चौपाई
दर्शन में कुछ नहीं बचा है, सर्व लोक उसमें झलका है। सब कुछ देखें चिंता नाहिं, रहते हैं निज आतम मांहि ।।
हमें भी ऐसी शक्ति देना, देखें पर कुछ नहीं है लेना । कर्त्ता भोक्ता बुद्धि छूटे, पूजा से बंधन भी छूटे ।।1।।
ॐ ह्रीं अनन्त दर्शन प्राप्ताय श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
आत्म ज्ञान आतम को जाने, सच्चा केवल ज्ञान है माने । जग का ज्ञान जगत भरमाये, आतम ज्ञानी आनंद पाये ।
एक ज्ञान जग में सच्चा है, आत्मज्ञान की बस अच्छा है । जड़ को तज आतम मय होना, बीज पाप का कभी ना बोना ।। 2 ।।
ॐ ह्रीं अनन्त ज्ञान प्राप्ताय श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
कोई किसी को सुखी न करता, कोई किसी का दुख न हरता । मोह की माया खेल दिखाये, मोह को तज सुख आनंद आये ।। मोह शत्रु जब प्रभु ने नाशा, सुख अनंत पाया अविनाशा । मोह तजूं सुख पाने आये, चरणन में आ शीश झुकाये ।।3।।
ॐ ह्रीं अनन्त सुख प्राप्ताय श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
बाधाओं के बीच घिरे हैं, अंतराय के बीच फिरें हैं । शक्ति नहि और रोगी तन है, चिंताओं से रोगी मन है ।। अंतराय के नाशन हारे, आया प्रभु अब तेरे द्वारे । हो अनंत शक्ति के धारी, मेटो विपदा शीघ्र हमारी ।14।।
ॐ ह्रीं अनन्त वीर्य प्राप्ताय श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
पूर्णर्घ्य (दोहा)
अनंत चतुष्टय घर प्रभो, आतम ज्ञान में लीन। भक्ति बस गुणगान कर पाऊं मोक्ष प्रवीण ।।
ॐ ह्रीं प्रथम वलये अनंत चतुष्टय सहित श्री महावीर जिनेंन्द्राय नमः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा। (श्री फल चढ़ायें)
In the divine vision, nothing is left; it reflects the entire universe. There is no worry in seeing everything; one resides within the self.
Grant us the strength to be like that, to see without desire. Let the distinctions of doer and enjoyer fade away; even the bonds of worship are released.
Om Hreem, offering to the infinite vision of Lord Mahavir, may the arghya be accepted.
Self-knowledge is to know the self; true knowledge is considered only that of the soul. Worldly knowledge engulfs the world; the knowledgeable soul experiences bliss.
In the world, there is indeed true knowledge; knowledge of the self is the best. Abandoning the inert, become self-aware; never sow the seed of sin.
Om Hreem, offering to the infinite knowledge of Lord Mahavir, may the arghya be accepted.
No one makes another happy, and no one takes away another’s sorrow. The play of illusion of attachment is shown; abandoning attachment, one finds happiness. When the Lord destroyed the enemy of attachment, endless happiness was attained. Abandoning attachment, one attains happiness, bowing at the feet.
Om Hreem, offering to the infinite happiness of Lord Mahavir, may the arghya be accepted.
Trapped amidst obstacles, they roam amidst internal barriers. There is no power, and the body is sick; the mind is sick due to worries. The destruction of internal barriers has occurred; now, the Lord has come to your door. Being the bearer of infinite strength, quickly remove our troubles.
Om Hreem, offering to the infinite prowess of Lord Mahavir, may the arghya be accepted.
Complete offering (Doha):
In the house of the infinite fourfold, O Lord, absorbed in self-knowledge. Let devotion be only in praising virtues; may I become adept in liberation.
Om Hreem, in the first circle, along with the infinite fourfold, offering to Lord Mahavir, may the arghya be accepted. (Offering of shreefal)
श्री महावीर विधान – स्वस्तिभूषण माताजी
[…] प्रथम वलय […]
[…] प्रथम वलय […]
[…] प्रथम वलय […]
[…] प्रथम वलय […]
[…] प्रथम वलय […]
7 Comments
[…] प्रथम वलय […]
[…] प्रथम वलय […]