः छोड़ फल का अनुराग, व्रत सुगन्ध दशमी बड़ भाग । स्वर्ग मोक्ष व्रत से मिल रहै, जो नर-नारि भाव से गहै ॥ 5 ॥
नोट- सर्व प्रथम देव शास्त्र-गुरु तथा सिद्धों की नित्य नियम पूजा करना चाहिये। फिर स्वस्तिक पर स्थित ठोणे में चौवीस महाराज की स्थापना करना चाहिये।