चौपाई छंद
चारों गति में भूख सताये, प्रभो आपके पास न आये। चरण आपके पूजू वीरा, हरुँ वेदना पाऊंगा तीरा । ।। 29 ।।
ॐ ह्रीं क्षुधा महादोष रहित श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
लगी प्यास पानी पीते हैं, प्रभो आप जल बिन जीते हैं। किन्तु प्यास अब भक्ति तल है, इससे कर्म दुखों का हल है ।। 30 ||
ॐ ह्रीं तृष्णा महादोष रहित श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
डर ने जग के जीव डराये, किन्तु डर तुमसे डर खाये। सातों भय से मुक्त करा दो, भवसागर से नाव तिरा दो ।। 31 ।।
ॐ ह्रीं भय महादोष रहित श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
क्रोधी मानव जहर उगलता, क्रोध आपके पास न पलता । छूटे क्रोध शांति को पाऊं, इन भावों से अर्घ्य चढ़ाऊं ।। 32 ।।
ॐ ह्रीं क्रोध महादोष रहित श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
चिता के सम चिंता में जलते, आपमें सुख के सुमन हैं खिलते । चिंता चिंतन सम बन जाये, प्रभु भक्ति से चिंता जाये ।। 33 ।।
ॐ ह्रीं चिंता महादोष रहित श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
रोग बुढ़ापा बीमारी है, किन्तु आपसे यह हारी है। मुझे बुढ़ापा कभी ना आये, जनम-जनम के दुख मिट जायें ।। 34 ।।
ॐ ह्रीं जरा महादोष रहित श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
राग आग सा सदा जलाये, वीतराग वीरा कहलाये । अशुभ राग तज शुभ में आऊं, शुभ को तज तुमसा हो जाऊं ।। 35 ।।
ॐ ह्रीं राग महादोष रहित श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा ।।
मोही जीव सदा दुख पाये, निर्मोही प्रभु को न सताये । इससे जीव शरण में आते, निर्मोही हो भाव बनाते ।। 36 ।।
ॐ ह्रीं मोह महादोष रहित श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
जीव सदा औषध खाता है, फिर भी रोग पास आता है। मोह नाश कर रोग को नाशा, इससे स्वस्थ आत्मा वासा ।। 37 ।।
ॐ ह्रीं रोग महादोष रहित श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
जीवन संग मृत्यु आती है, प्राणी को ये ना भाती है। मृत्यु नहि निर्वाण आपको, मृत्युंजयी तुम हरें ताप को ।। 38 ।।
ॐ ह्रीं मृत्यु महादोष रहित श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
नहीं पसीना जरा भी आता, शुद्ध स्वच्छ तन मन का वासा । तप से तन भी शुद्ध किया है, भक्त ने शीश ये झुका दिया है ।। 39 ।।
ॐ ह्रीं स्वेद महादोष रहित श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
(तर्ज- नरेन्द्र फणीन्द्र)
नहि खेद तुमको, किसी पर भी आये। किया नाहि कारज, न श्रम ही सताये ।।
यही खेद प्राणी को, चिंता भी देता । शरण तेरी जो है, वही सौख्य लेता ।। 40 ।।
ॐ ह्रीं विषाद महादोष रहित श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
अभिमान प्राणी को, झुकने न देता । करता विनय नाहि, बस दुख ही लेता ।। त्रैलोक्य का धन, चरण तेरे झुकता । अभिमान किन्तु, जरा नाहि टिकता ।। 41 ।।
ॐ ह्रीं मद महादोष रहित श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
रति, दोष दूजे में, प्रेम बढ़ाये । स्वयं को है भूला, रति ही भ्रमाये ।।
प्रभो आप प्रीति, निजातम से करते । इसी से भगत तेरी शरणा को बरते ।। 42 ।।
ॐ ह्रीं रति महादोष रहित श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
तीन ही लोकों को, तुमने निहारा। विस्मय न कोई, जो देखा नजारा ।। करम का सभी फल है आश्चर्य देता। करुं भक्ति तेरी, बनूं आप जैसा ।। 43 ।।
ॐ विस्मय महादेष रहित श्री महावीर नमः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
निद्रा के वश में, जगत के हैं प्राणी । नहीं होश खुद का, भूले तेरी वाणी।। निद्रा नहीं पलभर आपको आये । करूं भक्ति तेरी, मुझे न सताये ।। 44 ।।
ॐ ह्रीं निद्रा महादोष रहित श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
लेता जनम हूँ, महा कष्टकारी । ये जन्मों की विपदा, प्रभु ने निवारी।। दुबारा जनम ना हो, प्रभु ने निवारा। जनम नाश होवे, मैं आया हूँ द्वारा ।।45।।
ॐ ह्रीं जन्म महादोष रहित श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
प्रतिकूल वस्तु में, अरति सताये । करुं द्वेष उससे वो चिंता बढ़ावे ।। अरति दोष नाशा, सदा सौख्य धारी । हम आये शरण में, प्रभु जी तिहारी। ।। 46 ।।
ॐ ह्रीं अरति महादोष रहित श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
पूर्णाध्य (दोहा)
दोष अठारह बीच में घिरा हूँ मैं जिनदेव ।
नैया मेरी तार दो, करुं आपकी सेव ।।
ॐ ह्रीं चतुर्थ वलये अष्टादश महादोष रहित श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
( श्रीफल चढ़ाऐ)
श्री महावीर विधान – स्वस्ति भूषण माताजी
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