जैन धर्म में माघ कृष्ण चतुर्दशी को भगवान ऋषभदेव (आदिनाथ ) के निर्वाणोत्सव दिवस के रूप में मनाना एक अद्भुत परंपरा है और इस दिन भक्तगण उनकी अनुग्रह और आशीर्वाद के लिए पूजा-अर्चना करते हैं। आचार्य श्री चैत्य सागर जी महाराज के सानिध्य में 108 किलो का निर्वाण लाडू चढ़ाकर आदिनाथ भगवान का मोक्ष कल्याणक भट्टारक जी की नसिया जयपुर मैं मनाया गया ।

एक हजार वर्ष तक कठोर तप करके आदिनाथ भगवान को कैवल्य ज्ञान (भूत, भविष्य और वर्तमान का संपूर्ण ज्ञान) प्राप्त हुआ। वे जिनेंद्र बन गए। पूर्णता प्राप्त करके उन्होंने अपना मौन व्रत तोड़ा और संपूर्ण आर्यखंड में लगभग 99 हजार वर्ष तक धर्म-विहार किया और लोगों को उनके कर्तव्य और जन्म-मृत्यु के बंधन से मुक्ति पाने के उपाय बताए। अपनी आयु के 14 दिन शेष रहने पर भगवान आदिनाथ हिमालय पर्वत के कैलाश शिखर पर समाधिलीन हो गए। वहीं माघ कृष्ण चतुर्दशी के दिन उन्होंने निर्वाण (मोक्ष) प्राप्त किया। आदिनाथ भगवान का जीवन पर्याप्त दूरदृष्टि, त्याग, और आध्यात्मिकता की अद्वितीय प्रतीक माना जाता है जो जैन धर्म के अनुयायियों को मार्गदर्शन करता है।

आज 8 फरवरी 2023, भट्टारक जी की नसिया जयपुर मैं सभी इंद्रों ने केसरिया वस्त्र धारण कर भगवान आदिनाथ का कलशों से जयकारों के साथ पंचामृत अभिषेक किया। मंत्रों का उच्चारण कर भगवान आदिनाथ के मस्तक पर वृहद शांतिधारा की। इन्द्र-इन्द्राणियों ने भगवान आदिनाथ की अष्टद्रव्यों से पूजन कर अघ्र्य समर्पित किए। वहीं पूजन के बाद निर्वाण काण्ड का वाचन करते हुए 108 किलो के निर्वाण लाडू समर्पित किए गए।

जैन धर्मं और दर्शन Jain Dharm Aur Darshan

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